लखनऊ में अवैध प्लाटिंग का धंधा जोरो पर

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अशोक कुमार गुप्ता,लखनऊ । अगर लखनऊ में जमीन या फ़्लैट लेने की सोच रहे है है तो कदम सोच समझकर उठाए । क्योकि लखनऊ विकास प्राधिकरण की सीमा में और सीमा  से सटे इलाकों में टाउनशिप के नाम पर इन दिनों ठगी का खुला खेल चल रहा है। फोन कॉल, इंटरनेट के जरिये लोगों को सस्ते आशियाने का सपना दिखाकर उनकी जीवनभर की खून-पसीने की कमाई हड़पकर बिल्डर फरार हो जाते हैं और जिन्हें प्लॉट मिलते हैं वे सुविधाओं के लिए तरसते रहते हैं। एलडीए, जिला प्रशासन और जिला पंचायत के बीच सामंजस्य की कमी का फायदा उठा रहे ऐसे बिल्डर धड़ल्ले से पांव पसार रहे हैं। आए दिन सामने आ रहे ठगी के मामलों में बिल्डर हजारों लोगों को करोड़ों रुपये का चूना लगा चुके हैं। ऐसे में एलएनटी आपको दे रहा है ऐसी कुछ जानकारियां, ताकि आप ऐसे बिल्डरों के मकड़जाल में न फंसें है अशोक कुमार गुप्ता  और अंकित श्रीवास्तव की रिपोर्ट-
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हैलो! फैजाबाद रोड पर हमारी टाउनशिप आ रही है। आपको प्लॉट चाहिए तो केवल 250 रुपये प्रति वर्ग फीट की दर से मिल जाएगा। तीन से चार साल में ईजी इंस्टॉलमेंट्स में पेमेंट भी कर सकते हैं। साइट विजिट करना चाहें तो आप जहां बताएं, हमारी गाड़ी आपको लेने आ जाएगी…।
फोन पर यह लुभावनी स्कीम सुनकर सत्येंद्र सिंह खुद को नहीं रोक सके। झटपट साइट देखने पहुंचे और रजिस्ट्रेशन करा लिया। तीन साल हो गए लेकिन उन्हें प्लॉट नहीं मिला। अब कंपनी पुरानी जगह पर जमीन खत्म होने की दुहाई देकर नई जगह जमीन लेने का दबाव बना रही है। वह भी बढ़ी हुई दर पर। सत्येंद्र  को सूझ नहीं रहा कि वह क्या करें। बिल्डर जिला पंचायत से नक्शा पास होने का दावा कर रहा है, लेकिन धांधली की शिकातय पर जिला पंचायत कुछ नहीं कर सका। वहां के अधिकारियों की मानें तो वे केवल नक्शा पास कर सकते हैं, उन्हें किसी तरह की कार्रवाई का अधिकार ही नहीं है। आवास एवं शहरी नियोजन विभाग से भी राहत नहीं मिली। पूरा खेल लखनऊ विकास प्राधिकरण के दायरे के बाहर है, लिहाजा वहां भी सुनवाई नहीं हो सकी। हर ओर से निराश होकर सत्येंद्र के साथ सैकड़ों आवंटियों ने बिल्डर की शिकायत गाजीपुर थाने में की। शिकायत किए करीब तीन महीने बीत चुके हैं, लेकिन बिल्डर की गिरफ्तारी तो दूर उसे कभी थाने तक नहीं बुलाया गया। वह धड़ल्ले से टाउनशिप के नाम पर प्लॉटिंग कर रहा है। आशियाने के सस्ते सब्जबाग में आकर ठगे गए सत्येंद्र अकेले नहीं है। उनके जैसे हजारों लोग हैं, जिनकी जीवन भर की कमाई आशियाने के सपने में फंसी हुई है। इनमें से कई आवंटी बलिया, बनारस, बस्ती, गाजीपुर, हरदोई, गोरखपुर और बिहार के गोपालगंज,सीवन,छपरा व बक्सर  के हैं।

