उन्होंने आगे बताया कि आईएस के लोग उन्हें इस्लाम के बारे में पाठ पढ़ाते थे। करीब दो महीनों तक आईएस के आतंकियों ने उन्हें 5 बार नमाज पढ़ने का तरीका बताया। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि नमाज से पहले कैसे खुद को साफ किया जाता है।
डॉ. राममूर्ति ने बताया कि, ‘इसके बाद वे बिना किसी कारण के हमें एक भूमिगत जेल में ले गए। वहां हम कुछ तुर्की, कोरिया व अन्य देशों के लोगों के मिले। वहां भी आईएस के लोग इस्लामिक संगठन और उनके नियमों के बारे में पढ़ाते रहे। फिर एक महीने वहां रखने के बाद वापस उसी जगह ले आए।’
उन्होंने बताया कि, ‘उस समय लीबिया की सेना ने मिसुराता से आईएस के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया और उन पर बमबारी करने लगे। इसी के डर से वे हम लोगों (कैदियों) को एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करते रहते थे। रमजान के दौरान उन्हें डॉक्टर की जरूरत थी। करीब 16 आईएस आतंकियों ने एक डॉक्टर के तौर पर अपने अस्पताल में रखने के लिए मुझसे सम्पर्क किया। मैंने मना कर दिया मैं उस वक्त 61 साल का था। मैंने उन्हें बताया कि मैं एक चिकित्सकीय प्रशिक्षित (मेडिकली ट्रेन्ड) हूं न कि शल्य चिकित्सक (सर्जन) लेकिन फिर भी उन्होंने मुझे सिरते के एक स्पोर्ट्स क्लब के नजदीक एक अस्पताल में तैनात कर दिया।’
राममूर्ति आगे बताते हैं, ‘कैंप में काम करने के दौरान लगभग 10 दिनों के बाद उन्होंने मुझे तीन गोलियां मारी। उन्होंने मेरे दोनों पैर और बाएँ हाथ पर गोली मारी। इसके बाद आईएस के ही एक डॉक्टर कलाब और अन्य नर्सों ने मेरा इलाज किया। मैं आईसीयू में तीन हफ्ते तक रहा। उस समय तक सेना सक्रिय हो चुकी थी। जब एक दिन सेना उस बिल्डिंग के नजदीक आ गई जिसमें मैं चार अन्य लोगों के साथ रुका हुआ था। हम सभी जोर-जोर से चिल्लाने लगे- मिसरूता….फ्रीडम…. फिर सेना ने हमें छुड़ा लिया। सेना के कैंप में लगभग एक महीने तक रहे। उसी समय हमने अपने दूतावासों से संपर्क किया। मुझे तब तक हाई ब्लड प्रेशर भी हो गया था।’