बिहार के सभी शहरी निकायों के पार्षद अब अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके किसी निविदा को प्रभावित नहीं कर सकेंगे। वे खुद या उनके परिवार का कोई सदस्य ऐसा कोई ठेका नहीं ले सकेंगे, जिससे जुड़ी समिति में पार्षद सदस्य होंगे। राज्य सरकार ने निकाय प्रतिनिधियों द्वारा सरकारी ठेकों और अन्य आर्थिक लाभ के कार्यों में दखल को रोकने के लिए नगर पालिका अधिनियम 2007 की धारा 53 में संशोधन कर दिया है।
विधानसभा ने गत दिवस बिहार नगर पालिका संशोधन विधेयक-2021 पारित किया है। इस संशोधन ने निकायों में सरकारी ठेकों की बंदरबाट करने वाले निकाय प्रतिनिधियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। अब वार्ड पार्षद ऐसी किसी निविदा के निस्तारण संबंधी समिति की बैठक का हिस्सा नहीं बन सकेंगे, जिससे उन्हें या उनके परिवार के किसी सदस्य को सीधा लाभ पहुंचता हो। दरअसल राज्य के विभिन्न निकायों में चल रही केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत कराए जाने वाले कार्यों को वहां के कुछ वार्ड पार्षद प्रभावित करते हैं। कई मामलों में तो वे खुद या उनकी पत्नी अथवा बच्चे खुद ठेकेदारी कर रहे हैं।
ठेकों में निकाय प्रतिनिधियों की दखल के चलते सरकारी कार्यों की गति और गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती हैं। ऐसे कई मामले बीते दिनों में विभाग और सरकार तक भी पहुंचते रहे हैं। इन्हीं सबको देखते हुए राज्य सरकार द्वारा नगर पालिका विधेयक में कई संशोधनों में इसे भी शामिल किया गया है। इसके अलावा शहरी निकायों की सबसे बड़ी समस्या बन चुके अतिक्रमण पर भी लगाम लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। अब अतिक्रमणकारियों को 20 हजार तक जुर्माना चुकाना होगा। वहीं सशक्त स्थायी समिति के अधिकारों को भी घटाया गया है। अब वे पदधारकों को बहुमत से प्रस्ताव पारित कराकर भी हटा नहीं पाएंगी। वहीं पदाधिकारियों के ऊपर लटकने वाली तबादले की तलवार भी हट जाएगी।