सार
- ग्रीन डेवलपमेंट के लिए चाहिए हिमालयी राज्यों को ग्रीन बोनस
- पर्यावरणीय संरक्षण का बड़ा दायित्व, बदले में कुछ नहीं
- केंद्र के आम बजट से ग्रीन बोनस की उम्मीद
विस्तार
आम बजट में ग्रीन बोनस को लेकर पर्वतीय राज्यों को काफी उम्मीदें है। पर्यावरणीय संरक्षण की बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे इन राज्यों विकास के अलग मॉडल की आवश्यकता है, तभी जंगलों, नदियों, झील और झरनों की हिफाजत करते हुए तरक्की की राह पर बढ़ा जा सकता है। ये तभी संभव है जब केंद्र सरकार वित्तीय सहायता प्रदान करे।
लंबे अरसे से उत्तराखंड व अन्य पर्वतीय राज्य केंद्र से ग्रीन बोनस देने की गुहार लगा रहे हैं। लेकिन हर बार आम बजट में ग्रीन बोनस की उम्मीदों पर केंद्र सरकार खरी नहीं उतरी है। एक फरवरी को पेश होने वाले आम बजट में मोदी सरकार ग्रीन बोनस पर मेहरबान होगी।
पर्वतीय राज्यों में हरित विकास (ग्रीन डेवलपमेंट) की वकालत हो रही है। लेकिन हरित विकास के लिए भी सीमित संसाधनों वाले इन राज्यों को धन की दरकार है। पर्यावरण संरक्षण के दायित्व की पूर्ति के लिए ये राज्य बड़ी कीमत चुका रहे हैं।
हिमालयी क्षेत्रों के जंगल, पानी, मिट्टी, हवा और फसलें ही ग्रीन बोनस हैं। लंबे समय से ग्रीन बोनस की मांग की जा रही है, लेकिन हर बार इसकी अनदेखी हो रही है। इसकी एक वजह यह भी है कि केंद्र में ग्रीन बोनस की पैरवी दमदार तरीके से नहीं हो रही है। नीति आयोग के समक्ष सही आंकड़े प्रस्तुत करने की जरूरत है। उम्मीद है कि आम बजट में केंद्र सरकार ग्रीन बोनस के लिए विशेष पैकेज की घोषणा करेगी।
-पद्मभूषण डॉ. अनिल जोशी, पर्यावरणविद