बिलासपुर। Chhattisgarh: गोबर के दिए और कंडे तो आपने सुना है लेकिन स्वच्छ शहर अंबिकापुर में गोबर की जलावन लकड़ी और गुटका (ईंट सदृश्य चौकोर) का निर्माण किया जा रहा है। यह भी किसी सामान्य प्रयोजन से नहीं बल्कि लकड़ी के विकल्प ईंधन के रूप में उपयोग करने के लिए तैयार किया जा रहा है। नगर निगम प्रशासन द्वारा गोबर की लकड़ी और गुटका बनाने दो मशीन स्थापित की गई है। दो रुपए प्रति किलो की दर से खरीदे गए गोबर से जलावन लकड़ी और गुटका बनाने में चार रुपये खर्च आ रहा है। छह रुपए प्रति किलो की दर से इसकी बिक्री की योजना है।
लकड़ी के गुटके से इसका दाम कम रखा गया है ताकि लोग आसानी से इसका उपयोग कर सकें। एक क्विंटल गोबर से 50 किलोग्राम गोबर की जलावन और गुटका का निर्माण हो रहा है। प्रारंभिक तौर पर जेल में बंदी, कैदियों के भोजन बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाएगा। भविष्य में शवों का अंतिम संस्कार भी गोबर की लकड़ी और गुटका से करने पर समाज के सभी वर्ग के लोगों की राय ली जाएगी। इन सबके बीच पर्यावरणीय दृष्टि से यह ज्यादा लाभकारी होगा। समूह की महिलाओं को रोजगार का एक और अवसर प्राप्त होगा।
गोबर धन न्याय योजना के तहत नगर निगम प्रशासन द्वारा समूह से जुड़ी महिलाओं को रोजगार का अवसर प्रदान करने तथा पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन की दिशा में कार्य करने की मंशा से गोबर की लकड़ी और गुटका का निर्माण कराया जा रहा है। राज्य शासन के निर्देश पर अंबिकापुर के डीसी रोड स्थित एसएलआरएम सेंटर में मशीन स्थापित की गई है। यहां समूह की महिलाओं द्वारा गोबर से लकड़ी और गुटका का निर्माण कराया जा रहा है। प्रारंभिक तौर पर इसकी उपयोगिता भी सामने आने लगी है। नगर निगम प्रशासन द्वारा शीत ऋतु में प्रत्येक वर्ष शहर के सार्वजनिक स्थानों पर अलाव जलाया जाता है। इसके लिए लकड़ी की व्यवस्था करनी होती है। इस साल नगर निगम प्रशासन ने गोबर की लकड़ी और गुटके से ही अलाव जलाने का निर्णय लिया है। इसकी उपयोगिता सुनिश्चित करने के लिए जेल प्रशासन से भी समन्वय स्थापित किया गया है। जेल प्रबंधन द्वारा लकड़ी की खरीदी की जाती है उसके स्थान पर गोबर से निर्मित जलावन उत्पाद की खरीदी को जेल प्रबंधन तैयार हो चुका है। प्रयोग के लिए डेढ़ से दो क्विंटल उत्पाद मांगा गया है ताकि उस उसकी सफलता का आकलन किया जा सके।
लकड़ी का बुरादा अथवा धान का भूसा मिलाकर किया जा रहा निर्माण
जलावन के रूप में गोबर के उत्पादों के निर्माण में लकड़ी का बुरादा अथवा धान के भूसे का भी उपयोग किया जा रहा है। इससे गोबर की लकड़ी को जलने में किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं आ रही है। डेढ़ से दो फीट लंबे आकार के गोबर के जलावन में बीच-बीच में छेद किया गया है ताकि जलने में किसी प्रकार की कोई दिक्कत ना हो। दोनों मशीनों से प्रतिदिन तीन क्विंटल तक गोबर का जलावन और गोबर का गुटका तैयार हो रहा है।
अतिरिक्त आय का साधन भी, मार्केटिंग भी करेगा निगम
अंबिकापुर शहर में कचरे को संसाधनों के रूप में परिमार्जित करने के कार्य में लगभग 450 महिलाएं लगी हुई हैं। उन्हीं महिलाओं को रोजगार का एक अतिरिक्त साधन उपलब्ध कराने के लिए गोबर का भी विकल्प चुना गया है नगर निगम प्रशासन द्वारा गोबर से जलावन उत्पादों के मार्केटिंग की व्यवस्था भी की जा रही है। ईट भट्ठा के अलावा ढाबा और दूसरे व्यवसाय जो लकड़ी के गुटका का उपयोग करते हैं, उन तक गोबर से निर्मित जलावन को पहुंचाने की योजना है।पर्यावरण की दृष्टि से भी यह सुरक्षित है।इस नई व्यवस्था से लकड़ी पर निर्भरता कम होगी। गोबर से वर्मी कंपोस्ट का निर्माण भी लगातार किया जा रहा है।
कई दृष्टि से है फायदेमंद
नगर निगम आयुक्त हरीश मंडावी ने बताया कि शासन स्तर से गोबर के जलावन उत्पादों के निर्माण की स्वीकृति मिली थी इसी के तहत मशीन स्थापित की गई है। उन्होंने बताया कि पशुपालकों से दो रुपये प्रति किलो की दर से खरीदे जा रहे गोबर से ही नवाचार किया जा रहा है। एक क्विंटल गोबर से लगभग पचास किलोग्राम जलावन तैयार हो रहा है। इसकी उपयोगिता सनिश्चित की जा रही है।शहरवासियों की ओर से रुझान भी देखने को मिला है। जलावन, ईंधन का विकल्प बनेगा।