नई दिल्ली: प्याज के भाव इन दिनों काफी रुला रहा है. हर साल ठंड में प्याज के भाव बढ़ते हैं. पिछले साल भी प्याज की कीमत सैकड़ा पार कर गई थी. इस वक्त भी ऐसा ही हाल है. एक तरफ त्यौहारों का सीजन है, तो दूसरी तरफ प्याज की आसमान छूती कीमत पकवानों की लिस्ट छोटी कर रही है. भारत में सब्जियों की लिस्ट में हर किसी के घर में प्याज का नाम जरूर होता है- चाहे परिवार शाकाहारी हो या मांसाहारी. ऐसे में प्याज की बढ़ती कीमत किसी आपदा से कम नहीं होता. लेकिन आज हम आपको बताते हैं प्याज का वो कैलेंडर, जिसे अपने जेहन में याद करके आप कभी भी प्याज के आंसू नहीं रोएंगे.
इन महीनों से बढ़ती है प्याज की कीमत
भारत में प्याज की खेती के तीन सीजन है. पहला खरीफ, दूसरा जायद और तीसरा रबी . खरीफ सीजन में प्याज की बुआई जुलाई-अगस्त महीने में की जाती है. खरीफ सीजन में बोई गई प्याज की फसल अक्टूबर दिसंबर में मार्केट में आती है. तब तक दूसरे सीजन की प्याज अक्टूबर नवंबर में बो दी जाती है. जो जनवरी मार्च तक तैयार हो जाती है. प्याज की तीसरी फसल रबी की होती है. इसमें दिसंबर जनवरी में बुआई होती है और फसल की मार्च से लेकर मई तक तैयार होती है. अंदाजे के मुताबिक प्याज के कुल उत्पादन का 65 फीसदी रबी सीजन में होता है. मई के बाद सीधा मार्केट में अगली फसल अक्टूबर की ही होती है . ऐसे में प्याज महंगे होने के महीने होते हैं –
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भारत में 2.3 करोड़ टन प्याज का उत्पादन होता है. इसमें 36 फीसदी प्याज महाराष्ट्र से आता है. इसके बाद मध्य प्रदेश में करीब 16 फीसदी, कर्नाटक में करीब 13 फीसदी, बिहार में 6 फीसदी और राजस्थान में 5 फीसदी प्याज का उत्पादन होता है. इनमें से किसी भी राज्य में बाढ़ आने या अक्टूबर-नवंबर की बुआई के बाद पाला पड़ने पर भी प्याज की फसल खराब होती है और फरवरी-मार्च में प्याज के दाम बढ़ने की आशंका बनी रहती है.
कैसे करें प्याज का मैनेजमेंट?
प्याज की बढ़ती कीमत घर का बजट न बिगाड़े, इसके लिए हम प्याज को अच्छी तरह सुखाकर (गीलापन न रहे) रख सकते हैं. जो प्याज कैलेंडर के हिसाब से प्याज महंगे होने के वक्त से कुछ दिन पहले खरीदकर रखे जा सकते हैं. कई बार प्याज को तलकर या भूनकर भी रखने से प्याज कुछ और रोज टिक जाते हैं. जब प्याज की आवक कम होने वाली हो, तो हम किचन गार्डेन में प्याज को उगाकर इसकी पत्तियां फ्लेवर के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं. एक-दो हफ्ते के लिए प्याज को स्टोर करके बजट को कंट्रोल किया जा सकता है, बजाय हर रोज इसे खरीदने के. हालांकि इस बात का खास ख्याल रखना होगा कि स्टोर उतना ही करें, जितनी जरूरत हो, ताकि आपका बजट ठीक होने के चक्कर में औरों का बजट न बिगड़े