नई दिल्ली। अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। दोनों एक दूसरे के दुश्मन बनते नजर आ रहे हैं। दूसरी तरफ अगले कुछ सप्ताह और महीनों में भारत एशियाई देशों के साथ पहले से मजबूत तालमेल को और बढ़ाने की योजना पर काम करने जा रहा है ताकि विभिन्न गठजोड़ों के जरिए यह खुद को इलाके की नेतृत्वकारी ताकत के रूप में उभार सके।
वियतनाम के विदेश मंत्री फाम बिन मिन और उप-राष्ट्रपति आने वाले सप्ताह में भारत दौरे पर आएंगे। मलयेशियाई प्रधानमंत्री नजीब रजाक की भी भारत आने की संभावना है, वहीं भारत इसी साल ऑस्ट्रेलियाई पीएम मैलकम टर्नबुल की भी मेजबानी कर सकता है। इधर, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भी अप्रैल में भारत आ सकती हैं, जबकि विदेश सचिव एस जयशंकर अभी श्री लंका, चीन और बांग्लादेश के दौरे पर हैं। उनका यह दौरा पड़ोसी देशों के साथ राब्ता कायम रखने के साथ-साथ इन देशों के साथ मजबूत रिश्तों के जरिए एशिया में भारत की भूमिका को विस्तार देने की कवायद के लिहाज से देखा जा सकता है।
ट्रंप प्रशासन के शुरुआती दिनों में इलाकाई देशों के लिए भ्रामक संकेत गए। सामान्य धारणा है कि अमेरिका-चीन के रिश्ते पर बहुत ज्यादा बर्फ जमने जा रही है और इसका असर हरेक इलाकाई देशों पर पड़ेगा। ट्रंप और उनके शीर्ष मंत्रीमंडलीय सहयोगियों ने चीन की ओर से महाद्वीप के निर्माण पर और ज्यादा टकराव के रुख की ओर इशारा किया है। ट्रंप प्रशासन ने पूर्ववर्ती ओबामा प्रशासन के ट्रांस-पसिफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) से हटते हुए स्पष्ट कर दिया कि खासकर व्यापार और शुल्कों पर उसका रवैया ज्यादा आक्रामक रहेगा।
उसे लगता है कि चीन को काबू में रखने में टीपीपी का सीमित असर रहा है। ट्रंप प्रशासन को लगता है कि एशियाई देश किसी-न-किसी रूप में पेइचिंग के इरादों से चिंतित हैं और वह इसके खतरे से बचने का रास्ता तलासेंगे। दूसरी तरफ, अमेरिका-चीन के रिश्ते में बदलाव की इच्छा जाहिर करने के बाद ट्रंप ने ‘एक चीन’ की नीति पर विश्वास जताया।