ताजनगरी से प्रदेश के तीन शहरों में बेचे गए नकली इंजेक्शन कहीं मरीजों को तो नहीं लगा दिए गए। यह आशंका बलवती हो गई है। कारण कि तीनों शहरों से इनकी रिकवरी नहीं हो पा रही है। अधिकतर इंजेक्शन बेच दिए गए हैं। जाहिर है कि इनका इस्तेमाल भी किया गया होगा।
कर्नाटक की फर्म से आगरा के राजू ड्रग हाउस ने नकली डेका-ड्यूराबोलिन-50 एमजी इंजेक्शन की 2600 वायल खरीदी थीं। इन्हें एक फर्म को बेचा, लेकिन उसने पहचान लिए। लिहाजा इंजेक्शन वापस कर दिए गए।
राजू ड्रग हाउस यहीं नहीं माना। उसने इन्हें दोबारा हेमा मेडिकल स्टोर को बेच दिया। हेमा मेडिकल ने इन्हें कानपुर, लखनऊ और वाराणसी में बेच डाला
ड्रग विभाग के मुताबिक करीब 50 इंजेक्शन यहीं रह गए हैं। जबकि शेष इंजेक्शन तीनों शहरों में खपाए गए हैं। यह डील चूंकि अप्रैल में की गई थी। लिहाजा अब इसे एक महीने से अधिक का समय हो चुका है।
इतने समय में तीनों शहरों के मेडिकल स्टोर्स ने इंजेक्शन बेच दिए होंगे। इन्हें मरीजों को दिया गया होगा। मरीजों को फायदा हुआ या नुकसान, लिहाजा इस कोण से भी पूरे मामले की जांच की जरूरत है। दिक्कत यह कि ड्रग विभाग के पास इतने संसाधन नहीं हैं। सारा दारोमदार पुलिस पर है।
10 से अधिक बुकी रडार पर आए
इस खेल में सबसे बड़ी भूमिका बुकी निभाते हैं। चाहे कर्नाटक से लेकर आगरा की डीलिंग रही हो या फिर यहां से प्रदेश के तीन शहरों में नकली माल को खपाया जाना, बुकी ही सैटिंग करते हैं।
यानि इस मामले में आगरा के साथ तीन दूसरे शहरों के बुकियों की भूमिका भी खंगाली जा रही है। करीब 10 से अधिक नाम सामने आए हैं। इन पर शिकंजा कसने की तैयारी है।
कोविड मरीजों पर भी किया प्रयोग
कोविड मरीजों के इलाज में रेमडेसिविर के साथ कई इंजेक्शनों का इस्तेमाल किया गया। इसमें टोसिलोजुमाब और डेक्सा मीथासोन (डेक्सा) का भरपूर इस्तेमाल किया गया। डेक्सा सस्ता विकल्प था। इनकी अनुपलब्धता पर डाक्टरों ने दूसरे स्टेरायड का भी प्रयोग किया है। इसमें डेका-ड्यूराबोलिन-50 इंजेक्शन भी शामिल है। इस मामले में बड़ी जांच की जरूरत है।
हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि तीनों शहरों से कुछ माल बरामद हो जाए। वहां विभाग के अधिकारियों से सहयोग की अपेक्षा है। कुछ लोगों को चिह्नित किया गया है। उनसे पूछताछ की जाएगी।