इंदौर Electricity Bill। कनाड़िया क्षेत्र की शांति विहार कालोनी में रहने वाले अशोक यादव का मई माह का बिजली बिल 9 हजार रुपये से ज्यादा का आया। बीते महीनों तक डेढ़ से दो हजार रुपये प्रतिमाह बिजली बिल पाने वाले ये उपभोक्ता अब बिल सुधार करवाने के लिए बिजली अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं। अशोक यादव की तरह शहर के तमाम बिजली उपभोक्ताओं को परेशानी भरे कोरोना काल के बीच बढ़े हुए बिजली बिल परेशान कर रहे हैं। शहर के कुछ खास जोन में शिकायतें ज्यादा हैं। समय पर मीटर रीडिंग नहीं होना और औसत बिल जारी करना समस्या की वजह है। बिजली कंपनी खुद स्वीकार कर रही है कि कोरोना काल में 60 से 70 प्रतिशत घरों में ही मीटर रीडिंग हो सकी। असलियत ये है कि शहर के कुछ बिजली जोनों में रीडिंग का औसत इससे भी काफी कमजोर रहा है। कंपनी के सूत्रों के अनुसार बढ़े हुए बिलों की ज्यादातर शिकायतें एयरपोर्ट जोन, महालक्ष्मीनगर जोन, मालवा मिल जोन, विजय नगर, गोयल नगर, राजेंद्र नगर जोन में ज्यादा आ रही हैं। इन जोनों में अप्रैल-मई में 40 प्रतिशत से भी कम उपभोक्ताओं के यहां मीटर रीडिंग किए जाने की बात सामने आ रही है।
बिना रीडिंग वाले ऐसे तमाम उपभोक्ताओं को बिजली कंपनी ने औसत बिल जारी कर दिया है। औसत बिल का फार्मूला भी कंपनी ने बीते वर्ष इसी महीने में जारी किए बिल को बनाया है। नतीजा हुआ कि ऐसे कई उपभोक्ता जो लाकडाउन के दौर में शहर से बाहर थे। या फिर कोरोना संक्रमण की चपेट में आकर ज्यादातर समय अस्पताल में रहे उन्हें भी हजारों रुपये का भारी-भरकम बिल मिला।
त्रुटिपूर्ण विद्युत बिलों को लेकर विद्युत विभाग को सौपा ज्ञापन : अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत ने बढ़े हुए बिल को लेकर विद्युत विभाग के एमडी अमित तोमर को ज्ञापन दिया। इसमें कहा गया है कि पिछले कोरोना काल से मनमाने बिल ग्राहकों को दिए जा रहे हैं। महामारी के बीच बिना रीडिंग के बिल दिए जा रहे हैं जिससे औसत खपत से कई गुना ज्यादा की राशि के बिल घरों तक पहुंचे हैं। अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत के पदाधिकारियों देवेंद्र सिंह सिसौदिया, दिलीप दुबे, सुहास पुंडलिक, गौरव राऊत आदि ने बताया कि ऊर्जस एप पर उपभोक्ताओं को अपनी रीडिंग भेजने का आप्शन दिया गया है लेकिन यहां भेजी जा रही रीडिंग को भी मान्य नहीं किया जा रहा। पदाधिकारियों ने ज्ञापन के साथ गलत रीडिंग वाले कुछ बिल भी विद्युत विभाग के अधिकारियों को दिए हैं।
रीडिंग की देरी, ऐसे पड़ी भारी
एक-दो महीने रीडिंग नहीं होने के बाद जब रीडिंग ली जाती है तो उपभोक्ता की खपत बढ़ जाती है और उसका स्लैब भी बदलने से उसके लिए बिजली भी महंगी होती है। इसे यूं समझा जा सकता है। 300 यूनिट तक की खपत वाले उपभोक्ता के लिए बिजली की दर करीब 6 रुपये 25 पैसे प्रति यूनिट होती है। 300 यूनिट से ज्यादा मासिक खपत पर उपभोक्ता को बिजली के लिए 7 रुपये 10 पैसे प्रति यूनिट की दर से बिल चुकाना होता है। एक-दो महीने गैप होने के बाद उपभोक्ता के यहां रीडिंग होती है तो यूनिट भी दोगुनी दर्ज हो जाती है। ऊर्जा की इस खपत पर 15 प्रतिशत एक्साइज ड्यूटी भी चुकानी पड़ती है। क्योंकि ज्यादा यूनिट होने के कारण उर्जा खर्च ज्यादा होता है ऐसे में उस पर लगने वाला टैक्स और प्रभार भी बढ़ जाता है। गर्मी में घरों में बिजली का उपयोग ज्यादा होता है ऐसे में रीडिंग की देरी बिल को और भी भारी कर देती है।
तीन लाख ने नहीं भरा
बिजली कंपनी के अधीक्षण यंत्री (शहर वृत्त) कामेश श्रीवास्तव के कह रहे हैं कि यह सही है कि शहर में 60 से 70 प्रतिशत रीडिंग हो सकी। हालांकि इसकी वजह है। दरअसल कई क्षेत्र कोरोना के कारण कंटेनमेंट जोन होने से बंद थे। जानकी नगर जैसे कई क्षेत्रों में तो उपभोक्ताओं ने मीटर रीडरों को घरों में प्रवेश नहीं करने दिया। कई जगह खुद स्टाफ भी संक्रमण की चपेट में था। गरमी में बिजली की खपत बढ़ती है ऐसे कई उपभोक्ता बढ़ी खपत की बात नहीं समझकर भी शिकायत कर रहे हैं। अप्रैल-मई में इंदौर के कुल 7 लाख में से 3 लाख उपभोक्ता ऐसे हैं जिन्होंने बिल नहीं जमा किया है। कंपनी मानवीय आधार और महामारी देख अभी किसी तरह की कार्रवाई भी नहीं कर रही है। कुछ लोगों के औसत बिल में त्रुटी हो सकती है उन्हें हम तुरंत सुधार भी रहे हैं।