अमेरिकियों पर भी महंगाई की मार, लोगों के पास कार तो है मगर रहने के लिए कमरा नहीं

कोरोना महामारी के कारण बिगड़ी अर्थव्यवस्था ने गरीब अमेरिकियों की छत छीन ली है। एक सरकारी रिपोर्ट से पता लगा कि कम तनख्वाह पर स्थायी नौकरी करने वाले लोग पूरे अमेरिका में कहीं दो कमरे वाला किराए का घर नहीं ले सकते। अमेरिकी सरकार के नेशनल लो इनकम हाउसिंग कोलिजन ने सोमवार को रिपोर्ट जारी की।

इससे पता लगा कि आठ घंटे की स्थायी नौकरी (फुलटाइम) करने वाले ऐसे लोग जो न्यूनतम वेतन पाते हैं, वे भी अमेरिका के हर राज्य में एक कमरे वाला घर किराए पर लेने की हैसियत नहीं रखते। अमेरिका की मात्र 7 फीसदी काउंटी (जिला जैसी व्यवस्था) ही ऐसी हैं, जहां ऐसे लोगों को सस्ता कमरा मिल सकता है। यानी देश की 3000 से अधिक काउंटी में से केवल 218 काउंटियो में ही वे सस्ते कमरे खोज सकते हैं।

दो कमरों का सस्ता घर ढूंढना असंभव

रिपोर्ट से पता लगा कि न्यूनतम वेतन पाने वाले लोगों के लिए अमेरिका के किसी भी राज्य में दो कमरों वाला अपार्टमेंट अथवा घर किराए पर ढूंढना लगभग असंभव है। ऐसे घरों का किराया कम आय वालों की हैसियत से बहुत अधिक है। ऐसे घर का किराया वहन करने के लिए किसी व्यक्ति को हर घंटे कम से कम 1,862.43 रुपये (24.9 डॉलर) कमाने चाहिए। यानी उसे सप्ताह में 40 के बजाय 112 घंटे काम करना होगा। जबकि एक कमरे का किराया जुटाने के लिए उसे हर घंटे 500 रुपये का किराया भत्ता निकालना होगा। यानी वह 89 घंटे काम करे।

बेघर होने के कगार पर लोग

अमेरिका के आवासीय व शहरी विकास मंत्रालय की सचिव मर्सिया एल. फॉज का कहना है कि यह राशि ज्यादा है कि वरिष्ठ नागरिक, दिव्यांग, अश्वेत, लातिन समुदाय के लिए इतना किराया जुटाना बेहद मुश्किल है। यहां करीब 75 लाख कम आय वालों को आधी तनख्वाह किराए पर खर्च करनी पड़ रही है। इसी के चलते कोरोना की पहली लहर के दौरान 5.8 लाख लोग बेघर हो गए थे। हालांकि सरकार ने बड़े राहत पैकेज की घोषणा की जिससे किराएदार और मकानमालिकों को राहत मिली पर यह अस्थायी राहत है।

कारों में गृहस्थी लेकर भटक रहे

अमेरिका में ऐसे गरीबों की तादाद अच्छी खासी है, जिनके पास कार है पर अपना या किराए का घर नहीं। वे महंगा किराया दे नहीं पाते इसलिए अपनी कार में ही घर का सामान भरकर उसी में रहते और सोते हैं। अमेरिका की ऐसी तस्वीरें दुनिया के बाकी देशों को चौंका देती हैं।


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अमेरिकियों पर भी महंगाई की मार, लोगों के पास कार तो है मगर रहने के लिए कमरा नहीं

नई दिल्ली, हिन्दुस्तान ब्यूरोPublished By: Drigraj MadheshiaTue, 20 Jul 2021 10:00 AMamerica

कोरोना महामारी के कारण बिगड़ी अर्थव्यवस्था ने गरीब अमेरिकियों की छत छीन ली है। एक सरकारी रिपोर्ट से पता लगा कि कम तनख्वाह पर स्थायी नौकरी करने वाले लोग पूरे अमेरिका में कहीं दो कमरे वाला किराए का घर नहीं ले सकते। अमेरिकी सरकार के नेशनल लो इनकम हाउसिंग कोलिजन ने सोमवार को रिपोर्ट जारी की।

इससे पता लगा कि आठ घंटे की स्थायी नौकरी (फुलटाइम) करने वाले ऐसे लोग जो न्यूनतम वेतन पाते हैं, वे भी अमेरिका के हर राज्य में एक कमरे वाला घर किराए पर लेने की हैसियत नहीं रखते। अमेरिका की मात्र 7 फीसदी काउंटी (जिला जैसी व्यवस्था) ही ऐसी हैं, जहां ऐसे लोगों को सस्ता कमरा मिल सकता है। यानी देश की 3000 से अधिक काउंटी में से केवल 218 काउंटियो में ही वे सस्ते कमरे खोज सकते हैं।

दो कमरों का सस्ता घर ढूंढना असंभव

रिपोर्ट से पता लगा कि न्यूनतम वेतन पाने वाले लोगों के लिए अमेरिका के किसी भी राज्य में दो कमरों वाला अपार्टमेंट अथवा घर किराए पर ढूंढना लगभग असंभव है। ऐसे घरों का किराया कम आय वालों की हैसियत से बहुत अधिक है। ऐसे घर का किराया वहन करने के लिए किसी व्यक्ति को हर घंटे कम से कम 1,862.43 रुपये (24.9 डॉलर) कमाने चाहिए। यानी उसे सप्ताह में 40 के बजाय 112 घंटे काम करना होगा। जबकि एक कमरे का किराया जुटाने के लिए उसे हर घंटे 500 रुपये का किराया भत्ता निकालना होगा। यानी वह 89 घंटे काम करे।

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कारों में गृहस्थी लेकर भटक रहे

अमेरिका में ऐसे गरीबों की तादाद अच्छी खासी है, जिनके पास कार है पर अपना या किराए का घर नहीं। वे महंगा किराया दे नहीं पाते इसलिए अपनी कार में ही घर का सामान भरकर उसी में रहते और सोते हैं। अमेरिका की ऐसी तस्वीरें दुनिया के बाकी देशों को चौंका देती हैं।

कमाई और किराए में गहरी खाई

हवाई राज्य में दो कमरे के किराये और सरकारी न्यूनतम आय के बीच 1500 रुपये (20.13 डॉलर) का अंतर है। कैलिफोर्निया, फ्लोरिडा, न्यूयॉर्क समेत 17 राज्यों में जितना दो कमरे का न्यूनतम किराया भत्ता है, उसके मुकाबले 373 रुपये (5 डॉलर) कम कमा पाते हैं किराए पर रहने वाले लोग। सरकारी रिपोर्ट के जरिए संसद से किराएदारों को सहयोग देने के लिए एक विशेष फंड बनाने की मांग की गई है।

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