बुनियादी सुविधाओं और डिजिटलीकरण की कमी से जूझते सरकारी स्कूलों में टीचर भी कम हो रहे हैं. ये हाल तब है जबकि कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई के दबाव और जरूरतों ने सरकारी स्कूलों के बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है.भारत के कुल 15 लाख से कुछ अधिक स्कूलों में से 68 प्रतिशत स्कूल सरकारी हैं लेकिन वहां शिक्षकों की घोर कमी बनी हुई है. इन स्कूलों में 50 प्रतिशत से भी कम शिक्षक तैनात हैं. जबकि नई शिक्षा नीति में छात्र और शिक्षक का अनुपात 30: 1 रखने को कहा गया है. स्कूली शिक्षा पर केंद्र सरकार की एक ताजा रिपोर्ट में ये बताया गया है.
इन स्कूलों में से 30 प्रतिशत स्कूलों के पास कंप्यूटर चलाने वाला या उसकी जानकारी रखने वाला शिक्षक भी नहीं है जबकि डिजिटलीकरण और ऑनलाइन एजुकेशन जैसी बातें इधर शिक्षा ईकोसिस्टम में केंद्रीय जगह बनाती जा रही हैं. सरकारी स्कूलों की बदहाली देश की अर्थव्यवस्था, सामाजिक स्थिति और जीडीपी के लिहाज से भी चिंताजनक है.
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट 2019-20 के लिए यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (यूडीआईएसई+) की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्कूलों में शिक्षकों का अनुपात काफी कम है. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग की ओर से जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में 15 लाख से कुछ अधिक स्कूल हैं जिनमें से 10 लाख 32 हजार स्कूलों को केंद्र और राज्य सरकारें चलाती हैं. 84,362 स्कूल सरकार से सहायता प्राप्त है, तीन लाख 37 हजार गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूल हैं और 53,277 स्कूलों को अन्य संगठन और संस्थान चलाते हैं. देश के तमाम स्कूलों में करीब 97 लाख टीचर नियुक्त हैं. इनमें से 49 लाख से कुछ अधिक शिक्षक सरकारी स्कूलों में, आठ लाख सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में, 36 लाख निजी स्कूलों में और शेष अन्य स्कूलों में कार्यरत हैं. देश के कुल स्कूलों में से 22.38 प्रतिशत स्कूल निजी गैर सहायता प्राप्त हैं तो 68.48 प्रतिशत स्कूल सरकारी हैं.
37.18 प्रतिशत अध्यापक, निजी स्कूलों मे तैनात हैं. लेकिन सरकारी स्कूलों में आधी संख्या में शिक्षक नियुक्त हैं, 50 प्रतिशत पद खाली हैं. देश में सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल साढ़े पांच फीसदी हैं और वहां करीब साढ़े आठ फीसदी शिक्षक हैं, जबकि अन्य स्कूलों में 3.36 प्रतिशत शिक्षकों की तैनाती है. छात्र शिक्षक अनुपात अकेली समस्या नहीं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में छात्र-शिक्षक अनुपात (पीटीआर) 30:1 रखने का जिक्र किया गया है यानी हर तीस शिक्षार्थियों के लिए एक शिक्षक. प्राइमरी कक्षाओं में 30 से ऊपर की पीटीआर वाले राज्य दिल्ली और झारखंड हैं.
अपर प्राइमेरी लेवल में सभी राज्यों का पीटीआर 30 से नीचे हैं. लेकिन सेकंडरी और हायर सेकंडरी कक्षाओं में ये स्थिति उतनी अच्छी नहीं हैं. बिहार में प्राइमरी कक्षा में पीटीआर 55.4 का है तो सेकेंडरी में 51.8 का. हायर सेकेंडरी में ओडीशा का पीटीआर चिंताजनक रूप से 66.1 का है. पीटीआर की दयनीय स्थिति के अलावा इस विभागीय रिपोर्ट से ये भी पता चलता है कि कुल स्कूलों में से 30 प्रतिशत स्कूलों में ही कम से कम एक टीचर को ही कम्प्यूटर चलाना और क्लास में उसका इस्तेमाल करना आता है. ध्यान रहे कि कोविड-19 के संकट में ऑनलाइन पढ़ाई पर जोर है और बच्चे करीब दो साल से स्कूल की चारदीवारी में नहीं दाखिल हो पाए हैं.
वे या तो घर से पढ़ने को विवश हैं और सरकारी स्कूलों की हालत तो ये रिपोर्ट बता ही रही है. बेशक कई घरों में कम्प्यूटर, लैपटॉप, इंटरनेट कनेक्शन, स्मार्टफोन आदि का अभाव है लेकिन ये भी सच्चाई है कि बहुत से स्कूलों में सुविधाएं नहीं हैं और बहुत से स्कूली शिक्षक कम्प्यूटर नहीं जानते. ये भी सही है कि किसी एक चीज की कमी या किल्लत की आड़ में भी ऑनलाइन सीखने सिखाने की जद्दोजहद के कन्नी काटने की प्रवृत्तियां भी दिखती हैं. सरकारी स्कूलों की जर्जरता का जिम्मेदार कौन और इन तमाम मुद्दों के साथ ये भी उतना ही सही है कि निजी स्कूलों के पास बेहतर सुविधाएं,
उपकरण और संसाधनों के अलावा अनुभवी और प्रशिक्षित टीचर हैं वहीं सरकारी स्कूलों में हालात 21वीं सदी के दो दशक बाद भी नहीं सुधर पाए हैं और वे बुनियादी संसाधनों से लेकर शिक्षकों की कमी तक- समस्याओं के बोझ तले दबे हुए हैं. समस्या छात्र शिक्षक अनुपात की तो है ही- पद खाली पड़े हुए हैं और टीचर या तो हैं नहीं और अगर हैं भी तो जहां उन्हें होना चाहिए वहां नहीं हैं. इसके अलावा पाठ्यक्रमों की विसंगति तो पूरे देश में एक विकराल समस्या के रूप में उभर कर आई है. 2016 में तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के बारे में संसद में रिपोर्ट पेश की थी जिसके अनुसार देश में एक लाख स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक शिक्षक तैनात है. इसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड के हाल सबसे बुरे बताए गए थे.
नई रिपोर्ट एक तरह से पुराने हालात को ही बयान करती है. वैसे सार्वभौम प्राइमरी शिक्षा के सहस्राब्दी लक्ष्य पर यूनेस्को की 2015 की रिपोर्ट ने भारत के प्रदर्शन पर संतोष जताया था. लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता और वयस्क शिक्षा के हालात अब भी दयनीय हैं. करीब 21 साल पहले 164 देशों ने सबके लिए शिक्षा के आह्वान के साथ इस लक्ष्य को पूरा करने का संकल्प लिया था. लेकिन एक तिहाई देश ही इस लक्ष्य को पूरा कर पाए हैं.