शहर की गलियां ही नहीं गांवों की पगडंडियों पर भी महामारी से पैदा हुए गम और दहशत के कांटे चुभते हैं। दर्द का अंतहीन सिलसिला यहां भी महसूस होता है।
कल तक जो बुजुर्ग यह सोचकर बेफिक्र थे कि अब उनके बुढ़ापे की लाठी बेटा जीवन की नैया पार लगाएगा, कोरोना ने उसे ही छीन लिया है।
वहीं, जो घर कभी बच्चों की शैतानियों से खिलखिलाते थे, वहां पिता का साया छिन जाने से मातम है। जितनी सच्चाई इस अंतहीन पीड़ा में है, उतना ही सच यह भी है कि जिंदगी किसी के चले जाने से ठहरती नहीं है।
आगे बढ़ती है और बढ़नी भी चाहिए। अपनों को खोकर किस तरह से राजधानी के गांवों में लोग फिर से जीने की कोशिश कर रहे हैं।
इसे जानने के लिए ‘अमर उजाला’ की टीम विभिन्न ब्लॉक के एक-एक गांव में गई, संक्रमण काल से गुजरे लोगों से उनके दर्द को साझा किया और जानने की कोशिश कि कैसे लोग आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। पेश है रिपोर्ट…।
दो जवान बेटों की मौत से टूट गए बुजुर्ग माता-पिता
जवान बेटों की मौत का गम बुजुर्ग माता-पिता का दिल ही जानता है। सरोजनीनगर मुख्यालय से पांच किमी दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत कुरौनी में 15 दिन में 10 लोगों की असमय मौत ने सबको तोड़ दिया। दो जवान शादीशुदा बेटों संजीव व विकास को खोने के बाद बुजुर्ग रमेश शुक्ला और उनकी पत्नी की तो दुनिया ही उजड़ गई। अब रमेश के बूढ़े कंधों पर बहुओं ज्योति, सोनी और उनके चार छोटे बच्चों की जिम्मेदारी है। वह बताते हैं कि सरकारी राशन जरूर मिल जाता है, लेकिन सबसे बड़ी चिंता बच्चों की पढ़ाई की है। दोनों बेटे परिवार पाल रहे थे। आगे इनकी देखरेख कौन करेगा। सरकार से भी कोई मदद नहीं मिली है।
अपनी सुरक्षा करके घर से निकल रहे लोग
कुरौनी में अधिकतर लोग खांसी, जुकाम, बुखार से पीड़ित थे। इसी माहौल में स्वास्थ्य विभाग ने कैंप लगाकर घर-घर जांच शुरू की। सैनिटाइजेशन और सफाई का अभियान चला। इससे माहभर से गांव में कोई मौत नहीं हुई है। लोगों ने मास्क के साथ अन्य सावधानियां बरतते हुए खेती भी शुरू कर दी है।
इकबाल के परिवार पर टूटा गमों का पहाड़
मोहनलालगंज के सिसेंडी में जुकाम, बुखार व सांस लेने में दिक्कत के बाद 14 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें इकबाल खान भी हैं। वह परिवार का एकमात्र सहारा थे। पत्नी रेशमा की एक आंख खराब है, जबकि बेटा दस वर्षीय शादाब खान दृष्टिबाधित है। सरकारी राशन मिलने की व्यवस्था है, लेकिन घर में पैसे नहीं थे। ऐसे में अबरार समेत कुछ लोग आगे आए और मदद की। मौजूदा वक्त में इस्लामिक एजूकेशन एंड वेलफेयर सोसाइटी परिवार को राशन व आर्थिक मदद दे रही है।
एक-दूसरे का सहारा बनकर दी डर को मात
करीब 12 हजार आबादी वाली सिसेंडी ग्राम पंचायत में स्वास्थ्य विभाग ने घर-घर जाकर कोविड जांच की। अब जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है। सिसेंडी व्यापार मंडल के महामंत्री वीरेंद्र शुक्ला व गांव के शिक्षक प्रदीप सिंह कहते हैं कि लोगों ने अपने स्तर से सैनिटाइजेशन कराया व सतर्कता बरती।
परिवार की गाड़ी मझधार में छोड़ गए संतोष
मलिहाबाद की मवई कला पंचायत के संतोष शर्मा (42) ई-रिक्शा चलाते थे। महामारी में उनकी मौत से परिवार ने इकलौता कमाने वाला खो दिया। पत्नी संगीता कहती हैं कि बच्चे रिया, शिखा, सोनम व बेटा राज छोटे हैं। अभी तो रिश्तेदारों की मदद से गुजारा हो रहा है, लेकिन आगे का कुछ पता नहीं।
सामान्य होने लगी संक्रमित गांवों की स्थिति
कोरोना की दूसरी लहर में मवई कला में 23 लोगों की मौत हुई थी। हालांकि, सरकारी आंकड़ों के अनुसार गांव के सुंदर पाल की ही कोविड से मौत हुई। प्रधान प्रतिनिधि जितेंद्र कुमार ने बताया कि ग्रामीणों के सहयोग से आज गांव की स्थिति सामान्य है। एक और मुजसा गांव में भी 19 लोगों की मौत से ग्रामीण सहमे थे। प्रधान जुबैर हाफिज ने बताया कि आपसी सहयोग से संक्रमण मुक्त करने में मदद मिली।