नगर निगम पिछले सात साल के भीतर शहर में 15 हजार से अधिक भवनों के निर्माण की अनुमति दे चुका है। अनुमति के साथ रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जाना भी अनिवार्य किया जाता है, लेकिन निगरानी तंत्र कमजोर है। इसका नतीजा यह रहता है कि 80 फीसद भवनों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ही नहीं लग सके हैं। खास बात यह है कि राशि जमा कराने के बाद निगम अफसर भी निगरानी नहीं करते हैं। इस कारण लोग या तो सिस्टम लगवाते नहीं हैं और लगवाते भी हैं तो उस स्तर का नहीं होता, जो सभी मापदंडों पर खरा उतरे। इस कारण बारिश का पानी जमीन में नहीं उतर पाता और गर्मी के दिनों में भूजल स्तर औसत 500 फीट नीचे चला जाता है।
वर्तमान में भी कई क्षेत्रों में भूजल स्तर काफी नीचे पहुंच चुका है और लोगों को टैंकरों पर निर्भर होना पड़ रहा है। बता दें कि नगर निगम की भवन अनुज्ञा शाखा द्वारा शहर में भवनों की अनुमति दी जाती है। 140 वर्ग मीटर से ऊपर के प्लॉट साइज में अनुमति के लिए रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का प्रविधान है, लेकिन यह महज खानापूर्ति तक सीमित है। जो लोग अनुमति लेने एवं निर्धारित राशि जमा कराने के बाद सिस्टम नहीं लगवाते, उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। हालांकि, वर्ष 2019 में निगम ने सर्वे कराकर ऐसे भवनों की जांच की थी, पर कार्रवाई के नाम पर फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी गई।
ये हैं विसंगतियां
कम्प्लीशन सर्टिफिकेट यानी प्रमाण पत्र तभी जारी होता है, जब रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया गया हो, लेकिन किसी काम के लिए प्रमाण पत्र की अनिवार्यता नहीं है। इससे लोग प्रमाण पत्र के लिए आवेदन नहीं करते। लोगों को बिना कम्प्लीशन सर्टिफिकेट के ही बिजली कनेक्शन मिल जाते हैं।
-प्रविधान है कि यदि लोग भवन बनाने के बाद यह सिस्टम नहीं लगवाते हैं तो ऐसी स्थिति में निगम की ओर से इसी राशि से यह सिस्टम लगाया जाए, पर निगम सिस्टम नहीं लगवाता।
– जिन बिल्डरों को कम्प्लीशन सर्टिफिकेट की जरूरत भी होती है, तो वे सिर्फ सिस्टम लगाने के नाम पर खानापूर्ति ही करते हैं। सिस्टम का पैमाना वह नहीं होता, जिससे छत का सारा पानी जमीन में उतर सके। उदाहरण के तौर पर पाइप लगा दिया जाता है, पर पानी जमीन के अंदर सही तरीके से पहुंच सके, इसके लिए निर्धारित पैमाने का गड्ढा नहीं किया जाता है।
– निगम अपनी तरफ से उन भवनों की जांच भी नहीं करता, जिनकी अनुमति में सिस्टम लगाना अनिवार्य किया गया है। इससे निगम के पास यह स्पष्ट आंकड़ा नहीं होता कि कितने भवनों में सिस्टम लगाए गए हैं।
इतना बचा सकते हैं पानी
जल विशेषज्ञों की मानें तो 140 वर्गमीटर की छत से वर्षाजल का यदि हार्वेस्टिंग सिस्टम से जमीन में संग्रह किया जाता है तो इससे आठ लाख लीटर तक पानी बच सकता है। जल विशेषज्ञ संतोष वर्मा बताते हैं कि सिस्टम लगाने के साथ उसकी क्वालिटी भी बेहतर हो, तो ही बारिश की बूंदों को सहेजने का तरीका कारगर हो सकता है। गड्ढा, पाइप आदि काम निर्धारित मापदंडों के अनुसार ही किए जाने चाहिए। इससे घर की छत पर गिरने वाली बारिश की हर बूंद को जमीन में उतारा जा सकता है।