बलदाऊ की नगरी में खेला गया हुरंगा, 479 वर्ष पुराना है इसका इतिहास

क्या आप जानते है कि ब्रज के राजा और भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ महाराज के हुरंगा का इतिहास सदियों पुराना है। उनके विग्रह का प्राकट्य सन् 1538 में हुआ था। इसी के बाद बलदेव के गोस्वामी समाज के युवक व महिलाएं बलदाऊ और कृष्ण से भावात्मक होली खेलते हैं। बलदाऊ के होरी में मचाए गए धमार को ही हुरंगा का नाम दिया गया।
 

f_1489566852श्रीहलधर समग्र दर्शन शोध संस्थान के अध्यक्ष डॉ.घनश्याम पांडे बताया कि 1538 में ठाकुर बलदाऊ के विग्रह का बलदेव नगरी में प्राकट्य हुआ। बलदाऊ का प्राकट्य गोस्वामी कल्याण देव जी ने कराया और उन्होंने ही बलदाऊ के विग्रह की स्थापना कराई। तभी से पूरे ब्रज में बलदेव छठ और बलदाऊ का हुरंगा बलदेव के गोस्वामी समाज पूरे धूमधाम से मनाते हैं। चार शताब्दी से बलदेव का गोस्वामी समाज इसी तरह बलदाऊ का हुरंगा करता आ रहा है। बलदेव वैभव पुस्तक में बलदाऊ के प्राकट्य और हुरंगा के लेख मिलते हैं। इसमें केवल गोस्वामी समाज की महिलाएं ही हुरंगा खेलती हैं। हुरंगा में महिलाएं राधाजी की सखी भाव में कृष्ण बलराम से होली खेलती हैं।
 

बलदाऊ के हुरंगा खेलने से पहले बलदाऊ मंदिर में ठाकुरजी को भांग का भोग लगाया। मेवा मिश्रित भांग को तैयार करने व उसका असर तेज करने के लिए उसमें तांबे का पुट लगाया जाता है। बाद में भांग को गोस्वामी समाज के युवक प्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं फिर होली हुरंगा खेलने निकलते हैं। 
 

बलदाऊ के हुंरगा को देखने के लिए हजारों श्रद्धालुओं के साथ रमणरेती के कार्ष्णि गुरु शरणानंद महाराज, बरसाना के संत रमेश बाबा, संत राजेंद्र दास महाराज, संत फूलडोल बिहारीदास महाराज, हरिबोल बाबा आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। साथ ही एसएसपी देहात अरुण कुमार सिंह, न्यायिक अधिकारी, एसडीएम महावन, सीओ महावन आगरा और हाथरस के न्यायिक अधिकारी मौजूद रहे। मंदिर रिसीवर आरके पांडेय ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया।

 

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