Black Fungus in Jabalpur: इंजेक्शन के लिए भटक रहे मरीज, 40—40 हजार में बिक रहे

जबलपुर: कोरोना संक्रमण में रेमडेसिविर इंजेक्शन की मारामारी खत्म हुई तो ब्लैक फंगस की दवा की किल्ल्त शुरू हो गई है। मरीजों को लगने वाले इंजेक्शन की आपूर्ति बेहद कम होने के कारण मारमारी मची हुई है। मरीज के रिश्तेदार इधर—उधर इंजेक्शन के लिए दौड़ रहे हैं। कुछ इस मौके को भी रेमडेसिविर की तरह अवसर में बदलने में जुटे हैं। खबर है कि 6 हजार रुपये के इंजेक्शन को मुनाफाखोर 40 हजार रुपये तक की कीमत में बेच रहे हैं। इधर प्रशासन निगरानी का दावा तो कर रहा है लेकिन पारदर्शिता का कोई ठोस इंतजाम नहीं है। रेमडेसिविर की तरह हर दिन अस्पतालों को आवंटित इंजेक्शन की सूची सार्वजनिक नहीं हो रही है जिस वजह से कई अस्पताल किल्लत जाहिर कर रहे हैं।

मरीज के हिसाब से 40 फीसद इंजेक्शन: स्वास्थ्य महकमे के अफसर मानते हैं कि इंजेक्शन की आपूर्ति बेहद कम है। हर दिन 200 के आसपास ही इंजेक्शन की सप्लाई हो रही है। प्रशासन ने एसडीएम और ड्रग इंस्पेक्टर की निगरानी में अस्पतालों को इंजेक्शन आवंटित किया है। इधर भर्ती मरीजों का दावा है कि उन्हें इंजेक्शन पर्याप्त नहीं मिल रहा है। परिजन जिला अस्पताल से लेकर कलेक्ट्रेट तक चक्कर काट रहे हैं कि किसी तरह से इंजेक्शन का इंतजाम कर सके। मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.रत्नेश कुरलिया ने कहा कि दवा के लिए कई परिजन आ रहे हैं लेकिन उन्हें जानकारी दी जा रही है। उपलब्धता के आधार पर ही आवंटन प्रशासन के जरिए हो रहा है। उन्होंने माना कि आपूर्ति जरूरत के हिसाब से कम है। एक मरीज को 70 से 100 इंजेक्शन जरूरत के हिसाब से लगने हैं।

140 मरीज शहर में: ब्लैक फंगस के शहर में 140 मरीज भर्ती है। इसमें 107 मरीज मेडिकल कॉलेज में भर्ती है। इसके अलावा शेष निजी अस्पतालों में है। प्रशासन मरीजों के मुताबिक इंजेक्शन का आवंटन कर रहा है लेकिन ये साफ नहीं है कि किस अस्पताल को कितना इंजेक्शन कब दिए गए। यदि इंजेक्शन सहीं ढंग से वितरित हो रहे हैं तो फिर इसकी कमी बताकर क्यों परेशान किया जा रहा है। वहीं मुनाफाखोरों के पास आखिर कहा से इंजेक्शन आ रहे हैं।

सूची क्यों नहीं जारी: हर दिन निजी अस्पतालों में आवंटित इंजेक्शन की सूची सार्वजनिक की जाए। ताकि लोग भी समझ सके कि अस्पताल में यह इंजेक्शन आया है। मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी ने रोजाना सूची जारी करने का भरोसा दिया है।

जितने मरीज उतनी भी डोज नहीं: शहर में के अस्पतालों में सौ से ज्यादा ब्लैक फंगस के मरीज भर्ती है। संक्रमण को रोकने और सर्जरी के बाद फंगस से उबारने के लिए लायसोजोमल एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन कारगार बताया जा रहा है। इसकी भारी किल्लत है। सूत्रों की मानें तो जितने मरीज भर्ती उनके लिए भी इस इंजेक्शन की पर्याप्त डोज उपलब्ध नहीं है। बीते पांच दिन से किसी भी मरीज को डॉक्टर के बताए अनुसार इंजेक्शन की पर्याप्त खुराक नहीं मिली है। इसके कारण मरीजों के शरीर में फंगस के फैलने का खतरा बना हुआ है।

प्रशासन के नियंत्रण के बावजूद मारामारी: ब्लैक फंगस के मरीज मिलने और इंजेक्शन का टोटा होने के साथ ही लायसोजोमल एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन को प्रशासन ने अपने नियंत्रण में ले लिया है। प्रशासनिक अधिकारियों की निगरानी में ही डिस्ट्रीब्यूटर से अस्पताल तक मरीजों के लिए इंजेक्शन पहुंचाएं जा रहे है। लेकिन किसी भी अस्पताल को भर्ती मरीज के लिए मांगे गए इंजेक्शन की पर्याप्त डोज प्रशासन भी उपलब्ध नहीं करा पा रहा है। डिस्ट्रीब्यूटर तक इंजेक्शन की खेप कब आ रही है और कब बंट रही है, यह भी रहस्मयी बना हुआ है।

निजी में सर्जरी की मोटी फीस, फिर मेडिकल रेफर: ब्लैक फंगस के इंजेक्शन की कमी के बीच निजी अस्पतालों के रवैये से भी मरीजों की मुसीबत बढ़ रही है। कुछ निजी अस्पतालों ने ब्लैक फंगस के मरीजों से मोटी फीस लेकर सर्जरी कर दी। उसके बाद इंजेक्शन की डोज सरकारी अस्पताल में लगवाने की सलाह देकर डिस्चार्ज दे दिया। इससे मरीजों के परिजन परेशान हो रहे है। वहीं, रविवार को सरकारी और निजी अस्पतालों में मरीजों के लिए इंजेक्शन ही नहीं पहुंचने के आरोप परिजनों ने लगाए है।

कालाबाजारी और गड़बड़ी का अंदेशा: रेमडेसिविर के शॉर्ट होने पर जिस तरह कालाबाजारी और गड़बड़ी हुई थी, वही खतरा अब ब्लैक फंगस के उपचार में अहम इंजेक्शन को लेकर बन रही है। दवा बाजार में डिस्ट्रीब्यूटर के पास से अस्पतालों को आवंटित मरीज के नाम पर आवंटित इंजेक्शन की जानकारी का पता नहीं चल रहा है। इससे अस्पतालों को इंजेक्शन के उपयोग में मनमानी का मौका मिल रहा है।

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