सीतापुर रोड, फैजाबाद रोड, सुलतानपुर रोड, हरदोई रोड और रायबरेली रोड…। एलडीए की सीमा से सटे इनइलाकों में धड़ल्ले से अवैध प्लॉटिंग का धंधा चल रहा है। कई बिल्डर तो टाउनशिप डिवेलप करने तक काविज्ञापन कर रहे हैं। ये बिल्डर किसानों से एग्रीकल्चर लैंड खरीदकर प्लॉटिंग करते हैं। रजिस्ट्रेशन करतेसमय बिजली, पानी, सीवेज, पार्क और सामुदायिक उपयोग के लिए व्यवस्था का वादा किया जाता है, लेकिन ये वादे कभी पूरे नहीं होते। जमीनें बेचकर बिल्डर फरार हो जाते हैं और जमीन खरीदकर आशियानाबनाने का सपना देखने वाले हाथ मलते रह जाते हैं। हाल के कुछ महीनों में सैकड़ों मामले ऐसे भी आए, जिनमें रजिस्ट्रेशन के बाद बिल्डर ने जमीन खत्म होने की बात कहकर प्लॉट देने से ही इनकार कर दिया।जिला पंचायत के अधिकारियों की मानें तो ज्यादातर बिल्डर 20 से 40 एकड़ जमीन किसानों से खरीदते हैं, लेकिन अपने विज्ञापन में 100 एकड़ से भी ज्यादा दिखाते हैं और उसी हिसाब से रजिस्ट्रेशन कराके लोगोंसे पैसा जमा करा लेते हैं। बाद में आवंटियों को जमीन मिलती नहीं और उनका पैसा फंस जाता है। जिनलोगो को प्लॉट मिल भी जाता है, उन्हें बिजली, पानी और सीवरेज जैसी सुविधाओं के लिए भटकना पड़ताहै।
केस स्डटी
केस-1
जिला पंचायत कार्यालय के अधिकारियों के मुताबिक बीकेटी क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली ग्राम पंचायतरामपुर बेहड़ा में वसुंधरा डिवेलपर करीब 200 बीघे जमीन पर प्लाटिंग की बात कह रहे हैं, लेकिन उन्होंनेअभी तक प्लानिंग का नक्शा पास नहीं कराया है। दो हफ्ते पहले इस डेवलपर को जिला पंचायत ने नोटिसदी थी।
केस-2
जिला पंचायत के क्षेत्रीय निरीक्षक के मुताबिक फैजाबाद रोड स्थित आनंदी वॉटर पार्क के पास ऋषिकॉलनाइजर 50 बीघे से ज्यादा एरिया में प्लाटिंग कर चुका है। अब फ्लैट बनाने का काम कर रहा है। इतनीबड़ी योजना में इसने सिर्फ 5627 वर्गमीटर एरिया का नक्शा पास कराया है और वह भी साल 2009 मेंजबकि प्लाटिंग का दावा इससे कई गुना अधिक है।
केस-3
फैजाबाद रोड से सटे सेमरा गांव की आसमान छूती जमीन पर प्रज्ञा डिवेलपर ने प्लाटिंग कर सैकड़ों प्लाटबेच दिए हैं, लेकिन जिला पंचायत कार्यालय में इस डेवलपर ने सिर्फ 30 हजार वर्गमीटर एरिया का ही नक्शा पास कराया है। जिला पंचायत इस डिवेलपर को नोटिस भेजने की तैयारी कर रहा है।
केस-4
दयाल डिवेलपर ने दयाल फॉर्म के नाम से देवा रोड से शुरू की प्लाटिंग का काम धीरे-धीरे फैजाबाद रोड कोछूने वाला है। जिला पंचायत के क्षेत्रीय इंस्पेक्टर के मुताबिक सैकड़ों बीघा प्लाटिंग करने वाले इस प्रॉपर्टीडीलर ने अब तक 68,126 वर्ग मीटर एरिया का नक्शा जिला पंचायत से पास कराया है जबकि योजना काविस्तार कई एकड़ में फैला हुआ है। इस प्लानिंग एरिया में ग्राम समाज की कई बीघा जमीन बेची दी गई है।दयाल रेजीडेंसी योजना का भी यही हाल है। इस योजना में तालाब की जमीन बेच दी गई थी।
हाल फिलहाल सामने आए मामले
4 दिसंबर 2013 : टिस्का एवं परिशिष्ट कंपनी के खिलाफ मुकदमा। दोनों कंपनियों ने लखनऊ सीमा परसस्ते प्लॉटों का झांसा देकर सैकड़ों लोगों को लाखों का चूना लगाया। इस ठगी के मामले में चार दिसंबर सेअब तक 50 के आसपास पीड़ित रिपोर्ट दर्ज करा चुके हैं।
7 अक्टूबर 2012 : मल्टी लेवल पार्मेटिंग के जरिये सस्ते और किस्तों में प्लॉट देने का दावा करने वालीकंपनी मैपल्स के खिलाफ गाजीपुर थाने में मुकदमा दर्ज। करीब 200 पीड़ितों ने गाजीपुर थाने में कंपनी केखिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराया है।
11 दिसंबर वर्ष 2011 : गुडम्बा थाने में मैग्नम कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई। कंपनी पर लोगों कोसस्ते प्लॉट का झांसा देकर लाखों रुपये ठगने का आरोप है। रियल इस्टेट की अग्रणी कंपनी होने का दावाकरने वाली इस कंपनी के झांसे में सैकड़ों लोग आए थे।
