नई दिल्ली। दलित प्रताड़ना का आरोप लगाने वाले कोलकाता हाईकोर्ट के जज सीएस करनन एक बार फिर विवादों में हैं। इस बार सुप्रीम कोर्ट से उन्हें अवमानना का नोटिस मिला है। कुछ दिनों ही पहले करनन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के कई जजों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। प्रधानमंत्री को भेजे गए इस पत्र में 20 जजों का नाम है, जिन पर उन्होंने ‘भ्रष्टाचार’ का आरोप लगाया है।
कारनन को मिले इस अवमानना के नोटिस पर 13 फ़रवरी को सुनवाई होनी है और न्यायमूर्ति करनन को सुनवाई के दौरान मौजूद रहने को कहा गया है।
पीएम को लिखे गए इस पत्र का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अवमानना का नोटिस जारी करते हुए यह भी कहा है कि वो अपनी सभी फाइलें कोलकाता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को सौंप दें।
इस मामलें की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यों वाली खंडपीठ करेगी। जिसका नेतृत्व भारत के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर करेंगे।
पुराना है विवादों से नाता…
मद्रास हाईकोर्ट में पदस्थापित न्यायमूर्ति करनन का जब कोलकाता हाईकोर्ट तबादला हुआ तो उन्होंने ख़ुद ही इस पर रोक लगा ली। इतना ही नहीं उन्होंने अपने चीफ़ जस्टिस को ही नोटिस भेज दिया था।
इस दौरान सुप्रीमकोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा और फ़रवरी 2016 के बाद दिए गए उनके सभी निर्देशों पर रोक लगा दी गयी। जिसके बाद राष्ट्रपति के निर्देश पर उन्होंने कोलकाता हाईकोर्ट में अपना पदभार संभाला।
मद्रास हाई कोर्ट का जज रहते हुए उन्होंने उस वक्त सबको हैरत में डाल दिया था, जब उन्होंने अपने साथी जजों पर गाली देने का आरोप लगाया था। उन्होंने अनुसूचित जाति और जनजाति के राष्ट्रीय आयोग में जजों के ख़िलाफ़ शिकायत भी की थी।
यह आरोप उन्होंने अपने चेंबर में प्रेसवार्ता आयोजित कर लगाया था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके साथ जजों का भेदभाव इसलिए हो रहा था क्योंकि वो एक दलित हैं।
अवमानना की सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, कुरियन जोसफ़, राजन गोगोई, जे चमलेश्वर, मैदान लोकुर और पीसी घोष शामिल हैं।