ब्रिटेन की सियासत में भारतीयों का दबदबा बढ़ रहा है। ब्रिटेन में हुए आम चुनाव पर नजर डालें तो यह साफ हो जाएगा कि यूके की राजनीति में भी भारतीय मूल के लोगों का वर्चस्व बढ़ रहा है। यहां सत्ता पक्ष से भारतीय मूल के सात सांसद चुनाव जीतने में सफल रहे हैं।
पिछले आम चुनाव में कंज़र्वेटिव पार्टी के महज पांच सांसद थे, लेकिन इस बार उनकी संख्या बढ़कर सात हो गई है। इस मामले में लेबर पार्टी पीछे नहीं है। इस पार्टी से भारतीय मूल के सात उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल हुए हैं। इस तरह से भारतीय मूल के लोगों का सरकार व विपक्ष दोनों में दबदबा रहेगा। बता दें कि ब्रिटेन में करीब 15 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं।
ब्रिटेन की नई सरकार में गृह मंत्री पद के लिए जो नाम सबसे आगे चल रहा है, वह भारतीय मूल की महिला हैं। भारत में वह गुजरात मूल की महिला हैं। यह उम्मीद की जा रही है कि उन्हें ब्रिटेन का गृह मंत्री बनाया जा सकता है। जी हां, भारतीय मूल की प्रीति पटेल ब्रिटेन में गठित नई सरकार में गृह मंत्री बन सकती है। बता दें कि भारतीय मूल की 47 वर्षीय प्रीति ब्रिटेन में ब्रेग्जिट समर्थकों का प्रमुख चेहरा हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की चहेती हैं प्रीति
लंदन में भारतीय समुदाय के बीच वह बहुत लोकप्रिय हैं। यही कारण है कि प्रीति ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोगों के सभी प्रमुख कार्यक्रमों में अतिथि होती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक के तौर पर भी जानी जाती हैं। यह निकटता इसलिए भी है क्योंकि वह गुजरात मूल की हैं। इसी के चलते पूर्व ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन ने उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की लंदन यात्रा का प्रभार सौंपा था।
दक्षिणपंथी रुझानों के कारण जाॅनसन की प्रिय हैं प्रीति
प्रीति पटेल को कंजरवेटिव पार्टी के मौजूदा दौर में सबसे चर्चित नेताओं में से गिना जा रहा है। जॉनसन की ही तरह वह भी दक्षिणपंथी रुझान के लिए जानी जाती हैं। प्रीति को 2017 में इजरायल की निजी यात्रा के दौरान प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने के कारण पद छोड़ना पड़ा था। 2017 में परिवार के साथ छुट्टियां मनाने के लिए वह इजरायल गई थीं। इस यात्रा में उन्होंने ब्रिटिश सरकार या ब्रिटिश दूतावास को जानाकरी दिए बिना इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू और वहां के अधिकारियों से भेंट की थी। इस यात्रा पर विवाद के बाद उन्हें इंटरनैशनल डिवेलपमेंट सेक्रेटरी यानी अंतरराष्ट्रीय विकास मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
भारतीयों को लुभाने के लिए नेताओं ने चलाया अभियान
ब्रिटेन के आम चुनाव में लंदन का नीसडेन मंदिर भी सुर्खियों में रहा। चुनाव के दौरान जोरिस जॉनसन ने इस मंदिर में दर्शन दिया। इसका मकसद ब्रिटेन में बसे हिंदुओं का यह पैगाम देना था कि कंजर्वेटिव पार्टी भारत और भारतीय मूल के लोगों की दोस्त हैं। इतना ही नहीं जॉनसन ने इस मंदिर में दर्शन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ निजी स्तर पर दोस्ती का भी दावा किया।
भारतीय मूल के सांसदों का कुनबा बढ़ा
ब्रिटिश संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स में भारतीय मूल के सांसदों का कुनबा बढ़ गया है। भारतीय मूल के 11 सांसद दोबारा चुनाव जीतने में सफल रहे। चार नए चेहरे भी संसद पहुंचे हैं। 2017 के चुनाव में 12 भारतवंशी उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी। पहली बार चुनाव जीतने वालों में गगन मो¨हदर, क्लेयर कूटिन्हो, नवेंद्रु मिश्रा और मुनीरा विल्सन हैं। मोहिंदर ने कंजरवेटिव पार्टी के टिकट पर हार्टफोर्डशायर साउथ वेस्ट सीट से जीत दर्ज की। नवेंद्रु लेबर पार्टी से स्टॉकपोर्ट सीट से चुनाव जीते हैं। जबकि विल्सन लिबरल डेमोक्रेट्स के टिकट पर साउथ-वेस्ट लंदन की सीट से निर्वाचित हुई। आसान जीत के साथ दोबारा संसद पहुंचने वाले भारतीय मूल के कंजरवेटिव उम्मीदवारों में प्रीति पटेल भी शामिल हैं। इसी पार्टी से इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति के दामाद ऋषि सुनक और आलोक शर्मा भी दोबारा संसद पहुंचे। शैलेस वारा ने नॉर्थ वेस्ट कैंब्रिजशायर और गोवा मूल की सुएला ब्रावरमैन ने फेयरहम सीट से जीत दर्ज की।
पिछले चुनाव में पहली सिख महिला के तौर पर संसद पहुंचने का रिकार्ड बनाने वाली प्रीत कौर गिल बर्मिघम एजबेस्टन सीट से फिर चुनी गई हैं। तनमनजीत सिंह ढेसी दक्षिण-पूर्व इंग्लैंड की स्लफ सीट से भारतीय मूल के ही कंजरवेटिव उम्मीदवार कंवल तूर गिल को हराकर दोबारा संसद पहुंचे। वीरेंद्र शर्मा ने ईलिंग साउथहाल सीट से आसान जीत दर्ज की। लीजा नंदी विगान सीट और सीमा मल्होत्रा फेल्थम एंड हेस्टन सीट से दोबारा निर्वाचित हुई। पूर्व सांसद कीथ वाज की बहन वेलरी वाज ने वाल्सल साउथ सीट पर भारतीय मूल के कंजरवेटिव उम्मीदवार गुरजीत बैंस को परास्त किया।
63 भारतीयों ने लड़ा था चुनाव
भारतीय मूल के 63 लोगों ने चुनाव लड़ा था। इनमें 25 को कंजरवेटिव पार्टी ने चुनाव मैदान में उतारा था। लेबर पार्टी से 13, ब्रेक्जिट पार्टी से 12 और लिबरल डेमोक्रेट्स से आठ भारतवंशियों ने चुनाव लड़ा था। बाकी अन्य दलों के उम्मीदवार या निर्दलीय रहे। इनमें से कंजरवेटिव और लेबर पार्टी से सात-सात भारतीय मूल के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। जबकि लिबरल डेमोक्रेट्स से एक भारतवंशी को जीत मिली।