पीएम मोदी के भाई बेचता है पतंग तो एक भाई भरता है पेट्रोल भाभी माजती है बर्तन

 

modi mataपीएम नरेंद्र मोदी परिवार का हर सदस्य लगभग लाइमलाइट से दूर किसी आम आदमी की तरह ही जिंदगी बिता रहा है। आइए जानते हैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाइयों के बारे मे कहा जाता है कि वे हमारे देश के लगभग सभी प्रधानमंत्री अमूमन परिवार वाले ही रहे हैं। नेहरू के साथ बेटी इंदिरा रहती थीं। उसके बाद उनके उत्तराधिकारी लालबहादुर शास्त्री 1, मोतीलाल नेहरू मार्ग पर अपने पूरे परिवार के साथ रहते थे। लालबहादुर शास्त्री के साथ बेटा-बेटी, पोता-पोती सभी रहते थे। इंदिरा गांधी के बेटे राजीव और संजय तथा उनका परिवार भी साथ ही रहता था। यहां तक कि अविवाहित प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ जब वे 1998 में जब 7, रेसकोर्स रोड में रहने आएं तो उनकी दत्तक पुत्री नम्रता और उनके पति रंजन भट्टाचार्य का परिवार भी साथ रहने आया। लकिन नरेंद्र दामोदर दास मोदी के साथ ऐसा नही है प्रधानमन्त्री आवास में अकेले रहते है पीएम साहब उनके भाई और माँ इस आवास से दूरी बनाने वाले पहले प्रधानमन्त्री है जो सन्यासी की तरह जीवन जीना पसंद करते है ।

 आरएसएस का नियम है कि प्रचारक को परिवार के सदस्यों से दूरी बनाए रखनी चाहिए, सो, मोदी ने 1971 में परिवार से दूरी बनानी शुरू की. वे संघ के काम पर ज्यादा ध्यान देने लगे और ब्रह्मचारी का जीवन जीने लगे. वर्षों से यही कार्यक्रम रहा. हालांकि मोदी राजनैतिक सीढिय़ां चढ़ते गए. फिर भी, उनके रिश्तेदार उन्हें गर्व से याद करते हैं. ऐसा ही गर्व का भाव प्रधानमंत्री के मन में रहता है और वे इससे राहत महसूस करते हैं कि वे रिश्तेदारों की किसी तरह की तरफदारी की मांग से बचे हुए हैं. प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, ”सचमुच मेरे भाइयों और भतीजों को इसका श्रेय दिया जाना चाहिए कि वे साधारण जीवन जी रहे हैं और कभी मुझ पर दबाव बनाने की कोशिश नहीं करते. आज की दुनिया में यह वाकई दुर्लभ है.”

 

सोमभाई मोदी :

Family of the pm modi

पीएम नरेंद्र मोदी के बड़े भाई सोमनाथ मोदी गुजरात में बुजुर्गों की देखभाल के लिए संस्था चलाते हैं। सोमभाई मोदी के बारे में तब पता चला जब वो एक एनजीओ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। उस कार्यक्रम में सोमभाई ने कहा था, मैं नरेंद्र मोदी का भाई हूं, प्रधानमंत्री का नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मैं देश के 125 करोड़ नागरिकों में से एक हूं। आपको बता दें कि सोमभाई पिछले ढाई साल से प्रधानमंत्री से नहीं मिले हैं। 

 हालांकि परिवार के कुछ सदस्य मोदी के सबसे छोटे भाई प्रह्लाद मोदी से दूरी बनाए रखते हैं. वे सस्ते गल्ले की एक दुकान चलाते हैं और गुजरात राज्य सस्ता गल्ला दुकान मालिक संगठन के अध्यक्ष हैं. वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली में पारदर्शिता लाने के मामले में मुख्यमंत्री मोदी की पहल से नाराज रहते हैं और दुकान मालिकों परछापा डालने के खिलाफ प्रदर्शन कर चुके हैं.

