सर्जिकल स्ट्राइक के लिए एक दिन पहले ही एलओसी पार कर गए थे जवान

सर्जिकल स्ट्राइक में जवानों की जाबांजी की कहानी अब सामने निकलकर आई है।

नई दिल्ली। गुलाम कश्मीर में की गई सर्जिकल स्ट्राइक में जवानों के जांबाज कारनामे का ब्योरा अब आया है। आतंकियों का पता लगाने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक से पहले एक दिन भारतीय जवान एलओसी पार कर गुलाम कश्मीर पहुंच गए थे। इसके बाद 28-29 सितंबर, 2016 की आधी रात मेजर रोहित सूरी 4 पैरा के आठ जवानों के साथ गुलाम कश्मीर के भीतर आतंकी लांच पैड तक पहुंचे थे।

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इससे पहले कि ये कुछ एक्शन लेते, आशंकित आतंकियों ने खुद ही गोलाबारी शुरू कर दी। मेजर सूरी ने जवानों को इंतजार करने को कहा और जब सुबह छह बजे गोलाबारी बंद हुई तो वे आतंकियों पर टूट पड़े। आमने-सामने की लड़ाई के दौरान यूएवी के मार्फत दो आतंकियों के भागने की जानकारी मिली। रोहित सूरी ने जान की परवाह किए बिना आतंकियों का पीछा कर नजदीकी लड़ाई में दोनों को मार गिराया। सूरी ने ऐसा नहीं किया होता, सभी जवानों की जान खतरे में पड़ सकती थी।

सर्जिकल स्ट्राइक के लिए इन जवानों को मिला है शौर्य चक्र

इस वीरता के लिए मेजर सूरी को कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद विपक्ष भले ही इसकी सच्चाई पर सवालिया निशान लगाता रहा हो। लेकिन इस साल गणतंत्र दिवस पर वीरता पुरस्कारों से सम्मानित सर्जिकल स्ट्राइक में शामिल जवानों के प्रशस्ति पत्र विपक्ष के सवालों का करारा जवाब हैं। रोहित सूरी के अलावा चार जवानों मेजर रजत चंद्रा, मेजर दीपक कुमार उपाध्याय, कैप्टन आशुतोष कुमार और नायब सूबेदार विजय कुमार को वीरता के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया है।

एक दिन पहले ही गुलाम कश्मीर पहुंच गए थे नायब सूबेदार विजय कुमार

नायब सूबेदार विजय कुमार को आतंकियों की गतिविधियों का पता लगाने के लिए एक दिन पहले ही गुलाम कश्मीर में भेज दिया गया था। सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान विजय कुमार आतंकियों की फायरिंग की परवाह किए बगैर लांच पैड के पीछे की ओर भागे और उन्होंने मल्टी ग्रेनेड लांचर से ताबड़तोड़ फायरिंग कर दो आतंकियों को मार गिराया और उनकी ऑटोमैटिक मशीनगनों को ध्वस्त कर दिया। लेकिन एक आतंकी उसके बाद भी फायरिंग कर रहा था। विजय कुमार ने उसे नजदीकी लड़ाई में मार गिराया।

दो दिन पहले ही गुलाम कश्मीर पहुंच गए थे मेजर रजत चंद्रा

वहीं मेजर रजत चंद्रा की टीम को दो दिन पहले ही 27 सितंबर को गुलाम कश्मीर में भेज दिया गया था। उनकी पूरी टीम दो दिनों तक आतंकी लांच पैड के नजदीक जंगल में छुपकर इंतजार करती रही। सर्जिकल स्ट्राइक के समय उनकी टीम के जवानों ने कुछ मिनट में ही आतंकियों के हथियार के भंडार को नष्ट कर दिया। लेकिन इस दौरान थोड़ी दूर पर छिपे एक आतंकी ने ऑटोमैटिक राइफल से फायरिंग शुरू कर दी। अपने जवानों पर खतरे को देखते हुए मेजर चंद्रा फायरिंग के बीच रेंगते हुए आतंकी के पास पहुंचे और उसे मार गिराया था।

पूरी तैयारी के साथ चलाया था ऑपरेशन

सर्जिकल स्ट्राइक में शामिल जिन 19 जवानों को सम्मानित किया गया है उनमें सभी का प्रशस्ति पत्र इसी तरह की वीरता के वर्णन से भरा है। इन प्रशस्ति पत्र को पढ़ने के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की विशालता, तैयारी की बारीकियों और अत्याधुनिक तकनीक के उपयोग का पता चलता है। गुलाम कश्मीर में एक साथ कई आतंकी शिविरों पर स्ट्राइक करने के लिए रेकी टीमें पहले ही कूच कर गई थीं। सात-आठ जवानों से लैस हर स्ट्राइक टीम में सभी की जिम्मेदारी अलग-अलग थी। उन्हें कवर करने और सुरक्षित वापस लाने की जिम्मेदारी अलग टीम को दी गई थी।

एक विशेष टीम लांच पैड की सुरक्षा में तैनात संतरियों को मारने के लिए भेजी गई थी। आवाजरहित हथियारों से लैस इस टीम में सेना के शार्प शूटर शामिल थे। इसके अलावा पूरे ऑपरेशन पर मानव रहित विमानों से नजर रखी जा रही थी। आतंकियों की हर हरकत के बारे में स्ट्राइक टीम में लगे जवानों को जानकारी भी दी जा रही थी। यही कारण है कि इतने बड़े स्ट्राइक के बाद सभी जवान सुरक्षित लौट आए।

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