नोएडा। महाशिवरात्रि के अवसर पर ब्रह्मकुमारी डॉ. सीमा ने शिवरात्रि का अर्थ समझाते हुए बताया कि शिव कलयुग का अंत कर सतयुग की स्थापना करने के लिए अवतरित होते हैं। शिव परमात्मा इस युगों के संगम में आकर, अज्ञानता की रात्रि से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं।
ब्रह्मकुमारी ने बताया कि शिव और शंकर में अंतर है। कुछ लोग इसे एक ही इष्ट के दो नाम समझते हैं। प्रश्न यह उठता है कि शिव का लिंग और शंकर की मूर्ति ये दोनों अलग व भिन्न रूप वाले स्मरण चिह्न क्यों हैं।
इसे ऐसे समझें कि किसी व्यक्ति के दो नाम हो सकते हैं, लेकिन उसकी छायाचित्र अथवा प्रतिमूर्ति एक ही होगी। लेकिन शिवलिंग तो अंडाकार ही होता है और शंकर की मूर्ति में शरीर अंगो के साथ ही सदा स्थापित और पूजित होती है।अगर उस देवाकार मूर्ति का कोई अंग खंडित हो जाए तो उस मूर्ति को खंडित मानकर पूजा के योग्य नहीं माना जाता।
शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग की संज्ञा भी दी गयी है, जबकि भगवान शंकर को समाधिस्थ ही दिखाया जाता है। उनकी प्रतिमा खुद किसी ध्येय के ध्यान में मन को समाहित किए हुए है।
जबकि शिव पिंडी में कोई ऐसा भाव प्रदर्शित न होने से खुद ही परम स्मरणीय है। इससे दोनों का अंतर प्रत्यक्ष है। फिर भी कुछ लोग इसे अनदेखा कर शिवलिंग को पृष्ठ भूमिका में देकर उस पर भगवान शंकर की मुखाकृति अंकित कर देते हैं।
पुराणों में भी कई ऐसी कथाएं हैं जिनमें कहा गया है कि शिव, शंकर के शरीर का ही एक भाग है। ये मनुष्य की अज्ञानता ही है कि वे एक ओर खंडित काया वाले देव की पूजा नहीं करते और दूसरी ओर वे किसी एक ही शरीर के भाग की पूजा करते हैं।