परिवार के प्रति उदासीन क्यों हैं पीएम मोदी – 

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प्रधानमंत्री मोदी के पिता दामोदरदास मूलचंद मोदी और उनकी पत्नी हीराबेन के छह बच्चों में से तीसरे नंबर के पर हैं। जिन्होंने अपने परिवार को गुजरात का सीएम और फिर देश का पीएम बनने के बाद भी दुनिया की चका-चौध से दूर रखा जो लोगों को उनके निःस्वार्थ जीवन के बारे में बताने के लिए काफी है। आपको बता दें कि नोटबंदी के बाद 14 नवंबर को जब पीएम मोदी गोवा में एक सभा को संबोधित कर रहे थें, उन्होंने भावुक होकर कहा, ”मैं इतनी ऊंची कुर्सी पर बैठने के लिए पैदा नहीं हुआ। मेरा जो कुछ था, मेरा परिवार, मेरा घर…मैं सब कुछ देशसेवा के लिए छोड़ आया।” इतना कहते समय उनका गला भर्रा गया था। 

 

 

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यह कोई बड़बोलापन नहीं है. सोमभाई प्रधानमंत्री मोदी से पिछले ढाई साल से नहीं मिले हैं, जब से उन्होंने देश की गद्दी संभाली है. भाइयों के बीच सिर्फ फोन पर ही बात हुई है. उनसे छोटे पंकज इस मामले में थोड़ा किस्मत वाले हैं. गुजरात सूचना विभाग में अफसर पंकज की भेंट अपने मशहूर भाई से इसलिए हो जाती है कि उनकी मां हीराबेन उन्हीं के साथ गांधीनगर के तीन कमरे के सामान्य-से घर में रहती हैं. प्रधानमंत्री अपनी मां से मिलने पिछले दो महीने में दो बार आ चुके हैं और मई में हफ्तेभर के लिए दिल्ली आवास में भी ले आए थे.

वे अपने परिवार को कितना पीछे छोड़ आए, यह गुजरात का एक चक्कर लगा लेने से ही जाहिर हो जाता है. मोदी कुनबा आज भी उसी तरह गुमनाम मध्यवर्गीय जिंदगी जी रहा है जैसी वह 2001 में नरेंद्र भार्ई के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के समय जीता था. प्रधानमंत्री के एक और बड़े भाई 72 वर्षीय अमृतभाई एक प्राइवेट कंपनी में फिटर के पद से रिटायर हुए हैं. 2005 में उनकी तनख्वाह महज 10,000 रु. थी.  वे अब अहमदाबाद के घाटलोदिया इलाके में चार कमरे के मध्यवर्गीय आवास में रिटायरमेंट के बाद वाला जीवन जी रहे हैं. उनके साथ बेटा, 47 वर्षीय संजय, उसकी पत्नी और दो बच्चे रहते हैं. संजय छोटा-मोटा कारोबार चलाते हैं. संजय के बेटे नीरव और बेटी निराली दोनों इंजीनियरिंग पढ़ रहे हैं. आइटीआइ पास कर चुके संजय अपनी लेथ मशीन पर छोटे-मोटे कल-पुर्जे बनाते हैं और ठीक-ठाक जीवन जी रहे हैं, लेकिन मध्यवर्गीय दायरे में ही. 2009 में खरीदी गई कार घर के बाहर ढकी खड़ी रहती है. उसका इस्तेमाल खास मौकों पर ही होता है क्योंकि पूरा परिवार ज्यादातर दो-पहिया वाहनों पर ही चलता है.संजय का परिवार बतलाता है कि उन लोगों को अभी किसी यात्री विमान को अंदर से देखने का मौका नहीं मिला है. वे लोग मोदी से सिर्फ दो बार मिले हैं. एक बार 2003 में बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने गांधीनगर के अपने घर में पूरे परिवार को बुलाया था और दूसरी बार 16 मई, 2014 को जब बीजेपी ने लोकसभा में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी (फिर उसी गांधीनगर के घर में). सत्ताधर रिहाइशी सोसाइटी में हर कोई जानता है कि अमृतभाई प्रधानमंत्री के भाई हैं. लेकिन स्थानीय किंवदंतियों पर यकीन करें तो संजय का जिस बैंक में खाता है, उसके अधिकारी इस तथ्य से परिचित नहीं हैं. उनके बेटे प्रियांक को हाल में पैसा निकालने के लिए लंबी लाइन में खड़े देखा गया.

