लखनऊ :राज्यपाल रामनाईक ने आपत्ति किया है की बिना विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव हुए रामगोविंद चौधरी को हडबडी में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया अखिलेश के इस फैसले से सवाल खड़े हो रहे है . राज्यपाल का कहना है की नेता विरोधी दल बनाने में विपक्ष को जल्दबाजी नही करनी चाहिए थी .
अखिलेश के फैसले को लेकर पहले से सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर अखिलेश ने चाचा शिवपाल यादव और आजम खां जैसे कद्दावर लोगों को दरकिनार कर चौधरी के जिम्मे योगी से लड़ने की कमान क्यों सौंप दी.
दरअसल, रामगोविंद चौधरी को नेता प्रतिपक्ष बनाकर अखिलेश ने अपने कोर यादव वोटर को भी एक संदेश देने की कोशिश की है. क्योंकि, चुनाव के वक्त कई जगहों पर यादव मतदाता भी एसपी से छिटक गए थे. एक बार फिर से अपने कोर वोटर को पार्टी के साथ जोड़ने की कोशिश हो रही है.
चौधरी इतने वरिष्ठ हैं कि इन्हें आगे कर अखिलेश यादव ने विधायक बने चाचा शिवपाल यादव को भी एक बार फिर से पीछे धकेल दिया है. इसके पीछे सपा सुप्रीमो अखिलेश की रणनीति यह होगी कि पूर्वांचल में पार्टी को मजबूत करना साथ ही परिवारवाद और ध्रुविकरण को रोकना मुख्य वजह रहा है .
लेकिन, आज़म खां जैसे पार्टी के कद्दावर नेता को दरकिनार करने के पीछे भी अखिलेश यादव की सोची समझी रणनीति है. दरअसल, 2007 में मायावती सरकार के वक्त भी नेता प्रतिपक्ष के रूप में आज़म खां को ही जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसका फायदा भी हुआ और 2012 में यादव के साथ मुस्लिम गठजोड़ के दम पर एसपी सत्ता में जोरदार तरीके से वापसी करने में कामयाब रही.
शायद अखिलेश को इस बात का डर सता रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने आज़म खां को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद ध्रुवीकरण होने का खतरा फिर पैदा होगा. ऐसे में फायदा एक बार फिर से योगी की बीजेपी उठा ले जाएगी.
फिलहाल समाजवादी पार्टी के भीतर घमासान नहीं दिख रहा है, लेकिन, अंदर की चिंगारी कब सामने आ जाए ये कह पाना मुश्किल है. ऐसी सूरत में सरकार से निपटने के साथ-साथ पार्टी के भीतर सबको साथ लेकर चलने की बड़ी जिम्मेदारी नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी पर होगी.