कोरोना वायरस की जांच में दुनिया के कई देशों के एयरपोर्ट पर लगे थर्मल स्कैनर बड़ी अहम भूमिका निभा सकते हैं। रोगी का पता लगाने में इनका कोई जवाब नहीं है।
नई दिल्ली। चीन में महामारी की शक्ल ले चुका कोरोना वायरस अब तक दुनिया के 19 देशों में फैल चुका है। वहीं पूरी दुनिया को इसकी पहली वैक्सीन का इंतजार है। पूरी दुनिया इसकी आहट से डरी हुई है। चीन में अब तक इसके 5974 मरीजों की पुष्टि सरकार कर चुकी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इसके 1239 मरीजों की हालत गंभीर है जबकि 132 मरीजों की मौत हो चुकी है। चीन के अलावा कई दूसरे देशों ने इससे बचाव के उपाय शुरू कर दिए हैं। इसके तहत अंतरराष्ट्रीय हवाई अडडों पर थर्मल स्कैनर लगाए हैं। ऐसा करने वालों में भारत, जर्मनी, अमेरिका, वियतनाम, दक्षिण कोरिया, कंबोडिया, साइप्रस, इंडोनेशिया, यूएई और सिंगापुर समेत कई अन्य देश शामिल हैं।
थर्मल स्कैनर एक ऐसा डिवाइस है जो शरीर के तापमान को दर्ज कर एक थर्मल इमेज तैयार करता है। इसकी स्क्रीन पर जो इमेज उभरकर आती है उसमें मौजूद अलग-अलग रंग शरीर ही नहीं उसके आस-पास की चीजों के तापमान को दर्शाती है। इस डिवाइस पर मौजूद रंगों के अलावा कुछ स्कैनर में बाकायदा शरीर का तापमान भी लिखा हुआ आता है। वुहान समेत अन्य एयरपोर्ट पर मौजूद जो स्कैनर लगाए गए हैं उनमें दोनों ही तरह की व्यवस्था है। इतना ही नहीं किसी व्यक्ति के शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होने पर यह स्कैनर बीप के माध्यम से सिग्नल देते हैं। इसके बाद उक्त व्यक्ति को दूसरे यात्रियों से अलग कर उसकी जांच की जाती है और उसका ब्लड सैंपल लिया जाता है।
दुनिया के कई देशों के एयरपोर्ट पर लगाए गए थर्मल स्कैनर की तकनीक को सन 1800 में सर विलियम हर्शेल ने इजाद किया था। इसमें थर्मल मेजरमेंट के लिए इंफ्रारेड रेज का इस्तेमाल किया गया था। 1883 में मैलोनी ने इसमें क्रांतिकारी बदलाव किया। उनके द्वारा बनाया गया डिवाइस दस मीटर दूर से किसी भी व्यक्ति के तापमान का पता लगाने में सक्षम था। इस डिवाइस के सामने आने के बाद भी इसको लेकर लगातार शोध होता रहा। 1901 में चार्ल्स ग्रीले और लेंग्ले एक ऐसा डिवाइस बनाने में कामयाब हुए जो 400 मीटर की दूरी पर शरीर के तापमान को माप लेता था। इसके प्रयोग के लिए उन्होंने गाय का इस्तेमाल किया था।
1929 में हंगरी के फिजीसिस्ट कालमान तिहांयी ने इंफ्रारेड सेंसिटिव नाइट विजन इलेक्ट्रॉनिक टेलिविजन कैमरे का अविष्कार किया था। इसको हवाई हमले से सुरक्षा के लिए तैयार किया गया था। इसके बाद 1947 में अमेरिका में पहला थर्मोग्राफिक कैमरा तैयार किया गया था। इस तरह के कैमरे ठंडे और गरम खून में फर्क कर एक इमेज तैयार करते हैं। 1965 में पहली बार किसी थर्मल इमेजिंग कैमरा की बिक्री शुरू हुई थी। इसको हाई वोल्टेज पावर लाइन के इंसपैक्शन के लिए खरीदा गया था।
आपको बता दें कि वर्तमान में दुनिया के लिए खतरा बने कोरोना वायरस की जांच में यह तकनीक काफी कारगर है। इस तकनीक के जरिए रोगी को तो पहचानना आसान है ही साथ ही इसको बढ़ने से भी रोका जा सकता है। चीन का वुहान शहर जहां इसका सबसे अधिक प्रकोप है वहां पर भारत समेत कई देशों के नागरिक शिक्षा समेत दूसरे कार्यों के लिए रह रहे हैं। वायरस के प्रकोप से इन्हें बचाने के लिए सभी देश अपने नागरिकों को बाहर निकालने के लिए तैयार हैं। अमेरिका ने वुहान में मौजूद अपने 240 नागरिकों को जिसमें डिप्लोमेट भी शामिल हैं, को निकालना शुरू कर दिया है। सिंगापुर में इस वायरस के सात मरीज सामने आने के बाद यहां पर सेनिटाइजर और थर्मामीटर की खरीद में इजाफा देखने को मिला है। चीन की ही बात करें तो वुहान समेत दूसरी जगहों पर सभी स्वास्थ्य कर्मियों को इसके बचाव के लिए प्रोटेक्टिव सूट मुहैया करवाए गए हैं।