बिलासपुर. पेट दर्द का इलाज कराने सरकारी अस्पताल गए अविवाहित युवक की बगैर उसकी सहमति के नसबंदी कर दी गई। उसे बाकायदा 1100 रुपए और प्रमाण पत्र दिए गए। अनपढ़ युवक इसे लेकर वापस अपने गांव पहुंचा तो दूसरे ग्रामीणों ने उसे नसबंदी होने की जानकारी दी, इसके बाद उसने थाने में एफआईआर करवाई।
तहसीलदार की रिपोर्ट के आधार पर एसडीएम ने दोषी डॉक्टरों व अन्य कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की थी। उसकी याचिका पर दिए गए फैसले में जस्टिस गौतम भादुरी की बेंच ने राज्य सरकार को क्षतिपूर्ति के रूप में 2 लाख 50 हजार रुपए देने के निर्देश दिए हैं। राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ तहसील स्थित चांदीजोब गांव में रहने वाले 20 वर्ष के प्रीतम सोनवानी के पेट में दर्द हो रहा था।
वह 26 सितंबर 2011 को डोंगरगांव के सरकारी अस्पताल पहुंचा। यहां उसे भर्ती कर लिया गया, इसके बाद उससे कुछ दस्तावेजों में दस्तखत करवाए गए। उसे एनेस्थीसिया देने के बाद उसका ऑपरेशन किया गया। उसे डिस्चार्ज करने के दौरान अस्पताल के कर्मचारियों ने बाकायदा 1100 रुपए और एक प्रमाणपत्र दिया। युवक गांव पहुंचा, कुछ दिनों बाद अन्य ग्रामीणों ने उसका प्रमाणपत्र देखकर बताया कि उसकी नसबंदी कर दी गई है। उसने 17 नवंबर 2011 को थाने में एफआईआर दर्ज करवाई, इसमें कहा कि डॉक्टरों ने बगैर उसकी सहमति के नसबंदी का ऑपरेशन कर दिया है। उसने जिम्मेदार डॉक्टर और अन्य कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। इधर, मामले की विभागीय स्तर पर भी जांच हुई।
तहसीलदार ने ऑपरेशन करने वाले डॉ. ताम्रकार और सेक्टर पर्यवेक्षक संतराम वर्मा व ए गनवीर सिंह को जिम्मेदार मानते हुए कार्रवाई की अनुशंसा करते हुए डोंगरगढ़ के एसडीएम को रिपोर्ट सौंपी थी। एसडीएम ने इस रिपोर्ट के आधार पर राजनांदगांव के कलेक्टर को रिपोर्ट भेजी और कार्रवाई की अनुशंसा की थी।
इधर, युवक ने वर्ष 2013 में हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस गौतम भादुरी की बेंच ने बगैर सहमति के अविवाहित युवक की नसबंदी को बलपूर्वक नसबंदी करने और डॉक्टरी लापरवाही का प्रकरण माना है। हाईकोर्ट ने राज्य शासन को पीड़ित युवक को क्षतिपूर्ति के रूप में 2 लाख 50 हजार रुपए का भुगतान करने के निर्देश दिए हैं। राज्य सरकार को यह राशि जिम्मेदार अधिकारी से वसूल करने की छूट दी गई है।