कोरोना वायरस जंग जीत गया माधोसिंह की सुने आपबीती

 

 

 

 

 

जहां चाह, वहां राह। यह बात आज फिर एक नए अर्थ पा गई है। बेशक, कोरोना वायरस घातक है, जानलेवा है और बरबादी का घर है लेकिन इंसान के हाथ में जो है, वह तो उसे करना ही चाहिये। हम आपको एक ऐसे शख्‍स की कहानी बताने जा रहे हैं जो कोरोना के चंगुल से सकुशल छूटकर निकला है। कोरोना पॉजीटिव की रिपोर्ट आने पर उसकी भी आंखों के आगे अंधेरा छा गया था। परिवार, भविष्‍य के सारे सवाल आ खड़े हुए, लेकिन कुछ ऐसी बात थी इस बंदे में जो आज वह सही-सलामत बैठा है। पढ़ें इस शख्‍स की आपबीती और आपको भी बहुत कुछ सीखने-समझने को मिलेगा।

खुद के आत्मविश्वास और डॉक्टरों के समन्वित प्रयास से पाली जिले का माधोसिंह कोरोना की जंग जीत गया है। लगातार दो बार उसकी रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद अब उसमें सकारात्मकता का संचार हो रहा है। वह बिजनेस यात्रा पर दुबई में कोरोना संक्रमित हो गया था। माधोसिंह को अब अस्पताल से छुट्टी मिलने का इंतजार है।

गलत जानकारी फैलाने वाले कर रहे समाज का नुकसान

जोधपुर के डॉक्टरों व अन्य स्टॉफ को धन्यवाद देते हुए माधोसिंह ने लोगों से भी अपील की कि वे सोशल मीडिया के माध्यम से कोरोना को लेकर गलत जानकारी व अफवाह न फैलाए। माधोसिंह ने कहा कि सबसे पहले वह डॉक्‍टर समेत सभी स्टाफ का धन्यवाद कहना चाहता है जो कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैंं। एक गत 12 दिन से मेरा यहां इलाज चल रहा है और मुझे एक दिन भी डर नहीं लगा।

सोशल मीडिया पर उड़ी थी मौत की अफवाह

उसने कहा कि सोशल मीडिया पर किसी ने उसकी मेरी मौत की अफवाह फैला दी थी, जबकि वो स्वस्थ हो रहा था। मुझे भय सता रहा था कि कहीं ये सुनकर मेरे परिजनों को कुछ हो न जाए क्योंकि घर पर बूढ़े माता-पिता, पत्नी व चार बच्चे हैं। उसने कहा कि उसे डॉक्टरों पर पूरा भरोसा था कि ये मुश्किल हालात से भी मुझे बाहर निकाल कर ले आएंगे। मैं भी पूरी सकारात्मक सोच के साथ डॉक्टरों को सहयोग कर रहा था।

ऐसे हुआ था कोरोना संक्रमित

रेडीमेड गारमेंट का बिजनेस करने वाले माधोसिंह ने बताया कि वह 13 मार्च को खरीदारी करने दुबई गए था। 18 मार्च को मुबई से ट्रेन के जरिये पाली जिले के अपने गांव ढोला के लिए रवाना हुआ। अगले दिन 19 मार्च को सुबह यहां पहुंचते ही बुखार आ गया। ट्रेन से उतरते ही डॉक्टर को दिखाया। उन्होंने गोलियां लिख दी। घर पहुंचने पर बुखार बढ़ गया। ऐसे में मुझे महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ है। ऐसे में मैने स्वयं को परिजनों से दूर कर लिया। इसके बाद डॉक्टर को दिखाने गया। उन्होंने ट्रेवल हिस्ट्री पूछी और जोधपुर इलाज कराने को कहा।जिसके बाद अपनी बाइक लेकर उसी समय जोधपुर के लिए रवाना हो गया। तब प्रशासन ने मुझसे संपर्क किया और पाली में इलाज के बाद मुझे जोधपुर रेफर कर दिया गया।

दिनचर्या रहती थी पूरी साफ-सुथरी

दिन में पूजा पाठ के साथ-साथ योग को भी अपने दिनचर्या में शामिल किया साथ ही सकारात्मक विचारों के साथ डॉक्टरों को पूर्ण सहयोग किया जिसका पूरा फायदा मिला परिवारजनों के साथ वीडियो कॉल के द्वारा बातचीत करना और उनको भी सहयोग की भावना और धैर्य रखने की बात से ठीक होने में मदद मिली। पत्नी रोजाना फोन कर हौसला बढ़ाती रहती। यहां रहते हुए मुझे अनुभव हुआ कि घबराना बिलकुल नहीं चाहिये अन्यथा दूसरी बीमारियां भी हो सकती है।SB

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