ईश्वर के प्रेम में पड़ जाने पर जो अलौकिक शक्ति, परमानंद और खुशी मिलती है, वह अन्यत्र कहीं भी हासिल नहीं हो सकती है। इंसान का मन उस पर हावी रहता है। वह तरह-तरह के विचारों के माध्यम से इंसान को सब्जबाग दिखाता रहता है। जिनकी शादी नहीं हुई, उन्हें शादी के सब्जबाग दिखाता है। जिनकी हो गई है, तो वह सोचता है कि घर-परिवार की जिम्मेदारी उठाने की बजाय यदि वह स्वतंत्र रहता, तो ज्यादा अच्छा होता।
जो बंधा हुआ है, वह स्वतंत्र होना चाहता है और जो स्वतंत्र है, वह बंधना चाहता है। यदि ईश्वर का प्रेम आपको मिल रहा है, तो मन उससे दूर कराने की पूरी कोशिश करता है। यदि प्रभु प्रेम नहीं मिलता है, तो आत्मा ईश्वर का प्यार पाने के लिए तड़पने लगती है। ऐसे चंचल मन पर सुमिरन और भक्ति से काबू पाया जा सकता है। ऐसा नहीं करने पर यह इंसान को परमपिता परमात्मा से दूर कर देता है। इसलिए मन से लड़ना सीखें। अपने अंत:करण की सफाई करें। न सिफÊ प्रभु का नाम सुमिरन करें, बल्कि अपने मन पर नकेल डालें, ताकि मन कभी भी भक्ति के रास्ते में अड़चन न डाले।