यहां कृष्ण जी खुद खेलने आते थे होली, आज भी लोग निभा रहे हैं परंपरा

नई दिल्ली : मथुरा के बरसाने वाली होली के बारे में तो आपने सुना ही होगा। मगर भारत में एक गांव ऐसा भी है। जहां कृष्ण भगवान खुद आकर होली खेलते थे। ये बात बिल्कुल सच है।

img_20170301112451जानकारी के अनुसार यह स्थान है इरादतनगर से 7 किलोमीटर दूर बसे वृतला गांव में। इस गांव में भगवान श्रीकृष्ण बाल लीलाएं किया करते थे। द्वापर युग में यहां एक कुंड हुआ करता था, इस कुंड में पानी नहीं था। सभी जीवों की प्यास बुझाने के लिए इस कुंड का लोकार्पण भगवान श्रीकृष्ण ने किया था।
मान्यता यह है कि भगवान श्रीकृष्ण के स्पर्श से इस कुंड का पानी अमृतसमान हो गया। आज भी इस पानी में चर्म रोग से पीडित लोग स्नान कर अपने रोग से मुक्ति पाते हैं।
होली खेलकर वापस वृंदावन चले जाते थे कृष्ण : 
इस गांव में होली पर विशेष आयोजन होता है। बरसाने की तरह इस गांव में भी होली खेली जाती है। होली पर वृतला कुंड पर दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। मान्यता यह है कि होली के दौरान भगवान श्रीकृष्ण भी यहां होली खलने आते थे। इसी मान्यता के चलते आज भी यहां भगवान की आराधना के साथ होली के रंग में भक्त रंगे नजर आते हैं। वृतल स्थित गणेश मंदिर के महंत महेश गिरी बताते हैं कि इस कुंड से एक गुफा का रास्ता हुआ करता था, जो सीधे वृतला को वृंदावन से जोड़ता था। इस गुफा से होकर भगवान श्रीकृष्ण गाय लेकर आते थे। यहां पर बाल लीलाएं किया करते थे। सूरज ढलने के दौरान इसी गुफा से वे वापस वृंदावन चले जाते थे।
चर्म रोग का होता है इलाज : 
इस कुंड के पानी की एक खास बात यह है कि दुनिया में जिसका चर्म रोग कहीं भी सही नहीं हो रहा हो, उसका चर्म रोग इस कुंड में नहाने मात्र से सही हो जाता है। आज भी यह मान्यता चली आ रही है। सैकडों लोग प्रतिदिन इस कुंड में स्नान करने के लिए आते हैं। गांव के ही रहने वाले सौभर त्यागी ने बताया कि ऐसा नहीं है कि यह मान्यता ही है, यहां स्नान करने के बाद न जाने कितने रोगी सही हुए हैं। जो सही हो जाता है, वहां यहां हवन पूजा भी कराता है।
कुंड के पानी से बनाई जाती थी  खीर : 
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि इस कुंड के पानी से कभी खीर बनती थी,जिसमें शक्कर डालने की भी जरूरत नहीं होती थी। आज भी इस कुंड का पानी रात के समय दूधिया रंग का हो जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु इस कुंड के पानी को भरकर अपने साथ ले जाते हैं।
सतयुग से जुडी है इस कुंड की कहानी : 
सतयुग में वृत्रासुर नाम का राक्षस हुआ था। यह राक्षस ब्राहम्ण कुल से था। वृत्रासुर ने भगवान इन्द्र के सिंहासन पर कब्जा कर लिया था। कोई भी उसे परास्त नहीं कर पाया, जिसके बाद सभी देव विष्णु और भगवान महेश के पास पहुंचे। किसी ने कोई उपाय नहीं बताया, तो ब्रहृमा जी ने देवताओं को बताया कि महर्षि दधीच अपनी अस्थियां दे दें, तो उनकी अस्थियों से बने वज्र से वृत्रासुर का अंत हो सकता है। इसके बाद देवताओं ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियां दान में लेकर वज्र बनाया।
इस वज्र से वृत्रासुर का अंत हुआ। क्योंकि वृत्रासुर ब्राहृमण कुल से था। ब्रहृमहत्या का पाप न लगे, इसके लिए देवताओं ने हवन के लिए इस कुंड को बनाया था। तभी से यह कुंड यहां पर स्थापित है। इस कुंड के नाम पर ही इस गांव का नाम वृतला पड़ा।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com