भोपाल :कोरोना का कहर चरम पर है। श्मशान घाटों में चिताओं की लपटें शांत होने का नाम नहीं ले रही हैं। ऐसी स्थिति में किसी तरह लोग अपने लोगों का अंतिम संस्कार कर घर लौट जाते हैं। अगले दिन जब अस्थियों के संचय के लिए पहुंचते हैं, तो वहां वह स्थान पहचानने में गफलत हो जाती है, जहां अपने को अग्नि दी थी। ऐसी स्थिति में लोग जो भी आस्था के फूल मिले उसे अपना समझ कर विसर्जन के लिए ले जा रहे हैं। उधर मृतकों की लगातार संख्या बढ़ने से विश्राम घाट प्रबंधन के सामने अस्थि संचय कर सुरक्षित रखना एक बड़ी समस्या भी बन रही है।
चूना भट्टी निवासी गणेश यादव के पिता अनोखीलाल यादव की 23 अप्रैल की सुबह जेके अस्पताल में मौत हो गई थी। कोरोना संक्रमित होने के कारण शव का अंतिम संस्कार कोविड गाइड लाइन के तहत भदभदा विश्राम घाट में किया गया। गणेश ने बताया कि अगले दिन सुबह नौ बजे वह अस्थि संचय के लिए पहुंचे,तो चिता स्थल के पास नगर निगम की जेसीबी खड़ी थी। यदि वह पांच मिनट लेट हो जाते तो सभी चिताओं की राख के साथ उनके पिता की अस्थियां भी समेटकर एक ढेर में रख दी जातीं। उनके अस्थि संचय करने के बाद जेसीबी से एक दिन पहले जल चुकी चिताओं की राख को समेटकर एक किनारे ढेर लगा दिया गया। कुछ देर बाद वहां कुछ लोग अस्थि संचय के लिए पहुंचे तो जेसीबी से नई चिताओं के लिए स्थान बनाया जा चुका था। मामूली विवाद के बाद उन लोगों ने ढेर में से राख लेकर उसे ही अपनों की आस्था के फूल समझकर रख लिया और पवित्र सरोवर में विसर्जन के लिए लेकर चल दिए।
खुद संचय कर लॉकर में रखते हैं, लेकिन कब तक…
सुभाष नगर विश्राम घाट के प्रबंधक शोभराज सुखवानी बताते हैं। कि आम दिनों में यहां 10-12 शव अंतिम संस्कार के लिए आते थे। कोरोना के कहर के कारण श्मशान में शव जलाने के लिए जगह कम पड़ जाती है। एक दिन में 40 से 50 तक शव आ जाते हैं। जो लोग अस्थि संचय के लिए नहीं आ पाते तो प्रबंधन अस्थि संचय कर लॉकर में उनके नाम से सुरक्षित रख लेता है। वर्तमान में चिताएं काफी पास-पास जल रही हैं। ऐसी स्थिति में अस्थि संचय में गफलत भी हो रही है और लोग जो भी फूल मिले उसे अपनों के समझ कर विसर्जन के लिए ले जा रहे हैं।
परिक्रमा करना मुश्किल
अवधपुरी निवासी अनिल शर्मा के पिता का 10 अप्रैल और माता का 11 की स्वाभाविक मृत्यु हुई थी। अनिल शर्मा के मुताबिक माता के अंतिम संस्कार के समय सुभाष नगर विश्राम घाट में इतनी चिताएं एक साथ जल रही थीं, कि वह किसी तरह चिता की परिक्रमा कर पाए। परिवार के अन्य लोग परिक्रमा भी नहीं कर सके थे।