पीएम मोदी के चाचा नरसिंहदास के बेटे अशोकभाई वाडनगर में एक छोटी दुकान में पतंग, पटाखे और स्नैक्स बेचते हैं।

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 मोदी के बाकी कुनबे, उनके भाई, भतीजे, भतीजी या दूसरे रिश्तेदारों का जीवन संघर्षों और कठिनाइयों का ही है. दरअसल कुछ तो जिंदगी बेहद गरीबी में काट रहे हैं. मोदी के चचेरे भाई अशोकभाई (मोदी के दिवंगत चाचा नरसिंहदास के बेटे) तो वडऩगर के घीकांटा बाजार में एक ठेले पर पतंगें, पटाखे और कुछ खाने-पीने की छोटी-मोटी चीजें बेचते हैं. अब उन्होंने 1,500 रु. महीने में 8-4 फुट की छोटी-सी दुकान किराए पर ले ली है. इस दुकान से उन्हें करीब 4,000 रु. मिल जाते हैं. पत्नी वीणा के साथ एक स्थानीय जैन व्यापारी के साप्ताहिक गरीबों को भोजन कराने के आयोजन में काम करके वे 3,000 रु. और जुटा लेते हैं. इसमें अशोकभाई खिचड़ी और कढ़ी बनाते हैं ओर उनकी पत्नी बरतन मांजती हैं. ये लोग शहर में एक तीन कमरे के जर्जर-से मकान में रहते हैं.

अशोकभाई से बड़े भरतभाई वडनगर से दूर पालनपुर के पास लालवाड़ा गांव के एक पेट्रोल पंप पर काम कर अपना गुजर बसर करते हैं।     

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उनके बड़े भाई 55 वर्षीय भरतभाई भी ऐसी ही कठिन जिंदगी जीते हैं. वे वडऩगर से 80 किमी दूर पालनपुर के पास लालवाड़ा गांव में एक पेट्रोल पंप पर 6,000 रु. महीने में अटेंडेंट का काम करते हैं और हर 10 दिन में घर आते हैं. वडऩगर में उनकी पत्नी रमीलाबेन पुराने भोजक शेरी इलाके में अपने छोटे-से घर में ही किराना का सामान बेचकर 3,000 रु. महीने की कमाई कर लेती हैं. तीसरे भाई 48 वर्षीय चंद्रकांतभाई अहमदाबाद के एक पशु गृह में हेल्पर का काम करते हैं.

अशोकभाई और भरतभाई के चैथे भाई 61 वर्षीय अरविंदभाई कबाड़ी का काम करते हैं. वे वडऩगर और आसपास के गांवों में फेरी लगाकर पुराने तेल के टिन, और ऐसा कबाड़ खरीदते हैं और उसे ऑटोरिक्शा या राज्य ट्रांसपोर्ट की बस में ले आते हैं. इससे उन्हें 6,000-7,000 रु. महीने की कमाई हो जाती है, जो उनके और पत्नी रजनीबेन के लिए काफी है. उनका कोई बच्चा नहीं है. नरसिंहदास के बच्चों में भरतभाई और रमीलाबेन ही सबसे ज्यादा कमाई करते हैं. उनकी कमाई कई बार महीने में 10,000 रु. तक कमाई हो जाती है.

