थावे से छपरा कचहरी तक जाने वाली एक ऐसी अनारक्षित एक्सप्रेस ट्रेन जिसमें एक यात्री एक भी नहीं थे, बस ट्रेन के चालक, सहायक चालक और पीछे के डिब्बे में एक गार्ड। महज तीन लोगों के साथ थावे-छपरा कचहरी अनारक्षित पैसेंजर तीन घंटे में 103 किलोमीटर की यात्रा कर डाली। 21 मार्च को 10 जनरल बोगियों के साथ रवाना हुई उस ट्रेन को न तो थावे स्टेशन पर यात्री मिले और न ही रास्ते में पड़ने वाले 25 अन्य स्टेशनों पर। ट्रेन अपने निर्धारित समयानुसार हर स्टेशन पर रुकती और दिए गए स्टापेज के पूरा हो जाने के बाद चल देती। ट्रेन अपने निर्धारित समय रात 10 बजे छपरा कचहरी पहुंच गई लेकिन उसमें एक भी यात्री नहीं उतरे। उतरे तो सिर्फ गार्ड और दोनो चालक।
बीते आठ मार्च से शुरू हुई अनारक्षित एक्सप्रेस ट्रेनों में किराया एक्सप्रेस के बराबर होने से शुरू से ही इस तरह की ट्रेनों में यात्रियों ने रुचि नहीं दिखाई। ट्रेनों में यात्रियों की संख्या जानने के लिए एनई रेलवे ने जब मंडलवार रिपोर्ट मांगी तो सामने आया कि वाराणसी मण्डल के थावे-छपरा रूट पर चलने वाली थावे-छपरा कचहरी अनारक्षित एक्सप्रेस की यात्री आक्यूपेंसी 21 मार्च की तारीख में शून्य थी जबकि उसमें कुल सीटों की संख्या 772 है। जबकि जौनपुर से औड़िहार जाने वाली ट्रेन की यात्री आक्यूपेंसी महज दो फीसदी थी। इसमें सीटों की संख्या 740 है और यात्रियों की संख्या महज 15 थी। वहीं गोरखपुर-सीवान पैसेंजर की 772 सीट क्षमता वाली ट्रेन मे 21 मार्च को महज 19 फीसदी यानी 143 यात्रियों ने ही यात्रा की।
22 मार्च तक महज 6 हजार ने की यात्रा
गोरखपुर से आठ मार्च से अनारक्षित एक्सप्रेस सेवा शुरू हुई। मसलन, सारी सुविधाएं पैसेंजर ट्रेन की लेकिन किराया और नाम एक्सप्रेस का। गोरखपुर से आठ मार्च को गोरखपुर-सीवान अनारक्षित एक्सप्रेस शुरू हुई और 13 मार्च से पांच ट्रेनें शुरू हो गईं। 13 मार्च से ही आकड़ों पर नजर डालें तो रोजाना पांच हजार यात्रियों की क्षमता वाली ट्रेनें चल रही हैं। इन सब के बावजूद 22 मार्च तक यानी आठ दिन में महज 6 हजार यात्रियों ने ही यात्रा की।