आठवीं के छात्र ने बनाई बुजुर्गों को दवा देने वाली मशीन, जानिए कैसे करेगी काम

 

 

 

 आठवीं के छात्र सूर्य नारायण ने ऐसी डिवाइस बनाई है कि जो बुजुर्गों को समय से दवा लेने  में मदद करेगी। डिवाइस में दवा के नाम, डोज और समय फीड कर देने के बाद अलार्म बजेगा और मशीन की विंडो से तय दवा बाहर आएगी। दवा लेने के साथ ही अलार्म बजना बंद हो जाएगा। यदि बगैर दवा लिए अलार्म को बंद कर देंगे तो अलार्म सेट करने वाले व्यक्ति के पास दवा नहीं लेने का मैसेज चला जाएगा। मशीन में एक बार में 24 घंटे के लिए दवा फीड की जा सकती है। इस डिवाइस का प्रेजेंटेशन शनिवार को आइआइटी पटना में आयोजित ‘हैकॉथन’ में किया गया।

डिवाइस बनाने वाला छात्र सूर्य नारायण 13 वर्ष का है। वह ‘हैकॉथन’ में सबसे कम उम्र का प्रतिभागी है। आइआइटी पटना के इन्क्यूबेशन सेंटर के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. प्रमोद कुमार तिवारी के अनुसार डिवाइस में उपयोग किये गए सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर उन्नत तकनीक के हैं।

दादा को दवा लेने में हुई परेशानी तो आया आइडिया

सूर्य ने बताया कि उसके दादा अकेले रहते हैं। उन्हें समय पर दवा लेने में हमेशा परेशानी होती थी। इस डिवाइस को बनाने का आइडिया इसी बात को सोचते हुए चार माह पहले आया। बैट्री और अन्य सामग्री को असेंबल करने में दो माह का समय लगा। अब यह काम करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। कई बार इसे आजमाया गया है। हर बार परफेक्ट रिजल्ट आया है।

को समय से दवा लेने  में मदद करेगी। डिवाइस में दवा के नाम, डोज और समय फीड कर देने के बाद अलार्म बजेगा और मशीन की विंडो से तय दवा बाहर आएगी। दवा लेने के साथ ही अलार्म बजना बंद हो जाएगा। यदि बगैर दवा लिए अलार्म को बंद कर देंगे तो अलार्म सेट करने वाले व्यक्ति के पास दवा नहीं लेने का मैसेज चला जाएगा। मशीन में एक बार में 24 घंटे के लिए दवा फीड की जा सकती है। इस डिवाइस का प्रेजेंटेशन शनिवार को आइआइटी पटना में आयोजित ‘हैकॉथन’ में किया गया।

डिवाइस बनाने वाला छात्र सूर्य नारायण 13 वर्ष का है। वह ‘हैकॉथन’ में सबसे कम उम्र का प्रतिभागी है। आइआइटी पटना के इन्क्यूबेशन सेंटर के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. प्रमोद कुमार तिवारी के अनुसार डिवाइस में उपयोग किये गए सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर उन्नत तकनीक के हैं।

दादा को दवा लेने में हुई परेशानी तो आया आइडिया

सूर्य ने बताया कि उसके दादा अकेले रहते हैं। उन्हें समय पर दवा लेने में हमेशा परेशानी होती थी। इस डिवाइस को बनाने का आइडिया इसी बात को सोचते हुए चार माह पहले आया। बैट्री और अन्य सामग्री को असेंबल करने में दो माह का समय लगा। अब यह काम करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। कई बार इसे आजमाया गया है। हर बार परफेक्ट रिजल्ट आया है।

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