यूपी की राजनीतिक दलों की जितनी सियासत सामने दिखती है, उससे ज्यादा मेहनत पर्दे के पीछे होती है। चुनाव प्रबंधन हो या प्रत्याशियों का चयन या फिर जीत की रणनीति बनाना? इस पर पूरी थिंक टैंक टीम काम करती है। यह टीम ही राजनीतिक दलों की रणनीति बनाती है। पर्दे के सामने के चुनावी दिग्गजों को तो अपना हुनर दिखाने का मौका मिलता है, पर पर्दे के पीछे के असली सियासी थिंक टैंक को कोई नहीं जानता। ऐसे में राजनीतिक दलों के इन थिंक टैंक के बारे में बता रहे हैं मनीष श्रीवास्तव:
बीजेपी
सुनील बंसल : सुनील बंसल एवीबीपी से बीजेपी में भेजे गए हैं। लोकसभा चुनाव के वक्त यूपी बीजेपी में सह संगठनमंत्री थे। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नजदीकियों में शामिल सुनील बंसल ने 2014 में बेहतरीन प्रबन्धन से जीत दिलाने में मदद की थी। इसे देखते हुए प्रमोशन कर उन्हें महामंत्री (संगठन) बनाया गया। यूपी चुनाव में वह प्रत्याशियों की तलाश संग बूथ लेवेल पर संगठन को मजबूत करने में जुटे हैं। कमल संदेश यात्रा, बाइक रैली, अलाव यात्रा, महिला कार्यकर्ताओं के बीच उड़ान कार्यक्रम उन्हीं की देन हैं। बंसल ने छह महीने पहले हर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव सहायक उतारकर वहां से फीडबैक लेना शुरू कर दिया था। इससे प्रत्याशी चयन में आसानी हुई।
शिवप्रकाश : पश्चिमी यूपी से ताल्लुक रखने वाले शिवप्रकाश आरएसएस से बीजेपी में आए हैं। बीजेपी ने उन्हें राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री बनाया है। उन्हें यूपी चुनाव में समन्वयक की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वह बीजेपी को बूथ स्तर तक मजबूत करने में जुटे हैं। सुनील बंसल के साथ वह भी प्रत्याशियों के चयन और चुनाव प्रचार में समन्यवय बनाने में लगाए गए हैं। पिछले एक साल से शिवप्रकाश यूपी में हैं। उन्हें क्राइसिस मैनेजमेंट का एक्सपर्ट माना जाता है। पार्टी के भीतर कार्यकर्ताओं के मनभेद को शिवप्रकाश ही मैनेज करते आए हैं। प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव प्रबन्धन और बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं से संवाद की जिम्मेदारी शिवप्रकाश निभाएंगे।
ओम माथुर : पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी ओम माथुर यूपी बीजेपी के प्रभारी हैं। राजस्थान से आए ओम माथुर बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता हैं। उनका काम यूपी में चुनाव जीतने की रणनीति बनाना और उसे निचले स्तर तक पहुंचाना है। ओम माथुर सुनील बंसल और शिव प्रकाश समेत प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य से समन्वय रखते हैं। ओम माथुर पार्टी को संकट से उबारते रहे हैं। 1992 में जब सब जगह बीजेपी की सरकारें गिर गई थीं तब माथुर ने जोड़तोड़ से यहां की सरकार बचा ली थी। 2002 में माथुर को एमपी में उमा भारती को बतौर सीएम स्थापित करने और फिर गुजरात में पार्टी की अंतरकलह खत्म करने भेजा गया। अब यूपी में उनके इस कौशल का इस्तेमाल होगा।
कांग्रेस
प्रशांत किशोर : कांग्रेस को यूपी में बेहतर बनाने का जिम्मा रणनीतिकार प्रशांत किशोर को दिया गया है। पहले प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी को खाट सभाओं से गांव और किसानों के बीच प्रोजेक्ट किया। कहा जाता है कि यूपी में ब्राह्मण सीएम फेस देने के पीछे उन्हीं की रणनीति थी। हालांकि, उन्होंने जब सर्वे में यह पाया कि कांग्रेस अकेले सरकार बनाने में सक्षम नहीं है तो वे गठबंधन की तलाश में जुट गए। प्रशांत किशोर इससे पहले नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के रणनीतिकार रह चुके हैं। बिहार चुनाव में रणनीति के तहत कांग्रेस, नीतीश और लालू एक मंच पर लाए। बीजेपी के आक्रामक प्रचार के बजाय उन्होंने शालीन प्रचार और सही मुद्दों को सही वक्त पर उठा नीतीश को जीत दिलवाई।