 

 

संजय के पास सबसे कीमती थाती वह स्मृति चिह्न है जिससे उनके चाचा के करीने से इस्तरी किए कपड़े पहनने की आदत का पता चलता है. मोदी शायद इस आयरन का इस्तेमाल अमृतभाई के साथ अहमदाबाद में 1969 से 1971 के बीच रहने के दौरान किया करते थे. संजय बताते हैं कि उन्होंने अपने मां-बाप को 1984 में इसे कबाड़ में बेचने से मना कर दिया था (लगता है, उन्हें अपने चाचा की महानता का पहले ही एहसास हो गया था). अगर काका (मोदी) आज इस आयरन को देखें तो उन्हें ऐसा ही लगेगा जैसे टाइटेनिक का अवशेष मिला हो…जैसा डूबे जहाज से मिले व्यक्तिगत सामान को देख लोगों को लगा था. यह घर भी उनके चाचा को भविष्य में म्युजियम की तरह लगेगा. वहां सिन्नी ब्रांड का वह पंखा आज भी है जिसे मोदी गर्मी में इस्तेमाल किया करते थे.


 


नरसिंहदास के सबसे बड़े बेटे 67 वर्षीय भोगीभाई भी वड़नगर में किराने की एक दुकान से छोटी-मोटी कमाई कर लेते हैं. संयोग से नरसिंहदास के पांच बेटों में से कोई भी मैट्रिक से ऊपर नहीं पढ़ पाया. अपने भाई दामोदरदास की ही तरह नरसिंहदास भी वडऩगर रेलवे स्टेशन के पास चाय की दुकान चलाया करते थे. दामोदरदास चार भाई थे. नरसिंहदास के अलावा नरोत्तमदास ओर जगजीवनदास. इन दोनों का इंतकाल हो चुका है. कांतिलाल और जयंतीलाल, दोनों रिटायर शिक्षक हैं. मोदी के चाचा जयंतीलाल के दामाद अब रिटायर हो चुके हैं और गांधीनगर में बस गए हैं. वे वडऩगर के पास विसनगर में बस कंडक्टर हुआ करते थे. प्रधानमंत्री की ही जाति के, वडऩगर में आरएसएस के कार्यकर्ता भरतभाई मोदी कहते हैं, ”वडऩगर या अहमदाबाद में किसी ने नरेंद्रभाई के रिश्तेदारों को उन पर दबाव बनाते नहीं देखा. यह आज के जमाने में दुर्लभ है.”

अमृतभाई के पास नरेंद्र मोदी के आगे बढऩे के अनेक किस्से हैं. 1969 में वे अहमदाबाद में गीता मंदिर के पास गुजरात राज्य परिवहन के मुख्यालय में एक कैंटीन चलाया करते थे. तभी मोदी उनके साथ रहने आए. अमृत भाई याद करते है, ”कैंटीन के पास मेरा एक कमरे का मकान बहुत छोटा था, इसलिए नरेंद्रभाई कैंटीन में ही सोया करते थे. वे दिन भर का काम पूरा करते और शाम को बुजर्ग प्रचारकों की सेवा करने आरएसएस के मुख्यालय पहुंच जाया करते थे. वे देर रात लौटते और घर से आया टिफिन का खाना खाते और कैंटीन की मेज पर अपना बिस्तर लगा लेते.”

अमृतभाई वह बात याद करके भावुक हो जाते हैं जब नरेंद्रभाई फरवरी 1971 में उनसे यह कहकर जाने लगे कि वे आध्यात्मिक साधना के लिए पहाड़ों में जा रहे हैं और घर हमेशा के लिए छोड़ रहे हैं. ”जब उसने मुझे बताया कि वह परिवार हमेशा के लिए छोड़ रहा है तो मेरी आंखों में आंसू आ गए, मगर वह शांत और संयत था.”कुछ लोग यह भी मानते हैं कि प्रधानमंत्री अपने रिश्तेदारों के प्रति बेहद कठोर हैं. उन्हें लंबे समय से जानने वाले एक राजनैतिक विश्लेषक कहते हैं, नरेंद्र भाई को प्रधानमंत्री बनने के बाद परिवार मिलन का एक कार्यक्रम रखना चाहिए था, जैसा कि उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद 2003 में किया था. लेकिन प्रधानमंत्री का साफ मानना है कि सत्ता के साथ किसी तरह का जुड़ाव उन्हें भ्रष्ट कर सकता है. यह भी है कि इससे भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से नेता की छवि पर असर पड़ सकता है. इस वजह से भी उन्हें परिवार को दूर रखना पड़ता है.

 

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