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प्लानिंग के लिए यह जरूरी
– जिला पंचायत क्षेत्र में प्लानर की सोसाइटी रजिस्ट्रर्ड होनी चाहिए।
– प्लानिंग एरिया में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट होना चाहिए।
– सीसी रोड या फिर डामर रोड बनी हो।
– बिजली पोल और ट्रांसफार्मर होने चाहिए।
– प्लानिंग के हिस्से में पार्क की जमीन छोड़ी गई हो।
– प्लानिंग का नक्शा पास हो।
– कुल प्लानिंग एरिया का 35 फीसदी हिस्सा इन सभी चीजों के लिए छोड़ा जाना जरूरी है।
प्लाटिंग के मानक
प्लाटिंग की जा रही जमीन का भूमि उपयोग परिवर्तन कराया गया हो। इसके अलावा जमीन की रजिस्ट्रीके पेपर और अगर प्लानर ने कोई सोसाइटी बना रखी है तो सोसाइटी का पेपर देना जरूरी है। प्लानिंग कास्वीकृत नक्शा, प्लानर का बैंक अकाउंट नंबर और जमीन के दाखिल-खारिज के दस्तावेज भी जरूरी होतेहैं। हालांकि, ज्यादातर प्लानर ऐसा नहीं कर रहें हैं, जो जिला पंचायत के नियमों के विरुद्ध है। ऐसे मामलेजब जिला पंचायत के सामने आते हैं तो वह सिर्फ नोटिस जारी कर जिम्मेदारी की खानापूर्ति कर देते हैं।ज्यादा जरूरत पड़ने पर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड एक्ट के तहत चालान कटाने की कार्रवाई कर दी जाती है।
किस्त और तुरंत में अंतर
रियल इस्टेट के विशेषज्ञ राजेश सिंह  का कहना है कि जिला पंचायत में प्लॉट खरीदते समय विशेषसावधानी बरतनी चाहिए। अगर कोई बिल्डर किस्तों में भुगतान करने की सुविधा देने और पूरा भुगतानहोने के बाद रजिस्ट्री का वादा करे तो समझ लीजिए कि मामले में कुछ पेंच है। प्लाटिंग करने वाले अगरतुरंत कब्जा देकर रजिस्ट्री करा रहे तों तो यह ठीक हो सकता है, लेकिन कब्जा लेते समय देख लें कि जमीनका 143 (भू-उपयोग परिवर्तन) और दाखिल खारिज हुआ है या नहीं। साथ ही सड़क अगर 30 फीट से कमहै तो बाद में दिक्कत हो सकती है। नक्शा पास होने में दिक्कत आ सकती है।

नेटवर्किग बिजनेश यानी एमएलएम में न फंसें

रियल इस्टेट के इस धंधे में 70 फीसदी खिलाड़ी फाउल खेल रहे हैं। मसलन न उनके पास योजना है, ननक्शा है और न ही मानक पूरे हैं। यह मल्टीलेवल मार्केटिंग का जरिया बन चुका है। एक प्लॉट खरीदिए और इसके बाद जितने लोगों को प्लॉट खरीदने के लिए पंजीकरण करवाएंगे, आपको उतना कमीशन मिलता रहेगा। आपका लाखों रुपये का प्लॉट मुफ्त भी हो सकता है। यह एक ऐसा ऑफर है, जिसके झांसेमें आकर सैकड़ों लोग पहले खुद फंसे और फिर अपने नाते रिश्तेदारों को भी फंसा दिया। कंपनी पंजीकरण कराकर अपनी जेब भरती रही और प्लॉट देने की तारीख लगातार आगे बढ़ाती रही। सस्ते प्लॉट के लालचमें लोग इंतजार भी करते रहे और आखिर में कंपनी ने उन्हें पुरानी साइट पर प्लॉट देने से इनकार करदिया। आवंटी अब दर-दर भटक रहे हैं लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हो रही। अब तक चार से अधिक कंपनियोंके खिलाफ मुकदमे हो चुके हैं और हजारों निवेशकों की करोड़ों की कमाई डूब चुकी है।
ऐसे करें जमीन की जांच
