सेतु निगम में इंजीनियरों की भारी कमी,लटकी है इंजीनियरों की भर्तिया

brij mukhyaly

अशोक कुमार गुप्ता,लखनऊ। अपनी उत्कृष्टïता और बेहतरीन निर्माण के लिए देश-विदेश तक अपना डंका बजाने वाले उत्तर प्रदेश सेतु निगम के पास अब यूपी से बाहर कोई बड़ा प्रोजेक्ट नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण इंजीनियरों की भारी कमी है । अखिलेश सरकार में जेई और एई की भर्तिया के लिए अभ्यर्थियों से आवेदन लिया गया लेकिन भ्रष्ट्राचार की दलदल में भर्ती के लिए पहल करने से गोरखपुर इंजीनियरिंग कालेज ने साफ मना कर दिया । आवेदकों का लाखो रुपए ब्रिज कारपोरेशन के पास जमा है । कुछ आवेदक की उम्र सीमा भी पार कर गया है । भाजपा की योगी सरकार युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है । देखना है  लिए  ब्रिज कारपोरेशन में ही लम्बित हजारो इंजीनियरों की भर्तिया कब शुरू करती है   ।

यूपी सेतु निगम प्रदेश देश और विदेशो में कार्य कराकर यूपी का नाम रोशन किया ही प्रदेश के आय बढाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है लेकिन यह विभाग सरकार की उपेछा के चलते अपनी दायरा सिमटा लिया है अब सेतु निगम प्रदेश के  कार्यों तक ही सिमट कर रह गया है। सेतु निगम की कार्य क्षमता तो घट रही है गुणवत्ता और विश्वसनीयता भी पहले से कम हुई है। उच्च स्तरीय इंजीनियरों की संस्थान में लगातार कमी होती जा रही है। खाली पदों को भरने की बजाय संविदा के जरिए काम नहीं कराया जा रहा बल्कि खेल किया जा रहा है। इसका सीधा असर सेतु निगम की क्षमता पर पड़ा है।

दो दशक से नही मिला कोई बाहर का काम 

अपने स्थापना के बाद से इराक, नेपाल समेत कई देदो दशक से विदेशों में नहीं मिला काम शों में निर्माण कार्य का झंडा गाडऩे वाले सेतु निगम के पास आज विदेश में कोई काम नहीं है। सेतु निगम द्वारा राज्य में भले ही निर्माण कार्यों की बड़ी-बड़ी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटा जा रहा हो, लेकिन पिछले दो दशक से सेतु निगम के पास ओवरसीज में किसी भी परियोजना का ठेका नहीं है।
सेतु निगम ने विदेश में अपनी आखिरी प्रोजेक्ट के रूप में सन 1995 में रिपब्लिक ऑफ यमन में 95 मिलियन रुपए की हेराड ब्रिज परियोजना का निर्माण कार्य किया था। इसके बाद से यूपी सेतु निगम को विदेश में एक भी पुल या फ्लाइओवर के परियोजना के निर्माण का काम नहीं मिला है।

सेतु निगम ने अपने स्वर्णिम काल में सबसे ज्यादा काम इराक और नेपाल में किया है। इन दोनों देशों ने यूपी सेतु निगम को अपनी कई महत्वाकांक्षी योजनाओं के निर्माण का काम दिया। खासकर इराक में दर्जनों प्रोजेक्ट बनाने का सौभाग्य यूपी सेतु निगम को मिला, लेकिन अब यह देश सेतु निगम को प्रोजेक्ट देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। नेपाल में सेतु निगम ने अपने आखिरी प्राजेक्ट के रूप में सिरसिया ब्रिज का काम 1995 में पूरा किया था। जबकि इराक में 25 मिलियन रुपए की लागत से बना दियाला ब्रिज यूपी सेतु निगम का यहां पर आखिरी प्रोजेक्ट था। यह काम सेतु निगम ने 1987 में पूरा किया था। इसके बाद इन दोनों देशों से सेतु निगम का किसी भी प्रोजेक्ट के लिए करार नहीं हुआ। इसकी तस्दीक यूपी सेतु निगम की वेबसाइट खुद करती है।

