केंद्र और राज्य सरकारें बेटा-बेटियों के जन्म दर में अंतर को पाटने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं। इतना ही नहीं जागरूकता अभियान के साथ ही कई योजनाएं भी चलाई जा रही हैं। इसके अलावा कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सख्त कानून भी बनाए गए हैं। बावजूद इसके लड़का-लड़की अनुपात में अंतर बढ़ता जा रहा है। इसे स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता कहे या लोगों का रूढ़िवादी विचारधारा।
वर्ष 2016 में कुल 7788 शिशुओं ने जन्म लिया। जिसमें 4107 लड़के तथा 3681 लड़कियों का जन्म हुआ। इस प्रकार 426 लड़कियां कम पैदा हुईं। जिला अस्पताल के आंकड़ों पर गौर किया जाय तो वर्ष 2012 में कुल 6607 शिशुओं ने जन्म लिया। जिसमें लड़कों की कुल संख्या 3624 तथा लड़कियों की संख्या 2983 रही।
वर्ष 2013 में कुल 8013 शिशुओं ने जन्म लिया, जिसमें लड़कों की संख्या 4174 तथा लड़कियों की संख्या 3839 रहा। वर्ष 2014 में कुल 7565 शिशुओ ने जन्म लिया। जिसमें कुल लड़कों की संख्या 3953 तथा लड़कियों की कुल संख्या 3612 रही। वर्ष 2015 में 6882 शिशुओं ने जन्म लिया। जिसमें लड़कों की संख्या 3725 तथा लड़कियों की संख्या 3157 पाई गई।
इसी प्रकार वर्ष 2016 में कुल 7788 शिशुओं ने जन्म लिया। जिसमें 4107 लड़के तथा 3681 लड़कियां पैदा हुईं। इस प्रकार 426 लड़कियां कम पैदा हुईं। इस प्रकार लड़कों की अपेक्षा प्रत्येक साल लड़कियां कम पैदा हो रही है। केवल अगस्त माह में लड़कियां अधिक पैदा हुई।