कोरोना के बीच दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण को संभाल पाएगी सरकार?

मुमकिन है कि जिस वक़्त आप ये कहानी पढ़ रहे हैं, हवा की गुणवत्ता और ख़राब हो चुकी हो.

लेकिन ये हाल सिर्फ़ दिल्ली का नहीं है. पूरे उत्तर भारत में हवा की गुणवत्ता ख़राब हो रही है.

सर्दियों की शुरुआत में तापमान गिरा है और हवा की गति कम हुई है. इसके साथ ही आसपास के इलाक़ों में पराली जलाये जाने से स्थिति बदतर होती जा रही है

पर्यावरणविद और एनसीआर की पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण की सदस्य सुनीता नारायण बताती हैं, “आगे बहुत तेज़ ठण्ड आने वाली है. मैं इस साल बहुत डरी हुई हूँ. कोविड-19 के साथ ये दोहरी मार हो सकती है क्योंकि वायरस हमारे फेफड़ों पर उसी तरह हमला करता है, जैसे हवा में प्रदूषण. इसलिए हमें प्रभावी क़दम उठाने की ज़रूरत है.”

वे कहती हैं कि महामारी के कारण सरकारी तंत्र के लोग अलग-अलग कामों में व्यस्त हैं, इसलिए इस बार चुनौती ज़्यादा बड़ी है.

वे कहती हैं, “दिल्ली, हरियाणा, यूपी, पंजाब या राजस्थान में हमारे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बहुत कमज़ोर हैं, इनके पास बहुत सीमित कर्मचारी हैं, इसलिए इनकी क्षमता बहुत कम है. हमें इन संस्थानों को सशक्त बनाने की ज़रूरत है. सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरन्मेंट) ने कुछ साल पहले इस पर प्रकाश डाला था. हम इस विषय पर फिर से विचार कर रहे हैं और सरकारों से बात करने की कोशिश कर रहे हैं”

क्या पराली जलना कम होगा?

ईपीसीए द्वारा उच्चतम न्यायालय के समक्ष पेश किये गए आंकड़ों से पता चलता है कि अक्तूबर और दिसंबर के बीच, दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में पीएम-2.5 के कुल स्तर का 60 प्रतिशत पराली के धुएं के कारण हो सकता है.

पिछले साल उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के खेतों में पराली जलाने के कुल 61,000 से अधिक मामले सामने आये थे.

रिकॉर्ड किये गए उदाहरणों के साथ, 2019 की हालत पहले के सालों के मुक़ाबले बुरी थी

2020 में क्या होगा?

यह इस बात पर निर्भर करता है कि पराली जलाई जाती है या नहीं. पहले यह कहा गया था कि किसानों के पास कोई विकल्प नहीं है. लेकिन अब ऐसी मशीनें हैं जो जलाने के बजाय, खेत में कटाई के बाद बचे फसल के अंश को हटा सकती हैं.”

“लेकिन क्या किसान इनका उपयोग करेंगे? क्या किसान इस बारे में जानते हैं? और क्या राज्यों में सरकारें किसानों को जागरूक करने का प्रयास कर रही हैं.”

ज़मीन पर रणनीति

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आधार पर और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया रोडमैप ‘दो-आयामी’ दृष्टिकोण के बारे में बात करता है.

ईपीसीए की रिपोर्ट (संख्या 117) जिसे 30 सितंबर को जमा किया गया था, उसके अनुसार, “किसानों को मशीनें उपलब्ध करानी हैं जो नीचे बचे ठूंठ को निकालने में मदद करें. साथ ही किसानों को पराली के लिए सही मूल्य दिया जाये.”

“राज्यों ने पहले ही स्टबल मैनेजमेंट मशीनें (पंजाब, हरियाणा और यूपी के बीच लगभग 80,000) ख़रीदी हैं और कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) की स्थापना की है. इस सीजन में कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लक्ष्य बनाये गए हैं. लंबे समय में इसका उद्देश्य फसलों में विविधता लाने का है, ताकि किसान गै़र-बासमती धान से दूर चले जाएं जिनके कारण पराली के जलाने की समस्या बढ़ती है.”

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