गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी GST को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच चल रही लड़ाई फिलहाल खत्म होती दिख रही है. वित्त मंत्रालय ने बताया है कि केंद्र सरकार GST से राज्यों के रेवेन्यू में कमी को पूरा करने के लिए 1.1 लाख करोड़ रुपए का कर्ज लेगी. इसे राज्यों को कर्ज के रूप में दिया जाएगा.
कोरोना और लॉकडाउन की वजह से केंद्र और राज्य सरकारों की आमदनी घटी है. GST कलेक्शन में कमी आई है. GST लागू करते समय केंद्र ने कहा था कि वह राज्यों के GST के घाटे की भरपाई करेगी. GST कानून के तहत पांच साल तक ऐसी कमी को पूरा करने की गारंटी केंद्र की ओर से दी गई है.
केंद्र ने क्या विकल्प दिए थे?
अगस्त में GST काउंसिल की बैठक में केंद्र ने राज्यों को GST के घाटे की भरपाई के लिए दो विकल्प दिए थे.
पहला, GST काउंसिल राज्यों को स्पेशल विंडो मुहैया कराए. इसके जरिये उचित ब्याज दरों पर 97 हजार करोड़ रुपये उपलब्ध कराए जाएं. इस रकम को पांच साल बाद सेस कलेक्शन से लौटाया जा सकता है. कुछ राज्यों की मांग पर ये रकम 97 हजार करोड़ रुपए से बढ़ाकर 1.1 लाख करोड़ रुपए करने की बात हुई.
दूसरा विकल्प था, राज्य स्पेशल विंडो के जरिये 2,35,000 करोड़ रुपये के पूरे GST कंपनसेशन गैप को पूरा करने के लिए उधारी ले लें. लेकिन इसके बाद हुई बैठक में ग़ैर-बीजेपी शासित राज्यों ने कहा कि यह केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह GST से होने वाले नुकसान की भरपाई करे. बात इतनी बिगड़ी कि कुछ राज्यों के सुप्रीम कोर्ट जाने की बात मीडिया में आई.
केंद्र कर्ज लेकर राज्यों को कर्ज देगी
अब केंद्र सरकार ने कर्ज लेकर राज्यों को इसे कर्ज के रूप में देने की बात कही है. केंद्र सरकार 1.1 लाख करोड़ का कर्ज लेगी, बैंकों और रिजर्व बैंक से. इस पैसे को जीएसटी कंपनसेशन के हिसाब से राज्यों को बांटा जाएगा. 21 राज्य इसमें शामिल हैं. बाकी राज्यों को भी इसमें शामिल होना पड़ेगा क्योंकि कोई और रास्ता नहीं है.
कर्ज वित्तीय घाटे का हिस्सा नहीं होगा
ये कर्ज केंद्र सरकार के वित्तीय घाटे का हिस्सा नहीं होगा. राज्यों के कर्ज की तरह होगा. उनके राजकोषीय घाटे का हिस्सा बनेगा. अगर राज्य डायरेक्ट आरबीआई से पैसा लेते तो भी ये राज्य सरकारों के राजकोषीय घाटे का हिस्सा होता. लेकिन राज्य इसलिए नहीं मान रहे थे कि क्योंकि उनका ब्याज ज्यादा बैठता. सीधे कर्ज लेने पर राज्यों को अपनी वित्तीय स्थित के हिसाब से ब्याज देना पड़ता. बैंक उन्हें 7-7.5 प्रतिशत के ब्याज पर कर्ज देते. कई राज्यों ने 8-8.5 प्रतिशत की दर पर ब्याज लिया है. लेकिन केंद्र के कर्ज लेने पर ब्याज 6-6.5 प्रतिशत पड़ेगा. केंद्र के कर्ज लेने से राज्यों पर ब्याज का बोझ कम पड़ेगा.