गुलाम नबी आजाद : गुलाम नबी आजाद यूपी के तीन बार प्रभारी रह चुके हैं। चुनाव से पहले कांग्रेस ने जब अपने नए चेहरों को मैदान में उतारा तो उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद को यूपी की जिम्मेदारी सौंपी। सोनिया गांधी के करीबी आजाद को भी रणनीतिकार के तौर पर जाना जाता रहा है। चुनाव के कैम्पेन से लेकर प्रत्याशियों के चयन की जिम्मेदारी में आजाद की महत्वपूर्ण भूमिका है। गुलाम नबी आजाद को क्राइसिस मैंनेजमेंट और चुनाव का जानकार माना जाता है। वह कई राज्यों में कांग्रेस को जीत दिलाकर सरकार बनाने में मददगार रहे हैं।
बीएसपी
सतीश चंद्र मिश्रा : बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा खुद बीएसपी के स्टार प्रचारकों की रैलियों, प्रत्याशियों के लिए कैम्पेन मटीरियल और बीएसपी सुप्रीमो मायावती की रैलियां कहां-कहां कराई जाएं? इस पर नजर रखे हैं। वह खुद भी बीएसपी के स्टार प्रचारक होंगे, इस वजह से उन्हें कहां सभा करने से फायदा होगा? इसकी रणनीति वह खुद ही तैयार कर रहे हैं। 2007 से पहले बीएसपी केवल दलितों की पार्टी मानी जाती थी। सतीश चंद्र मिश्रा बीएसपी में आए तो अपने साथ ‘सोशल इंजीनियरिंग’ का कान्सेप्ट लाए। 2007 में ब्राह्मणों को जोड़ अकेले दम पर बीएसपी की सरकार बनवाई। इस बार भी वह सोशल इंजीनियरिंग से चुनाव का मैनेजमेंट कर रहे हैं।
नसीमुद्दीन : बीएसपी में रणनीति तैयार करने का जिम्मा महासचिव नसीमुद्दीन भी संभाल रहे हैं। नसीमुद्दीन प्रचार की रणनीति बनाने के साथ ही बीएसपी के पोस्टर और कैम्पेन मटीरियल भी तैयार करा रहे हैं। बीएसपी की ओर से मुस्लिम बहुल इलाकों में बांटे जाने वाली किताबों समेत अन्य वर्गों में बांटी जाने वाली सामग्री भी नसीमुद्दीन ही संभाल रहे हैं। नसीमुद्दीन लोस चुनाव के बाद से मुसलमानों पर फोकस कर क्षेत्र में घूम रहे हैं। नसीमुद्दीन की सलाह पर ही सपा में झगड़े के बाद मुस्लिम वोट को बीएसपी के पक्ष में लाने के लिए हर विस क्षेत्र में काम हो रहा है। यही वजह है कि जब नसीमुद्दीन ने कहा कि सबसे ज्यादा टिकट मुसलमानों को दिए जाएं तो बीएसपी ने उनकी बात मान ली।
एसपी
सुनील साजन : टीम अखिलेश की ओर से रणनीतिकार के तौर पर सुनील साजन महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं। सुनील पार्टी के भीतर सीएम के विरोधियों से संपर्क करने और उन्हें करीब लाने के काम में जुटे हैं। यूथ टीम का हिस्सा रहे सुनील को सीएम अखिलेश ने एमएलए को एकजुट करने, एफीडेविट पर साइन कराने और उसे आयोग तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। हाल ही में जब पार्टी में अखिलेश यादव का विरोध शुरू हुआ और तो सीएम ने शिवपाल यादव के करीबी ओम प्रकाश सिंह, नारद राय और मुलायम के करीबी गायत्री को अपने पक्ष में लाने का जिम्मा सुनील को सौंपा। सुनील ने इस पर काम किया और मुलायम का सम्मेलन रद कराने में सफल भी रहे।
रामगोपाल : टीम अखिलेश की ओर से पहले मुलायम के थिंक टैंक रहे रामगोपाल भी रणनीतिकार की भूमिका निभा रहे हैं। मुलायम के चुनावों के ज्यादातर घोषणापत्र, चुनाव आयोग की कमान रामगोपाल ही संभालते आए हैं। विशेष अधिवेशन बुलाकर सीएम अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कराने और एमएलए, सांसदों से साइन कराने की जिम्मेदारी रामगोपाल ने ही संभाली थी। सीएम के घोषणा पत्र को तैयार करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। चुनाव आयोग में सिंबल की लड़ाई वही लड़ रहे हैं। 2012 के चुनाव से पहले सपा का घोषणा पत्र भी रामगोपाल ने ही तैयार किया था।
अमर सिंह : मुलायम सिंह यादव ने अपनी ओर से रणनीति तैयार करने की जिम्मेदारी अमर सिंह को सौंप रखी है। शिवपाल यादव भी अमर सिंह पर ही भरोसा कर रहे हैं। सिंबल की लड़ाई में मुलायम और शिवपाल पूरी तरह से अमर सिंह पर भरोसा कर रहे हैं। अमर सिंह ही दूसरे दलों के संपर्क में हैं, जिससे अगर सिंबल फंसता तो वही चुनाव में मददगार होते। अमर सिंह जोड़तोड़ के माहिर माने जाते हैं, उनके दूसरे दलों से अच्छे रिश्ते हैं। न्यूक्लियर डील पर जब लोकसभा में वामपंथी दलों ने कांग्रेस से समर्थन वापस ले लिया था तो अमर सिंह ने मुलायम की मदद से उनकी सरकार बचाई थी। हालांकि, अमर सिंह को इसकी वजह से जेल भी जाना पड़ा।