यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में दर्जनों बच्चे ऑक्सीजन की कमी से तड़प-तड़प कर मर गए. पिछले पांच दिन में बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़कर 63 तक पहुंच गया है. दम तोड़ते मासूम और उनके बिलखते परिजनों को देखकर हर किसी का कलेजा पसीज जाता है.
बच्चों के मां-बाप और घरवालों की चीत्कार सुनकर कोई मेडिकल कॉलेज पर सवाल खड़ा कर रहा है. तो कोई ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी को कोसकर अपनी भड़ास निकाल रहा है. गुस्साए लोगों के निशाने पर योगी सरकार भी है.
लेकिन, योगी और उनके मंत्री इस मौके पर भी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा ही दिखा रहे हैं. जब विपक्षी नेताओं का गोरखपुर में जमावड़ा लगना शुरू हो गया तो योगी सरकार हरकत में आई. आनन-फानन में योगी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह लखनऊ से गोरखपुर के लिए रवाना हुए.
स्वास्थ्य मंत्री ने गोरखपुर में बीआरडी मेडिकल कॉलेज का जायजा लिया और फिर ऐसा बयान दे दिया जिसने पीड़ित परिवारों की दुखती रग पर मरहम लगाने के बजाए उनके दर्द को कई गुणा बढ़ा दिया.
‘हर साल अगस्त के महीने में बच्चे मरते हैं’
सिद्धार्थनाथ सिंह ने सबसे पहले ऑक्सीजन की कमी से किसी बच्चे की मौत की संभावना को खारिज कर दिया. लेकिन, इसके बाद मंत्री जी ने बच्चों की मौत पर जो तर्क दिए वो सबको हैरान कर गया. उन्होंने कहा कि हर साल अगस्त में बच्चे मरते हैं. अस्पताल में नाजुक बच्चे आते हैं. लेकिन, स्वास्थ्य मंत्री यहीं नहीं रुके. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पिछले कुछ सालों की अगस्त महीने की लिस्ट जारी करनी शुरू कर दी.
सिद्धार्थनाथ ने इस साल अगस्त में मरने वाले बच्चों की तुलना अखिलेश सरकार में मरने वाले बच्चों से करनी शुरू कर दी. हर कोई हैरान-परेशान होकर उनके द्वारा पेश तर्कों को सुन रहा था. लेकिन, स्वास्थ्य मंत्री अपनी ही धुन में मग्न थे. उन्हें लग ही नहीं रहा था कि मासूमों की मौत पर पर्दा डालने के लिए पिछली सरकार में मासूमों की मौत का चिठ्ठा खोलने में वो लगे हुए थे.
सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि अगस्त के महीने में इस इलाके में इंसेफेलाइटिस से ज्यादा मौतें होती है. उन्होंने कहा कि 2014 में अगस्त महीने में बीआरडी अस्पताल में 567 मौतें हुई थी यानी 19 मौत प्रतिदिन. 2015 के अगस्त में इसी अस्पताल में 22 मौतें प्रतिदिन हुईं. 2016 का भी आंकड़ा रखते हुए सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि पिछले साल भी अगस्त महीने में इस अस्पताल में 19-20 मासूमों की मौत हर दिन हुई है.
सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि 10 अगस्त को 23 बच्चों की मौत हुई हैं लेकिन ये मौतें ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई. हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया कि 2 घंटे तक ऑक्सीजन की सप्लाई में कमी आई थी लेकिन बच्चों की मौत इस वजह से नहीं हुई थी.
महकमे और सिस्टम की लापरवाही पर आंकड़ों की बाजीगरी से पर्दा
यूपी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जब गोरखपुर में आंकड़ों की बाजीगरी कर रहे थे, तो दूसरी तरफ मासूमों के परिजन छाती पीट-पीट कर रो रहे थे. लेकिन, मंत्री जी की कानों तक शायद उनकी आवाज नहीं पहुंच पा रही थी, वरना इस कदर अपने महकमे और सिस्टम की लापरवाही पर आंकड़ों की बाजीगरी से पर्दा नहीं डाल रहे होते.
लेकिन सिद्धार्थनाथ सिंह इतने पर ही ना रूके. उनकी तरफ से बच्चों की मौत का कारण भी गिना दिया गया. किसी बच्चे की किडनी फेल होने को मौत का कारण बताया गया तो किसी की मौत की वजह उसका लो वेट और लो प्रेशर होना ठहरा दिया गया.
कमोबेश यही हाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का रहा. गोरखपुर के सांसद के तौर पर वो इंसेफलाइटिस की गंभीर समस्या को संसद के भीतर उठाते रहे. इस मुद्दे को लेकर काफी धीर और गंभीर दिखते रहे. लेकिन, मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनके शहर में मासूम लगातार मर रहे हैं तो फिर उनका बयान भी कुछ गोलमोल सा ही लग रहा है.
सीएम योगी ने मीडिया से अपील की है कि वो इससे जुड़े तथ्यों को सही तरीके से पेश करे. योगी ने कहा कि मौत के आंकड़े अलग-अलग दिनों के हैं और इस मामले में भ्रम की स्थिति है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत हुई है तो ये जघन्य कृत्य है. उन्होंने कहा कि इस मामले में ऑक्सीजन सप्लायर की भूमिका की जांच हो रही है. इसके लिए मुख्य सचिव की अगुवाई में एक कमेटी गठित की गई है.
ऑक्सीजन की कमी की शिकायत नहीं की गई थी
मुख्यमंत्री योगी ने बीते 9 अगस्त को ही गोरखपुर के इस बीआरडी अस्पताल का दौरा किया था. उस दौरान उन्होंने गोरखपुर क्षेत्र के सात जिलों के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ मीटिंग भी की थी. लेकिन, तब ऑक्सीजन की कमी की शिकायत नहीं की गई थी. अब इस घटना के सामने आने के बाद योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि कई बच्चों की मौत की वजह प्री-मैच्योर डिलीवरी भी है, केवल ऑक्सीजन की कमी के चलते मौतें नहीं हुई हैं.
दर्जनों मासूमों की मौत के बाद बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के खिलाफ कार्रवाई तो हो चुकी है. लेकिन, बात इतने भर से बनती नहीं दिख रही है. सवाल पूछा जा रहा है कि क्या स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री की कोई जिम्मेदारी बनती है या नहीं.
इस सवाल को विपक्षी दल भी उठा रहे हैं. लेकिन, इससे ज्यादा उन मासूमों के माता-पिता सवाल पूछ रहे हैं जिनके आंसू पोंछने के बजाए सरकार के नुमाइंदे उनके जले पर और नमक छिड़कने का काम करने में लगे हैं.
SABHAR FT