बिहार के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने में तय मानक के अनुसार डीपीआर नहीं बनाए गए। इससे सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ। भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है।
विधानसभा में पेश सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार बिजली कंपनियों की ओर से जो डीपीआर बनाए गए, उसमें कई गड़बड़ियां थीं। कंपनी ने ऐसी कोई योजना नहीं बनाई, जिससे उद्योगों के लिए आवश्यक भार को पूरा किया जा सके। खासकर ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण विद्युतीकरण की योजना उस सीमा तक अकुशल थी। यही नहीं, कंपनी ने सलाहकारों की नियुक्ति पर निरर्थक पैसे खर्च किए। सलाहकारों की नियुक्ति तभी की जानी चाहिए थी जब विभाग के पास विशेषज्ञ न हों। लेकिन कंपनी ने इसका उल्लंघन किया।
छह जिले में हुई जांच के दौरान अनुमानित मात्रा व निष्पादित मात्रा में अंतर पाया गया। पोल, तार, ट्रांसफॉर्मर, केबल, सब-स्टेशन के कार्य में कमी पाई गई। इससे साफ है कि बिना सर्वेक्षण के ही डीपीआर बना दिया गया था। आउटसोर्सिंग एजेंसी से जो डीपीआर बनी, उसमें सवा तीन करोड़ अधिक खर्च किए गए। जबकि समझौते में इसका प्रावधान नहीं था। सलाहकारों को नियुक्त कर सवा 22 करोड़ खर्च किए गए। बिना वास्तविक सर्वेक्षण और आवश्यकता तय किए ही डीपीआर तैयार करने के कारण 1632 करोड़ की परियोजना लागत की मंजूरी जल्दीबाजी में दी गई। इससे 979 करोड़ के अनुदान की हानि के रूप में सामने आया। बिजली कंपनी ने बीमा दावों का सही तरीके से निपटारा नहीं किया।
निर्देशों का कड़ाई से पालन हो
सीएजी ने अपनी अनुशंसा में कहा है कि बिजली कंपनियों को योजना के दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करना चाहिए और डीपीआर बनाने में उचित कर्मठता सुनिश्चित करनी चाहिए। सीएजी ने कंपनी की अन्य परियोजना पर भी अपनी रिपोर्ट में सवाल उठाए हैं।