नये मंत्रियों के शपथ लेने के बाद अब उनके बीच विभागों के बंटवारा किया जा चुका है। देश के सबसे अहम मंत्रालयों में से एक रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी एक पूर्व IAS अधिकारी को दी गई है। अश्विनी वैष्णव को रेल के अलावा आईटी और संचार मंत्रालय का कार्यभार भी सौंपा गया है। पूर्व नौकरशाह अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को मंत्री पद की शपथ ली थी। हम आपको बताते हैं कि आखिरकार कौन हैं देश के नये रेल मंत्री और उन्हें कई अहम मंत्रालयों की यह जिम्मेदारी क्यों दी गई? यकीनन पूर्व नौकरशाह अश्विनी वैष्णव का नरेंद्र मोदी सरकार में बतौर कैबिनेट मंत्री शामिल होना बहुत सारे लोगों को चौंका गया, हालांकि उन्होंने दो साल पहले भी ओडिशा से भाजपा के टिकट पर राज्यसभा का चुनाव जीत कर सबको सकते में डाल दिया था क्योंकि पार्टी के पास विधायकों की संख्या इतनी नहीं थी कि वह चुनाव जीत सकें।
राजस्थान के जोधपुर में पैदा हुए 51 वर्षीय वैष्णव 1994 बैच के ओडिशा कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी रहे हैं। आईएएस अधिकारी रहते हुए उन्होंने 15 सालों तक कई अहम जिम्मेदारियां संभालीं। अश्विनी वैष्णव को सबसे ज्यादा पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानी पीपीपी फ्रेमवर्क में उनके अहम योगदान के लिए ही जाना जाता है।
आईआईटी ग्रैजुएट वैष्णव ने साल 2008 में नौकरी छोड़ दी और वह अमेरिका के वॉर्टन यूनिवर्सिटी चले गए जहां से उन्होंने एमबीए की पढ़ाई की। कई जानी-मानी कंपनियों में काम करने के बाद वह देश वापस लौटे और गुजरात में अपने मैन्युफैक्चरिंग यूनिट खोली। इसके बाद उन्होंने जनरल इलेक्ट्रिक और सिमेन्स जैसी कंपनियों में भी शीर्ष पदों पर काम किया।
वैष्णव की एंट्री कैबिनेट में ऐसे समय में हुई है जब भारती रेलवे की आमदनी को बढ़ाए जाने के तरीकों पर विचार किया जा रहा है। रेलवे के विकास के लिए भी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के लिए रास्ते खोलने पर विचार किया जा रहा है।
भारतीय रेलवे की योजना है कि वह कई चरणों में प्राइवेट ट्रेन लॉन्च करेगी। पहले फेज में साल 2023-24 में जहां ऐसी दर्जन भर ट्रेनें चलाई जाएंगी तो वहीं साल 2027 तक इसकी संख्या बढ़ाकर 151 तक की जाएगी। शुरुआती बैठकों में बॉम्बार्डियर ट्रांसपोर्टेशन इंडिया, सिमेन्स लिमिटेड, ऑल्स्टॉम ट्रांसपोर्ट इंडिया लिमिटेड उन 23 कंपनियों में शामिल हैं, जिन्होंने प्राइवेट ट्रेन का संचालन करने में रुचि दिखाई है।
भाजपा में होने के बावजूद उन्होंने राज्यसभा चुनाव में ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के प्रमुख नवीन पटनायक का समर्थन हासिल कर लिया। बीजद के भीतर कई नेताओं ने इसकी आलोचना की थी। आरोप लगाए गए कि पटनायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के दबाव में झुक गए और वैष्णव का समर्थन कर दिया।
वैष्णव 28 जून, 2019 को हुए राज्यसभा चुनाव से सिर्फ छह दिन पहले ही भाजपा में शामिल हुए थे। प्रशासनिक सेवा में रहते हुए उन्होंने बालेश्वर और कटक जिलों के कलेक्टर की जिम्मेदारी निभाई। साल 1999 में आए भीषण चक्रवात के समय उन्होंने बतौर नौकरशाह अपने कौशल का परिचय दिया और उनकी सूचना के आधार पर सरकार त्वरित कदम उठा सकी जिससे बहुत सारे लोगों की जान बची।
वैष्णव ने साल 2003 तक ओडिशा में काम किया और फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यालय में उप सचिव नियुक्त हो गए। वाजपेयी जब प्रधानमंत्री पद से हटे तो वैष्णव को उनका सचिव बनाया गया। आईआईटी से पढ़ाई कर चुके वैष्णव ने 2008 में सरकारी नौकरी छोड़ दी और अमेरिका के व्हार्टन विश्वविद्यालय से एमबीए किया। वापस लौटने के बाद उन्होंने कुछ बड़ी कंपनियों में नौकरी की और फिर गुजरात में ऑटो उपकरण की विनिर्माण इकाइयां स्थापित कीं। इसी साल अप्रैल में उन्हें भारतीय प्रेस परिषद का सदस्य नामित किया गया था।