सार
- 1854 में पहली बार शिरडी आए थे साई बाबा
- 16 साल की थी उस समय साई बाबा की उम्र
- 1918 में शिरडी में ही समाधि ली थी
विस्तार
साई बाबा की जन्मस्थली को लेकर विवाद शुरू हो गया है। पाथरी को साई बाबा का जन्म स्थान बताकर महाराष्ट्र सरकार की तरफ से उसका विकास कराए जाने की घोषणा से ताउम्र उनकी ‘कर्मस्थली’ रहे शिरडी के बाशिंदे नाराज हो गए हैं। लोगों ने अगले दो दिन शहर बंद की घोषणा कर दी है। मंदिर के बंद होने की भी बात कही जा रही थी। हालांकि श्री साईं बाबा संस्थान न्यास के जनसम्पर्क अधिकारी मोहन यादव ने मंदिर बंद नहीं रहने की बात कही है, लेकिन होटल-रेस्टोरेंट बंद रहने से श्रद्धालुओं को परेशानी हो सकती है।
वहीं, साई मंदिर के सीईओ दीपक मुगलीकर ने भी इसपर मंदिर प्रशासन का रुख सामने रखा। उन्होंने कहा कि मीडिया में ऐसी खबर आई है कि मंदिर 19 जनवरी को बंद रहेगा। लेकिन मैं स्पष्ट कर दूं कि ये महज अफवाह है। मंदिर 19 जनवरी को खुला रहेगा।
उधर, अहमदनगर से भाजपा विधायक सुजय विखे-पाटिल ने चेतावनी दी कि इस मुद्दे शिरडी निवासी ‘कानूनी लड़ाई’ भी शुरू कर सकते हैं। पाटिल ने नई सरकार के गठन के बाद ही यह विवाद उठने को लेकर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा कि इससे पहले कभी पाथरी निवासियों ने साई बाबा का जन्म स्थल होने का दावा नहीं किया था। हालांकि कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने अपील की कि जन्मस्थली के विवाद के चलते पाथरी में श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं के निर्माण का विरोध नहीं होना चाहिए।
इससे पहले बृहस्पतिवार को एनसीपी नेता दुर्रानी अब्दुल्ला खान ने दावा किया था कि पाथरी के साई बाबा की जन्मस्थली होने के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। दुर्रानी ने ‘जन्मभूमि’ व ‘कर्मभूमि’, दोनों की अपनी-अपनी अहमियत होने की बात कही थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि शिरडी निवासी अपनी कमाई बंटने के डर से विरोध कर रहे हैं। इसके बाद ही शिरडी में विरोध की लहर शुरू हुई थी।
क्या है विवाद
शिरडी के लोगों ने कहा…
सरकार चाहे तो पाथरी गांव के विकास के लिए 100 या 200 करोड़ रुपये खर्च करे, लेकिन साई बाबा के जन्म स्थली के नाम पर नहीं। शिरडी साई बाबा की कर्मभूमि रही है, लेकिन जन्म स्थान को लेकर कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं। इसलिए पाथरी गांव की पहचान साई बाबा के जन्म स्थली के रूप में नहीं हो सकती। साई बाबा ने कभी अपने गांव, जाति या धर्म के बारे में कुछ नहीं बताया।