लखनऊ। राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौधरी लौटन राम निषाद ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खनन नीति को पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की भांति परंपरागत पेशेवर निषाद मछुआरा जातियों का विरोधी बताते हुए नीति में परंपरागत पेशेवर जातियों को प्राथमिकता दिए जाने की मांग की है।
उन्होंने कहा, “हेमवती नंदन बहुगुणा, विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के समय बालू, मौरंग खनन, नौका फेरी घाट व मत्स्य पालन पट्टा के लिए परंपरागत पुश्तैनी पेशेवर निषाद मछुआरा समाज की मल्लाह, केवट, बिंद, मांझी, तुरहा, गोड़िया, धीवर, धीमर, कश्यप कहार, रायकवार आदि जातियों को एवं मछुआरों की मत्स्य जीवी सहकारी समितियों को प्राथमिकता देते हुए शासनादेश जारी किया गया था। 1994-95 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने मत्स्य पालन पट्टा व बालू, मौरंग खनन पट्टा के लिए निषाद जातियों को विशेष प्राथमिकता दी थी।”
निषाद ने कहा, “जब कल्याण सिंह उप्र के मुख्यमंत्री बने तो बालू, मौरंग खनन पट्टा प्रणाली को खत्म कर सार्वजनिक कर दिया गया। जब राजनाथ सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने निषाद मछुआरा समुदाय की जातियों को प्राथमिकता देते हुए उप खनिज परिहार नियमावाली में संशोधन किया था। लेकिन, योगी सरकार ने 22 अप्रैल को शासनादेश जारी किया है जिसमें परंपरागत पेशेवर जातियों को प्राथमिकता न देकर निषाद मछुआरा समुदाय के साथ घोर अन्याय किया गया है।”
उन्होंने कहा कि खनिज परमिट जारी करने के नियम 9(ए) के तहत किसी को वरीयता न दिए जाने का निर्णय लिया गया है, जो मछुआरा समाज के खिलाफ है।