मुस्लिमों के कुछ समुदायों में प्रचलित इंस्टेंट ट्रिपल तलाक के चलन को फौजदारी अपराध बनाने से जुड़े बिल को अब राज्यसभा में पेश किया जाएगा. एक बार में तीन तलाक या तलाक-ए-बिदत के जुर्म में पति को तीन साल की सजा के प्रावधान वाले मुस्लिम महिला (विवाह संबंधित अधिकारों का संरक्षण) बिल को पिछले हफ्ते ही लोकसभा में पारित किया गया था. हालांकि राज्यसभा में इसे आगे बढाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी. ऊपरी सदन में सत्ताधारी बीजेपी को बहुमत नहीं है, ऐसे में इसे पास कराने में उसे गैर एनडीए दलों के साथ की जरूरत होगी, इसमें मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
राज्यसभा में एनडीए की ताकत?
राज्यसभा में अगर सदस्यों की संख्या पर नजर डालें, तो यहां बीजेपी के 57 सांसद हैं, जबकि एनडीए सहयोगी जेडीयू के 7, शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना के 3-3 और टीडीपी के 6 सदस्य हैं. इसके अलावा सरकार को टीआरएस के 3, आरपीआई, नगालैंड पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) और आईएनएलडी के एक-एक सांसद का भी समर्थन मिलने की उम्मीद है.
राज्यसभा की कुल 245 सीटों में अभी सदन के 238 सदस्य हैं, जिससे बहुमत का आंकड़ा 120 के करीब बैठता है. इन तमाम सहयोगी दलों को मिलाकर भी सरकार बहुमत से कोसों पीछे रह जाती है. ऐसे में उसे कांग्रेस सहित दूसरी विपक्षी पार्टियों की मदद की दरकार होगी.
कांग्रेस देगी सरकार का साथ!
लोकसभा में इस बिल का समर्थन कर चुकी कांग्रेस ने राज्यसभा में इस बिल को लेकर अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है. ऊपरी सदन में कांग्रेस के 57 सांसद हैं. ऐसे में अगर कांग्रेस ने यहां भी इस बिल को समर्थन दिया तो सरकार के लिए इसे पास कराना बेहद आसान हो जाएगा. कांग्रेस का कहना है कि वह अन्य विपक्षी पार्टियों से चर्चा कर फैसला लेगी.
वहीं अगर कांग्रेस नहीं मानी, तो सरकार दूसरे गैर एनडीए दलों का रुख कर सकती है. राज्यसभा में एनसीपी के पांच, आरजेडी के तीन और टीएमसी के 12 सांसद हैं, लेकिन इस बिल पर सरकार को शायद ही इनमें से किसी का समर्थन मिल सके.
ऐसे में गैर-एनडीए और गैर-यूपीए दलों की अहमियत काफी बढ़ जाती है. यहां एआईएडीएमके के 13, बीजेडी के 8, सीपीएम के 7, डीएमके के 4 और सीपीआई के 1, एसपी के 18 और बीएसपी के 5 सांसद शामिल हैं. बीजेपी के सामने अब इन दलों को मनाने की चुनौती होगी.