बिहार लोकायुक्त अधिनियम में संशोधन, अब फर्जी शिकायत दर्ज की तो होगी 3 साल तक की जेल

लोकायुक्त कार्यालय में झूठा मुकदमा रोकने के लिए बिहार लोकायुक्त अधिनियम में संशोधन किया गया है। गुरुवार को प्रभारी मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादन ने विधानसभा में संशोधन विधेयक पेश करते हुए कहा कि लोकायुक्त कार्यालय ने यह महसूस किया कि फर्जी शिकायतों को रोकने के लिए मिथ्या शिकायत करने वालों पर कार्रवाई जरूरी है। इसे देखते हुए ही बिहार सरकार ने लोकायुक्त संशोधन विधेयक लाया है।

मंत्री ने कहा कि इसके लिए धारा 25 में एक नई धारा 25-क जोड़ा गया है। इसके तहत अगर कोई मिथ्या परिवाद दायर करता है, जान-बूझकर या दुर्भाव से परिवाद दायर करेगा तो उसे छह महीने तक जेल की सजा काटनी होगी। सजावधि का विस्तार तीन साल तक हो सकता है। साथ ही पांच हजार का जुर्माना भी देना होगा। जिस मामले की जांच लोकायुक्त करेंगे, उस पर सुनवाई सत्र न्यायालय, मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के न्यायालय के सिवाय कोई न्यायालय संज्ञान नहीं लेगा। जुर्माने की राशि में न्यायालय कटौती कर सकता है। 

उद्देश्य यह है
मंत्री ने कहा कि विधेयक में संशोधन का उद्देश्य यह है कि लोकायुक्त कार्यालय में कोई झूठा मुकदमा नहीं करे। देश के अन्य राज्यों की तरह ही बिहार में अब अगर कोई लोकसेवकों के खिलाफ फर्जी मामला दर्ज करेगा तो वैसे लोगों को जेल और जुर्माने की सजा भुगतनी होगी। कोशिश है कि लोकायुक्त कार्यालय में वैसे ही मामले दर्ज किए जाएं जो वास्तविक हो। लोकसेवकों को नाहक परेशान करने के लिए कोई मामला दर्ज न करे। 
 
विपक्ष ने किया विरोध
विधेयक के संशोधन का विपक्षी सदस्यों ने विरोध किया। अख्तरुल इमान ने कहा कि जुर्माना व जेल की सजा तय होने के बाद लोकसेवकों के खिलाफ शिकायत करने वालों की मन:स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। संभव है कि कुछ लोग झूठे मुकदमे दर्ज करते होंगे लेकिन अधिकतर शिकायतें सही रहती है, इसका भी ख्याल रखा जाना चाहिए। हकीकत है कि लोकसेवकों में भ्रष्टाचार बढ़ा है। आज अंचलाधिकारी से अधिक कमाई उस कर्मचारी की है जो खेत का रसीद काटता है। ललित कुमार यादव ने कहा कि संशोधन के पहले इस पर जनमत संग्रह होना चाहिए। इस संशोधन के बाद घोटालेबाजों का मन बढ़ेगा। अजय कुमार ने कहा कि जुर्माना हो पर जेल का प्रावधान समाप्त किया जाना चाहिए। अगर बहुत जरूरी हो तो सात दिन का जेल और 10 रुपए का जुर्माना किया जाए। 15 दिनों के भीतर सुनवाई हो। 

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