त्रिची
TransGender बच्चे अकसर अपने माता-पिता द्वारा बेसहारा छोड़ दिए जाते हैं। इसके बाद जीने के लिए वे या तो सड़कों पर भीख मांगने को मजबूर होते हैं या फिर उन्हें सेक्स वर्क का सहारा लेना पड़ता है। ऐसे बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए तमिलनाडु में एक शैक्षणिक संस्थान ने बेहद नेक पहल की है। स्कूल ने इन ट्रांसजेंडर बच्चों की पढ़ाई के अलावा उन्हें रहने के लिए एक अलग हॉस्टल देने का निर्णय किया है।
स्वामी शिवानंद विद्या समिति की तरफ से संचालित इस स्कूल के सीईओ रिटायर्ड मेजर जनरल एनआरके बाबू कहते हैं, इस हॉस्टल को खोलने की प्रेरणा तब मिली जब मैं पहली बार प्रिया (ट्रांसजेंडर) से मिला। 15 साल की उम्र में उसके माता-पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। उसकी दुर्दशा देखने के बाद मैंने उसकी पढ़ाई जारी रखने और उसके रहने की व्यवस्था की। इसके बाद मुझे लगा है कि ऐसे कितने ट्रांसजेंडर बच्चे होंगे, जो अपने सपने पूरे नहीं कर पा रहे होंगे। मां-बाप के छोड़ देने के बाद इन मासूम बच्चों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है। ऐसे में हमने निर्णय लिया कि हम इन बच्चों को उनके सिर पर छत देने के साथ ही उनके सपनों को साकार करने में मदद करेंगे।
40 बच्चे रह सकेंगे इस हॉस्टल में
रिटायर्ड मेजर जनरल एनआरके कहते हैं, हर रोज करीब 3-4 ऐसे बच्चे घरों से बेदखल होने के बाद अचानक सड़क पर आ जाते हैं। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी है कि हम इन अभिभावकों को प्रेरित करें कि वे ऐसे बच्चों को सड़क पर छोड़ देने की जगह उन्हें हमारे हॉस्टल में भेज दें। ये अभिभावक अपने बच्चों को 18 साल की उम्र तक हमारे हॉस्टल में रख सकते हैं। शिवानंद बालालय सीबीएसई स्कूल में इस हॉस्टल की आधारशिला शनिवार को रखी गई। 30 लाख रुपये से अधिक की लागत से बनने वाले इस भवन में 40 बच्चे रह सकेंगे।
इन बच्चों को कॉलेज भी भेजेंगे’
बाबू कहते हैं, ’18 साल की उम्र तक स्कूल मनोवैज्ञानिक, कानूनी और चिकित्सा परामर्श की जिम्मेदारी लेगा। यह मानसिक रूप से उन्हें दुनिया का सामना करने के लिए तैयार करेगा और इसके बाद हम उन्हें कॉलेज भी भेजेंगे।’ उन्होंने बताया कि ऐसे प्रायोजकों की खोज जारी है जो इन बच्चों के लिए भोजन और बोर्डिंग की व्यवस्था कर सकें।
सिर्फ 2 फीसदी ट्रांसजेंडर बच्चे रहते हैं माता-पिता के साथ
पिछले साल एनएचआरसी के एक अध्ययन में कहा गया था कि ट्रांसजेंडर्स का भेदभाव बचपन से कैसे शुरू होता है। इस स्टडी में यह बात भी सामने आई कि ऐसे बच्चे अकसर अपने माता-पिता, भाई-बहनों और परिवार के अन्य सदस्यों के जरिए मौखिक और शारीरिक दुर्व्यवहार झेलते हैं। इस स्टडी में यह भी कहा गया कि केवल 2 फीसदी ट्रांसजेंडर बच्चे ही अपने माता- पिता के साथ रहते हैं।