आर्थिक मंदी के खिलाफ हथियार बनेगा सस्ता कर्ज

 नई दिल्ली: दुनियाभर के देश सुस्ती से लड़ने के लिए सस्ते कर्ज का हथियार आजमाते हैं। भारत भी इस हथियार को आजमाने में ज्यादा चुस्ती दिखाने जा रहा है। अगले हफ्ते सोमवार को वित्त मंत्री निर्मला सीमारमण की बैंक प्रमुखों के साथ होने वाली बैठक और उसके बाद बुधवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की तरफ से मौद्रिक नीति समीक्षा की बैठक में ब्याज दर को घटाना एक अहम मुद्दा रहेगा। अधिकांश जानकार मान रहे हैं कि आरबीआइ इस बार भी ब्याज दरों की राह आसान करने के लिए रेपो रेट को कटौती करेगा। आरबीआइ गवर्नर शक्तिकांत दास अपने कार्यकाल की तीनों समीक्षा बैठकों में रेपो रेट घटा चुके हैं।

हालांकि इसका पूरा फायदा ग्राहकों को नहीं मिला है। वित्त मंत्री की बैंक प्रमुखों के साथ होने वाली बैठक में अहम मुद्दा यही रहेगा। रेपो रेट (इस रेट के आधार पर ही बैंकों की तरफ से होम लोन, ऑटो लोन लोन जैसे कर्ज की दरें तय होती हैं) में जनवरी, 2019 के बाद से अभी तक तीन बार कटौती हो चुकी है। यह कटौती कुल 75 आधार अंकों (0.75 फीसद) की हुई है। हालांकि अभी तक होम लोन या अन्य कर्ज की दरों में मुश्किल से बैंकों ने 0.20 फीसद की कटौती ही की है। माना जा रहा है कि वित्त मंत्री की तरफ से सरकारी बैंकों को ना सिर्फ ज्यादा कर्ज बांटने, बल्कि कर्ज की मौजूदा दर को और घटाने के लिए भी कहा जाएगा। वित्त मंत्रलय के अधिकारी मानते हैं कि बैंकों की कर्ज दरों में 0.25 आधार अंकों की कटौती की साफ सूरत बनती है। वित्त मंत्री सीतारमण ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा भी था, ‘साफ तौर पर कहूं तो मेरी इच्छा है कि ब्याज दरों में कटौती हो। यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अच्छा साबित होगा।’

बैंकिंग क्षेत्र के सूत्रों के मुताबिक सरकारी क्षेत्र के बैंक ब्याज दरों में एक और कटौती की तैयारी में हैं। उन्हें बुधवार का इंतजार है, जब मौद्रिक नीति की समीक्षा का एलान होगा। जानकार मान रहे हैं कि रेपो रेट में एक और कटौती के बाद बैंकों के लिए ग्राहकों को कर्ज की दरों में और राहत देना आसान हो जाएगा। पिछले पखवाड़े पंजाब नेशनल बैंक और भारतीय स्टेट बैंक ने सावधि जमा योजनाओं पर देय ब्याज दरों को घटाकर इस बात के संकेत दिए थे कि वह आने वाले दिनों में कर्ज की दरों में कटौती की तैयारी में हैं।

ब्याज दरों में कटौती काफी अहम होगा: देश के तमाम अर्थविद व आर्थिक एजेंसियां भी मान रही हैं कि अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात से उबरने के लिए ब्याज दरों में कटौती काफी अहम साबित होगा। उद्योग चैंबर एसोचैम की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए प्रमुख अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला ने तो 50 से 100 आधार अंकों (0.50 से एक फीसद) तक की कटौती की जरूरत बताई। उनका कहना है कि तभी भारतीय कंपनियों को प्रतिस्पद्र्धी ब नाया जा सकेगा। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के अर्थशास्त्री इंद्रनील सेनगुप्ता के मुताबिक सरकार अभी वित्तीय राहत देने की स्थिति में नहीं है, ऐसे में ब्याज दर को सस्ता करना ही एक ऐसा रास्ता है जिससे अर्थव्यवस्था को तेजी मिलेगी।

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