दुनिया के स्थापित धर्मों की ओर से आक्रामक प्रचार किए जाने के चलते असम के मूल निवासियों की संस्कृति तबाह हो गई है। असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात कही। सरमा ने राज्य में मूल निवासियों की आस्था और संस्कृति पर शोध के लिए नए बने विभाग पर चर्चा करते हुए यह बात कही। गुरुवार को विधानसभा सत्र के शून्यकाल में सरमा ने कहा कि असम की बोडो और मिसिंग जनजातियां बाथोउ और दोनई पोलो परंपरा को मानती हैं। ये मूलनिवासियों की संस्कृति का हिस्सा हैं। दरअसल बाथोउ बोडो समुदाय के बीच एक परंपरा है, जिसके तहत 5 सिद्धांतों को जगह दी गई है।
इसके अलावा मिसिंग जनजाति के बीच दोनई पोलो परंपरा का पालन किया जाता है। सरमा ने कहा कि बाथोउ परंपरा को मानने वाले लोगों वृक्षों की पूजा करते हैं। इसके अलावा दोनई पोलो संस्कृति को मानने वाले सूरज और चंद्रमा की पूजा करते हैं। लेकिन संस्कृतियों के विस्तार और अलग-अलग समूहों और धर्मों की ओर से आक्रामक प्रचार किए जाने के चलते मूल निवासियों की संस्कृति तबाह होने की ओर है। उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय के लोग तो अपनी भाषा तक खो रहे हैं। वहीं मंदिरों, मस्जिदों और चर्च को डोनेशन मिल रही है।
प्रकृति की पूजा करने में यकीन करने वाले लोगों को किसी भी तरह की आर्थिक सहायता नहीं मिल रही है। सरमा का यह बयान राज्य के आदिवासी समुदायों के लिहाज से अहम है। बता दें कि राज्य में बोडो, मिसिंग जनजातियों समेत आदिवासी समुदायों की बड़ी संख्या है। यहां तक कि बोडो समुदाय की राजनीतिक तौर पर भी बड़ी भागीदारी है और चुनाव में उनसे जुड़े हमेशा से प्रमुखता पाते रहे हैं।