हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 108 समाजवादी एम्बुलेंस सेवा व 102 एम्बुलेंस सेवा में कथित घोटाले के मामले में राज्य सरकार को जवाब देने के निर्देश दिए हैं। न्यायालय ने इसे महत्वपूर्ण मुद्दा मानते हुए राज्य सरकार से पूछा है कि क्या अनियमितताओं के सम्बंध में कोई जांच करवाई गई है।
न्यायमूर्ति एसएन शुक्ला व न्यायमूर्ति एसके सिंह की पीठ ने यह आदेश अमित मिश्रा व जगदेव वर्मा की जनहित याचिका पर दिए। याचिका में पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराए जाने की मांग की गई है।
याचियों की ओर से अधिवक्ता रवि सिंह सिसोदिया ने दलील दी कि राज्य सरकार इनवॉइसेज की जांच किए बगैर ही भुगतान कर रही है जो 108 और 102 के एग्रीमेंट के नियम व शर्तों का उल्लंघन है। यहां तक कि परिवार कल्याण मंत्री रविदास मेहरोत्रा ने पीडीआर (पेशेंट डाटा रिकॉर्ड), पीसीआर (पेशेंट केयर रिकॉर्ड) और डीबीआर (ड्रॉप बैक रिकॉर्ड) की जांच के बगैर भुगतान न जारी करने के निर्देश दिए थे।
स्वयं मंत्री ने इस मामले में बड़े घोटाले की आशंका जाहिर की है। आरोपों के समर्थन में याचिका में मंत्री के विभिन्न पत्र भी प्रस्तुत किए गए। याचियों के ही अधिवक्ता चन्दन श्रीवास्तव के अनुसार याचिका में कहा गया है कि मंत्री के निर्देश के बावजूद पीडीआर, पीसीआर और डीबीआर की ओरिजिनल शीट्स कम्पनी की ओर से उपलब्ध नहीं कराई गई है।
ओपन कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिका के इस बिंदु पर न्यायालय ने टिप्पणी भी की कि एक मंत्री इतना असहाय क्यों है। याचियों की ओर से मामले की सीबीआई जांच के साथ ही राज्य सरकार को यह भी निर्देश देने की मांग की गई है कि वह प्राइवेट कम्पनी जीवीके के वर्ष 2012 से लेकर अब तक के बिलों की जांच के लिए यथोचित प्रणाली बनाए व ओरिजिनल शीट्स की जांच करते हुए, अतिरिक्त भुगतान की वसूली कम्पनी से की जाए। वहीं याचिका का विरोध करते हुए जीवीके कम्पनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसके कालिया ने दलील दी कि यह एक प्रॉक्सी (परोक्षी) याचिका है।
हालांकि न्यायालय ने कहा कि याचिका में महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया गया है। 108 और 102 एम्बुलेंस सेवा में पैसों के गबन की बात किसी और ने नहीं बल्कि खुद मंत्री के द्वारा कही जा रही है। न्यायालय ने अग्रिम सुनवाई पर राज्य सरकार को यह बताने के आदेश दिए हैं कि क्या अनियमितताओं के सम्बंध में कोई जांच कराई गई। मामले की अग्रिम सुनवाई 20 मार्च को होगी।