रजिस्ट्री ऑफिस या तहसील कार्यालय में भी जमीन की पड़ताल की जा सकती है। रजिस्ट्री ऑफिस में 11 साल के अंदर खरीदी और बेंची गईं जमीनों का इंडेक्स रजिस्टर होता है। इस इंडेक्स से खसरा नंबर यारजिस्ट्री की कॉपी दिखाकर जमीन के मालिक और इसकी खरीद फरोख्त के बारे में पड़ताल की जा सकतीहै। इसके लिए 11 रुपये फीस जमा करनी पड़ती है। इसके अलावा तहसील स्तर से भी जमीन से जुड़ीजानकारी मिल सकती है। इसके लिए रजिस्ट्रार कानूनगो कार्यालय या लेखपाल से मिलकर और तय फीसदेनी पड़ती है। इसके अलावा कलेक्ट्रेट स्थित अभिलेखागार (रेकॉर्ड रूम) में जमीन से जुड़े 50 साल तक केजमीनी दस्तावेजों की जांच पड़ताल की जा सकती है। वहीं, खतौनी की जांच के लिएwww.bhulekh.up.nic.in पर भी क्लिक किया जा सकता है।
मुश्किल हो जाएगा संभालना
लखनऊ सीमा से सटे हुए गांवों में दर्जनों बिल्डर हाईटेक टाउनशिप का विज्ञापन कर प्लॉट बेच रहे हैं।इनमें से कुछ का खुलासा हो चुका है और उनके खिलाफ सैकड़ों मामले थानों में दर्ज हैं। जानकारों की मानेंतो आने वाले पांच साल के भीतर ही इन इलाकों में कानून व्यवस्था के लिए भारी चुनौती पैदा होगी।आशंका है कि इन इलाकों में जमीन का धंधा करने वाले ज्यादातर बिल्डर जमीनें बेचने के बाद भागने कीफिराक में हैं।
यहां करें शिकायत
लखनऊ विकास प्राधिकरण
टाउनशिप का लाइसेंस शासन से एप्रूवल मिलने के बाद एलडीए देता है। ऐसे में अपनी शंकाएं शांत करने केलिए आपके पास सबसे विश्वसनीय संस्था एलडीए ही है। प्राधिकरण के चौथे तल पर हाईटेक टाउनशिपऔर इंटीग्रेटेड टाउनशिप से जुड़े मामलों को देखने के लिए अलग विभाग बना हुआ है। यहां सुबह 10 बजे सेशाम 6 बजे तक पूछताछ की जा सकती है।
कंज्यूमर कोर्ट
20 लाख रुपये तक की शिकायत जिला कंज्यूमर कोर्ट में की जा सकती है। सादे पेपर पर अपनी शिकायतलिखकर आवेदन किया जा सकता है। बिना किसी वकील की मदद के भी अपना पक्ष रखा जा सकता है। 20 लाख से एक करोड़ तक का मामला स्टेट कंज्यूमर कोर्ट और इससे ज्यादा रकम की शिकायतें नेशनलकंज्यूमर कोर्ट में सुनी जाती हैं। वहां भी पैरवी के लिए वकील की कोई मजबूरी नहीं है। यानी यहां लड़ाई केलिए केवल इरादे की जरूरत है।
जिला प्रशासन
विनियमित क्षेत्र में मकान या ग्रुप हाउसिंग की योजनाओं का नक्शा पास करने का जिम्मा रेगुलेटरी बोर्डका होता है। इसमें उस क्षेत्र के एसडीएम या एडीएम के साथ आवास एवं शहरी नियोजन के अधिकारी भीशामिल होते हैं। ऐसे में अगर किसी तरह की दिक्कत या धांधली की आशंका हो तो जिला प्रशासन से भीसंपर्क किया जा सकता है।
क्रेडाई
रियल इस्टेट कंपनियों पर निगरानी का दावा करने वाली यह इकलौती निजी क्षेत्र की संस्था है। कंफेडरेशनऑफ रियल इस्टेट डिवेलपरर्स ऐसोसिएशन ऑफ इंडिया की वेबसाइट http://www.credai.org परशिकायत दर्ज कर सकते हैं। इसके अलावा एसोसिएशन के दिल्ली स्थित कार्यालय के फोन नंबर :(011) 43126262/ 43126200 पर भी बात कर शंकाएं दूर कर सकते हैं।
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इनको है लाइसेंस
-हाईटेक टाउनिशप के लिए अंसल एपीआई, सहारा, गर्ग के पास लाइसेंस है।
-इंटीग्रेटेड टाउनशिप के लिए (एलडीए से) ओमेक्स, विराज, एएनएस, शिप्रा, अमरावती, इमरा एमवीएफ, एल्डिको के पास लाइसेंस है।
-इंटीग्रेटेड टाउनिशप के लिए (आवास एवं विकास परिषद से) डीएलएफ, ओपस, एलाइंस और एल्डिको केपास लाइसेंस है।
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बोले जिम्मेदार::::::::::::::
