Daughters of Chambal : चंबल में बेटियों की जीवनदाता बनीं बागी खानदान की आशा सिकरवार

 

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में सबसे कम लिंगानुपात वाले चंबल क्षेत्र में बेटियों और नारी सशक्तीकरण का जाना- पहचाना नाम हैं आशा सिकरवार(Asha Sikarwar)। मुरैना(Morena Chambal) के ग्रामीण क्षेत्रों में बेटियों को जन्म के बाद मार दिया जाना कभी आम बात थी। वर्ष 2000 के बाद इलाके में सोनोग्राफी सेंटर खुले और जन्म के बाद होने वाली हत्या गर्भ में ही की जाने लगी थी। इस बात से दुखी युवा एडवोकेट आशा सिकरवार ने करियर एक तरफ रखकर कोख में कत्ल करने वालों के खिलाफ जंग छेड़ दी। अब आशा चंबल की महिलाओं का भी संबल हैं। असर देखिए, चंबल में साल 2005 में जो लिंगानुपात 1000 के मुकाबले 837 था। वह साल 2015-16 के फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार 895 दर्ज किया गया है। आशा अब नेशनल इंस्पेक्शन एंड मॉनिटरिंग सेल की सदस्य हैं और कम लिंगानुपात वाले प्रदेशों में काम कर रही हैं।

आशा ने ‘जागो सखी संगठन’ (Jago Sakhi Sangathan) भी बनाया है। उनके शोध कार्य ब्रिटेन के कॉलेजों और मध्य प्रदेश में शोध संदर्भों के तौर पर स्वीकार किए गए हैं। आशा का यह जज्बा उनके पारिवारिक इतिहास की देन भी लगता है। चंबल घाटी में सिंधिया रियासत की नाक में दम करने वाले कुख्यात बागी डूंगर और बटरी के किस्से मशहूर हैं। 1940 में डूंगरबटरी के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद बेटे परसुराम सिकरवार भी हालातों से लड़ते हुए बागी हो गए। इन्हीं परसुराम के घर जन्म हुआ आशा सिकरवार का। बागी खानदान की आशा ने बचपन से ही महिलाओं के प्रति समाज की उपेक्षित सोच को महसूस किया। आशा ने दूसरे बागी परिवारों की तरह खुद को सरकारी सहायता का पात्र नहीं माना। उन्होंने कानून की पढ़ाई की।

कम लिंगानुपात वाले चंबल संभाग में आशा ने बेटियों को जन्म के समय मार दिए जाने की लोगों की सोच की वजह का अध्ययन किया। उन्हें पता चला कि घाटी में लोग गर्भवती महिला के खानपान और व्यवहार के आधार पर तय कर लेते थे कि गर्भ में बेटी है या बेटा। बेटियों वाले लक्षण दिखने पर देसी दवाओं से ही लोग कोख में बेटियों को मार दिया करते थे। इसी बीच गर्भ में लिंग बताने वाले सोनोग्राफी सेंटर्स की भरमार हुई और आशा ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

‘जागो सखी संगठन’ में जिले की 10 हजार महिलाएं स्वयंसेवक हैं। ये सभी महिलाएं संगठन से जुड़कर खुद को घरेलू हिंसा और अत्याचार से उबार चुकी हैं। इन महिलाओं ने अवैध शराब बिक्री को रुकवाकर अपने पतियों को नशे के लिए घर बर्बाद करने से रोका। अधिकांश महिलाएं अब पशुपालन और कुटीर उद्योग चलाकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो चुकी हैं।

फार्म-एफ भरे जाने के लिए लड़ी कानूनी जंग

आशा कहती हैं कि उन्होंने सोनोग्राफी सेंटर्स में खुलेआम भ्रूण लिंग परीक्षण की शिकायत तत्कालीन कलेक्टर मनोहर अगनानी से की। अगनानी ने सभी सेंटर्स का रिकॉर्ड तलब किया। मालूम हुआ कि सेंटर गर्भवती महिलाओं का व्यवस्थित रिकार्ड नहीं रख रहे हैं। इस मामले में जब शासन कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं कर सका तो आशा ने हाई कोर्ट (ग्वालियर) में याचिका लगाई। कोर्ट ने साल 2010 में आदेश जारी कर पीसीपीएनडीटी एक्ट के फार्म-एफ को भरने और रिकॉर्ड अनिवार्य तौर पर रखे जाने के निर्देश जारी किए। अभिनेत्री व सामाजिक कार्यकर्ता शबाना आजमी के माध्यम से उनके काम की तारीफ राष्ट्रपति भवन तक पहुंची और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से उनकी मुलाकात भी हुई।

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