पीठ ने अपने फैसले में कहा कि फिलहाल जो कानून है वह भी कारगर है, ऐसे में संशोधन होने तक लोकपाल की नियुक्ति को टालने का कोई औचित्य नहीं है। लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा-4(2) का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि चयन समिति में किसी सदस्य के न होने पर लोकपाल और अन्य सदस्यों द्वारा की गई नियुक्ति को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।
पीठ ने कहा है कि फिलहाल नेता विपक्ष नहीं हैं लेकिन इसकी जगह सबसे बड़ी विपक्षी दल केनेता को शामिल किया जा सकता है। चयन समिति के चेयरपर्सन और चयन समिति केदो अन्य सदस्य (लोकसभा अध्यक्ष और भारत केप्रधान न्यायाधीश या उनकेकोई प्रतिनिधि) नामचीन हस्ती की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। मालूम हो कि लोकपाल की चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्ष केनेता, भारत के प्रधान न्यायाधीश या नामित सुप्रीम कोर्ट केजज और एक नामचीन हस्ती केहोने का प्रावधान है।
केंद्र सरकार की दलील है कि लोकपाल की नियुक्ति के लिए चयन नेता प्रतिपक्ष(एलओपी) का होना आवश्यक है लेकिन फिलहाल कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं हैं। ऐसी स्थिति में लोकपाल की नियुक्ति संभव नहीं है। अटॉर्नी जनरल का कहना था कि अब तक किसी को विपक्ष के नेता का दर्जा नहीं मिल सका है क्योंकि किसी भी विपक्षी दल को लोकसभा की क्षमता(543) का 10 फीसदी सीट नहीं मिली हैं।
यहीं कारण है कि लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में संशोधन कर सबड़े बड़े विपक्षी दल को विपक्ष का नेता(एलओपी) देने की कोशिश की जा रही है। संशोधन विधेयक संसद में लंबित है और जब तक यह विधेयक पारित नहीं हो जाता तब तक लोकपाल की नियुक्ति संभव नहीं है। वहीं याचिकाकर्ता संगठन कॉमन काउज की दलील थी कि लोकपाल की नियुक्ति के लिए सरकार दिलचस्पी नहीं ले रही है। उनकेवकील ने आरोप लगाया था कि सरकार ने जानबूझ कर संशोधन विधेयक को रोक रखा है।
वहीं दूसरी तरफ, सीबीआई प्रमुख, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और केंद्रीय सूचना आयुक्त की नियुक्ति के मामले में सबसे बड़े विपक्षी दल केनेता को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दे दिया गया है। याचिका में कहा गया था कि लोकपाल विधेयक वर्ष 2013 में पारित हो गया था और वर्ष 2014 में प्रभावी हो गया था बावजूद इसकेअब तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो सकी है।