अगर विदेशों में सेतु निगम के निर्माण की सूची देखें तो  इराक के जलावला में वर्ष 1981 में निगम ने दिवाला (45 मिलियन) और माइनर ब्रिज (19 मिलियन) बनाया था। इसके बाद वर्ष 1982 में ओवर पास ब्रिज (85 मिलियन) और फाइव ब्रिजेज (65 मिलियन) का निर्माण हुआ। इसी साल ग्रेटर जैब ओवयर में 150 मिलियन और 120 मिलियन की लागत वाला तिगरीश ब्रिज का निर्माण कार्य निगम ने किया था। इसी तरह 1983 में 130 मिलियन का फोर ब्रिज और 52 मिलियन का मैदान-ए-सुलेमानिया सेतु का निर्माण निगम ने किया था। निगम ने 1984 से 1987 के बीच इराक में कुल नौ परियोजनाओं को पूरा किया, जिसमें 282 मिलियन रुपए की लागत से इसकिकालक मोसुल में बना ग्रेट जब ब्रिज भी शामिल है।  सेतु निमग ने नेपाल में भी 1986 से 1995 के बीच कुल दस छोटी-बड़ी परियोजनाओं को पूरा किया, जिसमें 100 मिलियन रुपए की लागत से नेपालीगंज में बना करनाली ब्रिज भी शामिल है।

सेतु निगम में दक्ष कर्मचारियों की भारी कमी 

यूपी सेतु निगम की साख पर असर पड़ा है और गुणवत्ता घटी है तो इसका सबसे बड़ा कारण है अधिकारियों-कर्मचारियों की बड़ी कमी। यूपी के स्थानिक भूगोल को बदलने तथा प्रदेशवासियों के जीवन में बड़ा बदलावा लाने वाला सेतु निगम खुद कमजोर हो चुका है। अगर आधिकारिक सूत्रों की माने तो सेतु निगम में कम से कम पचास फीसदी अधिकारियों-कर्मचारियों की कमी है। इसका प्रमुख कारण है कि सेतु निगम के निर्माण के दौर मेंं हुई भर्तियों के लंबे अंतराल के चलते अधिकारी-कर्मचारी लगातार रिटायर होते चले गए, जबकि उनकी जगह भरने के लिए नियुक्तियां नहीं की जा सकीं।

पिछले एक दशक से सेतु निगम में कोई भी भर्ती नहीं हुई है। इसके चलते सेतु निगम की क्षमता और गुणवत्ता दोनों प्रभावित हो रही है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि सेतु निगम के पास काम की कोई कमी नहीं है। देश-विदेश में हम इसलिए काम नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि अब हमारे पास संख्या बल कम है। टैलेंटेड इंजीनियरों का अभाव है। जो इंजीनियर थे, वे लगातार रिटायर होते चले गए, जबकि उनकी जगह नए इंजीनियरों की भर्ती नहीं हो पाई। विभागीय अधिकारी बताते हैं कि रिटायरमेंट के अलावा सेतु निगम के कर्मचारी इस्तीफा देकर अच्छे और बेहतर पैकेज पर प्राइवेट इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों से जुड़ गए। कर्मचारियों की कमी के चलते सेतु निगम का काम प्रभावित हो रहा है।

एक दशक ने नहीं हुई एक भी इंजीनियरों की भर्ती 

उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2013 में सीधी भर्ती पर लगा प्रतिबंध हटाते हुए सेतु निगम में पौने दो सौ पद भरे जाने की मंजूरी दे दी थी, लेकिन पता नहीं किस कारण परीक्षा तिथि के दो दिन पहले इन नियुक्तियों को रोक दिया गया। आज तक इन नियुक्तियों को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है।  वर्ष 2005 से ही सेतु निगम के सीधी भर्ती पर रोक लगी थी, जिसे समाजवादी पार्टी की सरकार ने वर्ष 2013 में हटा लिया था। शासन ने पौने दो सौ पद भरे जाने के लिए मंजूरी भी दे दी थी। इसमें सहायक अभियंता सिविल के 28, सहायक अभियंता यांत्रिक के 7, अवर अभियंता सिविल के 96, कंपनी सचिव का 1, वरिष्ठ लेखाधिकारी के 3, लेखा लिपिक के 10, कार्यालय सहायक ग्रेड 2 के 14 और आशुलिपिक के 16 पद शामिल थे। सेतु निगम ने भर्ती परीक्षा कराने के लिए गोरखपुर यूनिवर्सिटी को लगभग 34 लाख रुपए का भुगतान भी किया जा चुका था, लेकिन परीक्षा तिथि से कुछ दिन पूर्व ही सारी प्रक्रिया रोक दी गई। अब इसे किन कारणों से रोका गया तथा उक्त धनराशि को किस मद में दिखाया गया है, इसकी जानकारी नहीं मिल पा रही है। सूत्र बताते है कि पिछली सरकार के विभागीय मंत्री ने अपने चहेते अभ्यर्थियों की पास करने की लिस्ट गोरखपुर वीसी को सौपी थी तो वीसी ने बिना परीछा पास किए किसी भी अभ्यर्थी को नही क्वालीफाई करुगा इसी विवाद की भेट चढ़ी थी सेतु निगम भर्ती ।

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