काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी (25 दिसंबर,1861) को हुआ था। अपने संस्थापक की जयंती विश्वविद्यालय पूरी श्रद्धा से मनाता रहा है। यूं तो इसके साक्षी मालवीय जी खुद भी रहे लेकिन उनके देहावसान के बाद से ही हिंदी तिथि के अनुसार मालवीय जयंती का शुभारंभ प्रतिपदा से हो जाता है।
इस साल महामना की 154वीं जयंती मनाई जा रही है लेकिन मालवीय जी के रहते हुए उनकी 75वीं जयंती बेहद खास थी। मालवीय जी का 75वां जन्मोत्सव विश्वविद्यालय स्थित श्री विश्वनाथ मंदिर में 1937 में मनाया गया था। विश्वविद्यालय और काशी के गणमान्य लोगों ने इसे मालवीय जी के सम्मान मेें आयोजित किया था। महामना को एक ‘अभिनंदन पत्र’ और सुंदर देशी घड़ी भेंट की गई थी, जिसमें भारत की आकृति बनी थी। महामना ने उस वक्त जन समूह को संबोधित करते हुए विश्वनाथ मंदिर के निर्माण में सहयोग करने की अपील की थी। मालवीय जी को श्रीमद्भागवत और गीता ये दोनों ग्रंथ प्रिय थे, इसलिए उनकी जयंती पर मालवीय भवन में 1946 से ही श्रीमद्भागवत पारायण और कथा कराई जा रही है। वेदों और मंत्रों से सात दिन तक ये भवन गूंजता है। उनकी स्मृति में मालवीय स्मृति पुष्प प्रदर्शनी भी पिछले करीब पचास वर्षों से हो रही है।
विश्वविद्यालय के निर्माण और विकास दोनों के साक्षी मालवीय भवन बीएचयू की हृदयस्थली है। मालवीय जी से अगर आत्मीय दर्शन करना हो तो वे यहां जरूर मिलेंगे। यहां की हर दर-ओ-दीवार उनके होने का एहसास कराएगी। प्रवेश करते ही मालवीय की मूर्ति, जिसे देख हर कोई यहां अपने शीष जरूर झुकाता है। बीएचयू की स्थापना के बाद से मालवीय जी ने सबसे ज्यादा वक्त यहीं गुजारा।
मालवीय जी यहां 1920 के पहले से यहां रह रहे थे और अपने गोलोकवास तक यहीं रहे। मालवीय भवन के दोनों ओर सुंदर फूल, लताओं से सजा। दूब के गलीचों से बिछे दोनों तरफ के लॉन है। भवन के अंदर प्रवेश करते ही र्बाइं तरफ मालवीय जी का शयनकक्ष। सामने गोल कक्ष जहां महामना की अद्वितीय तस्वीरें उनका परिचय कराती हैं और उसके ठीक सामने बड़ा सा सभागार, जहां गीता प्रवचन, योग कार्यक्रम होते हैं। पहले ये आंगन हुआ करता था। आज भी मालवीय भवन में रसोईघर है। उनका शयनकक्ष भी है। मालवीय भवन के ऊपर लाइब्रेरी में मालवीय जी से जुड़े तमाम संग्रह मौजूद हैं। अब इस मालवीय भवन को हेरिटेज कॉम्प्लेक्स के रूप में विकसित करने की योजना है।
मालवीय जी यहां 1920 के पहले से यहां रह रहे थे और अपने गोलोकवास तक यहीं रहे। मालवीय भवन के दोनों ओर सुंदर फूल, लताओं से सजा। दूब के गलीचों से बिछे दोनों तरफ के लॉन है। भवन के अंदर प्रवेश करते ही र्बाइं तरफ मालवीय जी का शयनकक्ष। सामने गोल कक्ष जहां महामना की अद्वितीय तस्वीरें उनका परिचय कराती हैं और उसके ठीक सामने बड़ा सा सभागार, जहां गीता प्रवचन, योग कार्यक्रम होते हैं। पहले ये आंगन हुआ करता था। आज भी मालवीय भवन में रसोईघर है। उनका शयनकक्ष भी है। मालवीय भवन के ऊपर लाइब्रेरी में मालवीय जी से जुड़े तमाम संग्रह मौजूद हैं। अब इस मालवीय भवन को हेरिटेज कॉम्प्लेक्स के रूप में विकसित करने की योजना है।