मीरजापुर- विंध्याचल मंडल के जंगलों की तेजी से कटान होने के चतले दो जनपदों में पैदा होने होने वाली जड़ी बूटी धीरे धीरे गायब हो रही है। यहीं कारण है कि पिछले दस सालों में इनके उत्पाद में 75 प्रतिशित की गिरावट आई है। जबकि इससे पहले सौ प्रतिशित की पैदावार होती थी, लेकिन वर्तमान समय में 25 प्रतिशत की पैदा हो रही है। समय रहते इनपर ध्यान नहीं दिया तो यह जंगलों से पूरी तरह से समाप्त हो जाएंगी।
जनपद के पटेहरा में करीब 15 साल पहले हर्रा बहेरा व मरोफली नामक जड़ी बूटी भारी मात्रा में पैदा होती थी। ये जड़ी बूटिया सोनभद्र के पमौरा व चिचलिक में भी होती है। जंगलों से भारी मात्रा में पैदा होने वाली इन जड़ी बूटियों को जुटा कर गोदाम में रखा जाता था जिसेे बाद में व्यापारियों के माध्यम से खुदरा बाजार तक पहुंचाया जाता था। जिससे वन विभाग को प्रतिवर्ष दस लाख रुपये तक की आय होती थी लेेकिन वर्तमान समय में जंगलों की तेजी से हो रहे कटान के चलते इन औषधि की पैदावार में काफी कमी आई है।
क्या होते हैं इनसे फायदे
करीब 15 साल पहले हर्रा बहेरा व मरोफली की पैदावार काफी होती थी। मीरजापुर और सोनभद्र मिलाकर दो सौ कंतुल पैदावार थी। लेकिन इनके संरक्षण में कमी आने के कारण यह धीरे धीरे समाप्त होती जा रही है।
जंगलों में चोरी छिपे कटान के चलते उत्पाद में आ रही कमी
जड़ी बूटियों के संरक्षण पर ध्यान दिया जा रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों से जंगलों में चोरी छिपे हुई कटान के चलते इनके उत्पाद में कमी आ रही है। दूसरा कारण प्रदूषण भी है। जिससे पेड़ पौंधे धीरे धीरे सूखते जा रहे हैं।