रामपुर-बुशहर शाही परिवार के वंशज, वीरभद्र सिंह नाम से मशहूर राजा साहिब ने एक राज्य पर नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश के लोगों के दिलों पर पांच दशकों से ज्यादा समय तक शासन किया था। छह बार मुख्यमंत्री, नौ बार विधायक और पांच बार संसद के सदस्य रह चुके राजा साहिब का गुरुवार तड़के साढ़े तीन बजे शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में निधन हो गया।
कांग्रेस की पुरानी पीढ़ी से नाता रखने वाले राजा साहिब ने 27 साल की उम्र में 1962 में लोकसभा चुनाव से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। उन्होंने चार बार संसद सदस्य के रूप में सेवा की थी। हालांकि लगातार नहीं- साल 1967, 1971, 1980 और 2009 में वह संसद के सदस्य रहे।
राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उनका पहला कार्यकाल 1983 में शुरू हुआ था और 1990 तक लगातार दो बार वह इस पद पर बने रहे। केंद्रीय राजनीति में अनुभवी, वीरभद्र ने 5 बार सांसद और 6 बार सीएम रहे थे। उन्होंने बखूबी राज्य का कार्यभार संभाला और पर्यटन के विकास के अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के निर्माण में भी सक्रिय भूमिका निभाई। राजा साहिब इतने बड़े लोकप्रिय नेता थे कि वे 1985, 1993, 2003 और 2012 में फिर से मुख्यमंत्री चुने गए। साल 1976-77 में पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्री बने थे। उन्होंने 2009 में लोकसभा चुनाव भी जीता और केंद्रीय इस्पात मंत्री और बाद में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री के रूप में काम किया।
लड़ाई लड़ना, युद्ध जीतना
वीरभद्र अपने रास्ते में आई लगभग हर परेशानी से बच गए, जिसमें भ्रष्टाचार के आरोप और पार्टी के भीतर प्रभाव कम होना भी शामिल था। उन्होंने पार्टी के कई प्रतिद्वंद्वियों की धमकियों का मुकाबला किया।
90 के दशक की शुरुआत में, कांग्रेस के दिग्गज नेता सुख राम ने उनके लिए एक विकट चुनौती पेश की। 1993 में कांग्रेस ने 68 विधानसभा सीटों में से 52 पर जीत हासिल की थी। सुख राम, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के करीबी थे। वह मुख्यमंत्री बनने के इच्छा रखते थे। सुख राम को 22 विधायकों का समर्थन प्राप्त था। लेकिन वीरभद्र, जो अपने राजनीतिक कौशल के लिए जाने जाते थे, उन्होंने सत्ता पर दावा करने के लिए पांच निर्दलीय विधायकों के साथ 29 विधायकों का समर्थन हासिल किया। जिसके बाद कांग्रेस आलाकमान की तरफ से भेजे गए तत्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह दोबारा विचार करने पर मजबूर हुए। टेलीकॉम घोटाले में सुखराम का नाम आने के बाद वीरभद्र ने फिर से पैर जमाए।
राजनीतिक जीवन की चुनौतियां
1998 में, सुख राम ने पांच सीटों पर जीत हासिल करने वाली हिमाचल विकास कांग्रेस की स्थापना के बाद वीरभद्र पर फिर से हमला किया और 24 मार्च को प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा को नियंत्रण में लाने में मदद की।
वीरभद्र सिंह सरकार ने एकमात्र निर्दलीय विधायक रमेश चंद चौधरी द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद इस्तीफा दे दिया। तब राज्यपाल वीएस रमा देवी ने वीरभद्र को 10 दिनों के भीतर सदन के पटल पर बहुमत साबित करने को कहा। लोकसभा चुनाव के साथ हुए विधानसभा चुनाव ने त्रिशंकु सदन की स्थिति पैदा कर दी।
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए -2 सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे वीरभद्र ने हिमाचल की एक अदालत द्वारा उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप तय किए जाने के बाद पद छोड़ दिया। हालाँकि, उनकी लोकप्रियता ने फिर से पार्टी आलाकमान को उन्हें राज्य में वापस भेजने के लिए मजबूर किया और उन्होंने कौल सिंह ठाकुर को राज्य कांग्रेस प्रमुख के रूप में बदल दिया और 2012 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को जीत के लिए प्रेरित किया।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्या स्टोक्स और ठाकुर ने उनके अधिकार को चुनौती तो दी लेकिन अपनी बात पर कायम नहीं रह सके। यहां तक कि पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी चुनौती देने की कोशिश की लेकिन आखिरकार वीरभद्र की जीत हुई।
बेजोड़ लोकप्रियता
उनकी पार्टी या प्रतिद्वंद्वी पार्टी भाजपा के नेताओं में से कोई भी वीरभद्र की लोकप्रियता की बराबरी नहीं कर सकता था। वह बहुत ही स्नेह करने वाले, लोगों की बात बेहद प्यार से सुना करते थे। वह अक्सर अपने भाषणों में कहते थे, “मेरी जनता मेरी सबसे बड़ी तकत है।” उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि अपने निर्वाचन क्षेत्र में नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद वे कभी अपने निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार करने नहीं जाते थे।
23 जून, 1964 को जन्मे, वीरभद्र की शिक्षा कर्नल ब्राउन कैम्ब्रिज स्कूल, देहरादून, सेंट एडवर्ड स्कूल, शिमला और बिशप कॉटन स्कूल, शिमला में हुई थी, इसके बाद उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली से अंग्रेजी ऑनर्स में बीए की डिग्री हासिल की थी। .उनका विवाह 1954 में रत्ना कुमारी से हुआ था और उनकी चार बेटियां थीं।
उन्होंने 85 में दोबारा शादी की और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह ने मंडी संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। उनके बेटे, विक्रमादित्य सिंह, शिमला ग्रामीण से विधायक हैं, और बेटी अपराजिता की शादी पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के पोते अंगद सिंह से हुई है।