लखनऊ का दायरा तेजी से बढ़ रहा है। इसके साथ ही यहां मकान की जरूरत भी बढ़ रही है। आवास एवंशहरी नियोजन के आंकड़ों पर यकीन करें तो क्षेत्रफल के लिहाज से आने वाले दिनों में लखनऊ दिल्ली केबराबर भी हो जाएगा। इसके विस्तार का आंकड़ा करीब 135 प्रतिशत के करीब है। वर्ष 1987 में लखनऊ काक्षेत्रफल 7980 हेक्टेयर था, जो 2004 में बढ़कर 16270 हेक्टेयर हो गया। दो वर्ष पहले तक इसके 23 हजारहेक्टेयर से भी ज्यादा होने का अनुमान है। अभी अधिग्रहण की गईं पुरानी जमीनों का पूरा इस्तेमाल हुआनहीं है और सरकार ने लखनऊ के विस्तारित क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए रिंग रोड का दायरा 10 किमी आगेबढ़ा दिया। इस दायरे में आने वाले गांवों का अधिग्रहण अभी शुरू नहीं हुआ है, जिसका सीधा फायदा बिल्डरउठा रहे हैं। अब वे इन जमीनों को महायोजना का हिस्सा बताकर बेच रहे हैं। इसका सबसे बुरा असरमहायोजना पर ही पड़ेगा।
रिपुंजय पटेल, टाउन प्लानर, लखनऊ
शहर के बाहरी इलाकों में तेजी से अवैध कॉलोनियां बस रही हैं। इन पर किसी का अंकुश नहीं है। बिल्डरजमीनें खरीदकर जिस तेजी से अनियोजित तरीके से प्लॉटिंग कर रहे हैं, उसके चलते आने वाले दिनों मेंइन इलाकों की हालत मलिन बस्तियों से भी बदतर हो जाएगी। इसकी आशंका को देखते हुए ही मैंनेसरकार से ग्रेटर नोएडा की तर्ज पर ग्रेटर लखनऊ डिवेलपमेंट अथॉरिटी का प्रस्ताव भी दिया था। इसमेंलखनऊ सीमा से सटे सभी विनियमित क्षेत्रों को एलडीए के दायरे में लाए जाने का सुझाव भी शामिल था।मैं अब भी इस कोशिश में हूं कि इसे जल्द से जल्द अमलीजामा पहनाया जा सके। देरी का सबसे बुराखामियाजा शहर के नियोजित विकास की सरकारी कोशिशों पर ही पड़ेगा। शुरुआती चरण में मेरी तरफ सेबाराबंकी समेत कुछ करीबी जिलों के 300 गांवों को शामिल करने का सुझाव था। इस दिशा में सरकार कीतरफ से भी कदम बढ़ाया गया है।
शिव प्रताप यादव, प्रभारी मंत्री, उप्र
रियल इस्टेट में फर्जी टाउनशिप के नामों से कई कंपनियां मैदान में आ गई हैं। इसका सबसे बुरा असररियल इस्टेट की अग्रणी कंपनियों को हो रहा है। इसको गंभीरता से लेते हुए कंफेडरेशन ऑफ रियल इस्टेटडिवेलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीआरईडीएआई) ने कदम बढ़ाया है। फेडरेशन ने लखनऊ चैप्टर केजरिए इस फर्जीवाड़े पर लगाम लगाने की कवायद शुरू की है। लखनऊ की सभी रियल इस्टेट कंपनियों कीसूची बनाकर उसे फेडरेशन की वेबसाइट पर डाला जाएगा। फेडरेशन का सदस्य बनने के बाद उन परमानकों के मुताबिक ही काम करने का दबाव होगा। उपभोक्ताओं की शिकायत पर दागी कंपनियों को इससूची से बाहर करते हुए उनके नाम वेबसाइट पर जारी कर दिया जाएगा। इसका सबसे ज्यादा फायदा उनलोगों को होगा जो अपनी गाढ़ी कमाई से अपना आशियाने का सपना पूरा करना चाहते हैं। फेडरेशनलखनऊ के रियल इस्टेट को फर्जी कंपनियों को बेनकाब करने के लिए जल्द ही अभियान भी चलाएगा। जोलोग भी किसी रियल इस्टेट कंपनी को लेकर दुविधा में हैं, वे फेडरेशन की वेबसाइटhttp://www.credai.org पर जाकर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

लख़नऊ की रियल स्टेट की जानकारी रखने वाली टीम से सम्पर्क करे—9807029121
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